BIHAR POLITICS

 What is politics? Status of politics in Bihar and its history. (राजनीति क्या है? बिहार में राजनीति की स्थिति और इसका इतिहास)

भारत की राजनीति के पहलुओं को समझने से पहले यह जानना आवश्यक हैं कि राजनीति की शुरुआत कब हुई?

राजनीति कि शुरुआत रामायण काल से भी अति प्राचीन है। महाभारत महाकाव्य में इसका सर्वाधिक विवरण देखने को मिलता है । चाहे वह चक्रव्यूह रचना हो या चौसर खेल में पाण्डवों को हराने कि राजनीति । अरस्तु को राजनीति का जनक कहा जाता है।

वर्तमान समय में चल रही भारत की पॉलिटिक्स 

अब हम वर्तमान समय में  चल रही politics के बारे में बात करेंगे और यहां की राजनीतिक दल  की चर्चा करेंगे। जिनको जनता ने अपना जनमत प्रदान किया हैं। अगर हम भारत की बात करें तो अभी तक दो दल ही ऐसे हैं, जिनका भारत की राजनीति में बोल-बाला हैं अर्थात जिन पर जनता ने अपना विश्वास दिखाया हैं। पहली हैं कांग्रेस और दूसरी है भारतीय जनता पार्टी अभी तक लम्बे समय तक शासन करने वाले दलों में कांग्रेस का नाम प्रमुखता से लिया जाता हैं।

भारतीय राजनीति की वर्तमान स्थिति की अगर हम बात करें तो यह कहना गलत नहीं होगा कि वर्तमान भारतीय राजनीति में भारतीय जनता पार्टी का बोलबाला अधिक हो रहा हैं भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से जनमत सहमत नजर आता हैं। भारतीय राजनीति की एक महत्वपूर्ण बात यह हैं कि यहाँ अत्यधिक सीट लाने वाला दल कभी-कभी सत्ता प्राप्त नहीं करता क्योंकि कई दल आपस मे मिल-जुलकर गठबंधन की सरकार बना लेते हैं। जिसका जिता जागता उदाहरण वर्तमान में बिहार, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश हैं।

भारतीय राजनीति में कांग्रेस , भारतीय जनता पार्टी, समाजवादी पार्टी, भारतीय समाजवादी पार्टी और आप की सत्ता ने राजनीतिक प्रबलता हासिल की हैं।

भारतीय राजनीति का वास्तविक सत्य The real truth of Indian Politics –

भारतीय राजनीति का वास्तविक सत्य यह हैं कि यहाँ के दलों का लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ सत्ता प्राप्त करना होता हैं। जनहित के लिए कार्य करना, राजनीतिक दलों के लिए उतना महत्व नहीं होता। जितना सत्ता पर शासन करना होता हैं। यहाँ के शासकों के लिए चुनाव आयोग ने कोई साक्षर योग्यता जैसे नियम नहीं बनाये हैं। जिस कारण अशिक्षित नेता को जिम्मेदारी वाले पद सोप दिए जाते हैं और ऐसे नेता जिन्हें कुछ जानकारी नही होती उन्हें शिक्षा मंत्री, कृषि मंत्री आदि पदों पर नियुक्त कर दिया जाता हैं जिस कारण समाज में भ्रष्टाचार, अहिंसा और अज्ञानता फैलता जा रहा हैं।

यह सभी हमें क्षेत्रीय और राज्य स्तर की राजनीति पर अकसर देखने को मिलता हैं क्योंकि अगर हम इतिहास उठाकर देखें तो भारतीय राजनीति केंद्रीय स्तर पर सुलझी हुई नजर आती हैं। भारत देश मे बनने वाले अभी तक के सभी प्रधानमंत्री का व्यक्तित्व उच्च कोटि का रहा हैं, चाहें हम जवाहरलाल नेहरू से लेकर नरेंद्र मोदी तक कि ही क्यों न बात करें। वर्तमान की राजनीति में जनता की रुचि या विचारधारा राष्ट्र हित की ओर अत्यधिक बढ़ रही हैं। राजनीतिक दलों को चाहिए कि वह अपने स्वार्थ से निकलकर जनहित और राष्टयहित के बारे में सोचें।

निष्कर्ष –

भारत देश ने विश्व का सदैव मार्गदर्शन किया हैं। भारतीय राजनीति को उच्च कोटि की राजनीति के रूप में देखा जाता हैं। कौटिल्य और महात्मा गांधी जैसे राजनीतिज्ञ और इनका व्यक्तित्व जिन्होंने भारतीय राजनीति को एक नया आयाम दिया। भारत की राजनीति (Indian Politics) सदैव जनहित केंद्रित रही हैं जो शासक वास्तव में जनहित के संबंध में सोचता हैं उसे ही जनमत प्राप्त होता हैं और वही शासन करता हैं।

आगे हम बात करेंगे बिहार की poltics के बारे में

और बिहार के राजनीति इतिहास के बारे में

BIHAR POLITICS

आज पूरा देश  बिहार की राजनीति को देख रहा है।

की कैसे जोड़ तोड़ की सरकार बनती हैं। जहां 2015 में नीतीश कुमार जी ने कांग्रेस, आरजेडी, और विभिन्न छोटे छोटे दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। और फिर 2017 में महागठबंधन को छोड़कर वह बीजेपी के साथ एलायंस कर के सरकार बना ली। और उसके बाद नीतीश जी ने 2020 में चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ा । और सरकार भी बनाई।

पर यह सरकार दो वर्ष चलने के बाद टूट गया। और फिर से नीतीश जी महागठबंधन के साथ कनेक्ट हो गए।

राजनीतिक दलों की महत्वाकांक्षी विचारधारा

आज की राजनीति पार्टी सत्ता में किसी तरह बने रहना चाहती हैं। जिसके लिए वह किसी भी हथकंडा को अपनाती है । वह चाहै जोड़ तोड़ करना हो या खरीद बिक्री करना हो। वह अपनी महत्वाकांक्षा के लिए सत्ता में रहने के लिए जनता के पैसों को पानी के तरह बढ़ा रही है। जिसका सारा बोझ जनता के उपर पड़ता है।

बिहार का राजनीति इतिहास

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1951 में बिहार में विधानसभा चुनाव की शुरुआत हुई थी और उसके बाद से 2022 तक बिहार में 17 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और इस बार बिहार की जनता ने 38वां मुख्यमंत्री चुना है.

बिहार में इस बार हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे तो आ गए हैं. लेकिन बिहार की सियासत को समझने के लिए आपका ये जानना भी जरूरी है कि बिहार में पिछले चुनावों का इतिहास क्या रहा है. बिहार की जनता ने कब और किन सियासी हालात में किस-किस पार्टी को अपने सूबे की जिम्मेदारी सौंपी.

जीत के उन्माद और हार के अवसाद की ये तस्वीरें उस बिहार की हैं. जो राजनीति, कूटनीति और अर्थशास्त्र के महान चाणक्य की धरती रही है. यहां की जनता को राजनीतिक जागरूकता और नेताओं को साम-दाम-दंड-भेद का हर हथकंडा विरासत में मिला है. इसलिए बिहार का हर विधानसभा चुनाव बेहद ही दिलचस्प रहा है. 1951 में बिहार में विधानसभा चुनाव की शुरुआत हुई थी और उसके बाद से 2022 तक बिहार में 17 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और इस बार बिहार की जनता ने 38वां मुख्यमंत्री चुना है. बिहार को राजनीतिक रूप से काफी जागरुक माना जाता है और शायद ये ही वजह है कि ये राजनीतिक रुप से सबसे अस्थिर राज्यों में से भी रहा है. जिसका गवाह समकालीन राजनीति में बिहार का इतिहास बताता है.।

बाकी उत्तर भारतीय राज्यों की तरह ही बिहार भी लंबे समय तक कांग्रेस के प्रभाव में रहा है. साल 1946 में श्रीकृष्ण सिन्हा ने मुख्यमंत्री का पद संभाला, तो 1961 तक लगातार इस पद पर बने रहे. लेकिन 1961 में श्रीकृष्ण सिन्हा के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद 1990 तक 29 साल में 23 बार मुख्यमंत्री बदले और 5 बार राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा. मतलब तीन दशक तक बिहार के सियासी मैदान पर मुख्यमंत्री का पद आया राम-गया राम वाली कहावत को चरितार्थ करता रहा.।

बिहार की राजनीतिक लगाम लगातार कांग्रेस के हाथों से फिसलती चली गई. जिसका सबूत है कि 1961 से 1990 के बीच जो 23 मुख्यमंत्री बदले, उनमें से 17 कांग्रेस के थे. इस बीच जेपी आंदोलन से बिहार में एक नए नेतृत्व को जन्म मिल चुका था. लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार उसी की उपज थे।

कभी लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जनता दल के बैनर तले ही अपनी राजनीति किया करते थे. साल 1989 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री वीपी सिंह के काल में जनता दल सरकार ने मंडल आयोग की रिपोर्ट को लागू किया. इसके बाद बिहार में लालू प्रसाद यादव का उदय हुआ. लालू प्रसाद यादव 10 मार्च 1990 को मुख्यमंत्री बने.1990 से 1997 तक दो बार लालू प्रसाद यादव मुख्यमंत्री रहे. इस दौरान 1994 में नीतीश कुमार ने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी बनाई और लालू से अपना रास्ता अलग कर लिया।

इस बीच भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से 25 जुलाई 1997 को लालू को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री पद पर बिठाया जो 1997 से 2005 के बीच तीन बार मुख्यमंत्री बनीं.

लेकिन इस बीच साल 2000 में एक और भी तस्वीर देखने को मिली, जब 3 मार्च 2000 को नीतीश कुमार पहली बार मुख्यमंत्री बने. लेकिन सिर्फ 10 मार्च 2000 तक ही सीएम रहे थे. केवल सात दिनों के लिए, सबसे कम समय के लिए बिहार के मुख्यमंत्री बने थे.।

साल 2000 में नीतीश कुमार तब केंद्र की NDA सरकार में कृषि मंत्री थे और BJP के सहयोग से राज्य में पहली बार सरकार गठन किया था और सीएम पद की शपथ ली थी. लेकिन पर्याप्त संख्याबल नहीं होने की वजह से सिर्फ 7 दिन बाद इस्तीफा देना पड़ा था।

इस बीच साल 2003 में जनता दल के शरद यादव गुट, लोक शक्ति पार्टी और जॉर्ज फर्नांडिस और नीतीश कुमार की समता पार्टी ने मिलकर जेडीयू यानी जनता दल यूनाइटेड का गठन किया और फिर 2005 में लालू-राबड़ी के तीन कार्यकालों के बाद बिहार में एक परिवर्तन आया. आरजेडी को हार का सामना करना पड़ा और नीतीश युग का आरंभ हुआ. हालांकि नीतीश को सरकार बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी।

साल 2005 में ऐसा पहली बार हुआ था, जब बिहार में एक ही साल के अंदर दो बार विधानसभा चुनाव कराने पड़े. क्योंकि फरवरी 2005 में हुए चुनाव में किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था. इसलिए कोई भी सरकार नहीं बन पाई. कुछ महीनों के राष्ट्रपति शासन के बाद अक्टूबर-नवंबर में फिर विधानसभा चुनाव हुए. जिनमें जेडीयू सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी.

बिहार में सुशासन और विकास को मुख्य मुद्दा बनाकर 2005 में नीतीश मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे। 2010 में भी नीतीश पर जनता ने भरोसा जताकर उन्हें फिर सीएम बनाया।


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