History of Indian Railways and today (भारतीय रेलवे का इतिहास और आज)
भारतीय रेल एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। यह 160 वर्षों से भी अधिक समय तक भारत के परिवहन क्षेत्र का मुख्य घटक रहा है। यह विश्व का सबसे बड़ा नियोक्ता है, जिसके 13 लाख से भी अधिक कर्मचारी हैं। आइए भारतीय रेलवे से जुड़ी सभी जानकारी और सफरनामा जानते हैं।
भारतीय रेलवे का सफरनामा
- पहली यात्री रेल 16 अप्रैल, 1853 को मुबंई से ठाणे के बीच चली।
- वर्ष 1890 में भारतीय रेलवे अधिनियम पारित किया गया।
- वर्ष 1936 में यात्री डिब्बों को वातानुकूलित बनाया गया।
- भारतीय रेलवे का शुभंकर हरी बत्ती वाली लालटेन उठाए एक हाथी (भालू गार्ड) है।
- भारतीय रेलवे का राष्ट्रीयकरण वर्ष 1950 में हुआ था।
- वर्ष 1952 में छह जोनों के साथ जोनल सिस्टम शुरू होकर वर्तमान में 17 जोन हैं।
- रेलवे में 13.1 लाख कर्मचारी कार्यरत हैं।
- भारतीय रेल दुनिया में सबसे लंबे और व्यस्त नेटवर्क में से एक मानी जाती है।
- वर्ष में छह अरब से भी अधिक मुसाफिर रेल से यात्रा करते हैं।
- कन्याकुमारी और जम्मू-तवी के बीच चलने वाली हिमसागर एक्सप्रेस सबसे लंबी दूरी की रेल है। - इसका रूट 3745 किलोमीटर है।
- फेयरी क्वीन दुनिया में सबसे पुराना इंजन है, जो अभी भी दौड़ता है।
- लाइफलाइन एक्सप्रेस एक विशेष रेल है। इसे हॉस्पिटल ऑन व्हील नाम से भी जाना जाता है। इस रेल में ऑपरेशन रूम से लेकर इलाज की सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं।
- 1974 में हुई भारतीय रेलवे की हड़ताल अब तक की सबसे बड़ी हड़ताल मानी जाती है। यह हड़ताल 20 दिन चली थी। 1974 के पश्चात रेलवे में कोई हड़ताल नहीं हुई।
- वर्ष 1977 में धरोहर, पर्यटन, शिक्षा, मनोरंजन के संरक्षण एवं प्रोत्साहन के लिए राष्ट्रीय रेल संग्रहालय खोला गया।
- सोसाइटी ऑफ इंटरनेशनल ट्रेवलर्स ने भारत की भव्य गाडियां डेक्कन ओडिसी, पैलेस ऑन व्हील्स और 100 साल पुरानी टॉय ट्रेन को विश्व की 25 सर्वश्रेष्ठ ट्रेनों की सूची में शामिल किया है।
- वर्ष 2002 में जन शताब्दी ट्रेन की शुरूआत हुई।
- वर्ष 2004 में इंटरनेट के माध्यम से आरक्षण प्रारंभ हुआ।
- वर्ष 2007 में देशभर में टेलीफोन नम्बर 139 द्वारा व्यापक सामान्य ट्रेन पूछताछ सेवा प्रारंभ की गई।
जैसे जैसे समय आगे बढ़ता गया भारतीय रेलवे की स्पीड बढ़ती गई।
भारत में रेलवे का इतिहास कई दशकों पुराना है। गौरतलब है कि भारत में व्यावसायिक ट्रेन यात्रा की शुरुआत वर्ष 1853 में हुई थी जिसके बाद वर्ष 1900 में भारतीय रेलवे तत्कालीन सरकार के अधीन आ गई।
वर्ष 1925 में बॉम्बे से कुर्ला के बीच देश की पहली इलेक्ट्रिक ट्रेन चलाई गई।
वर्ष 1947 में आज़ादी के पश्चात् भारत को एक पुराना रेल नेटवर्क विरासत में मिला और पूर्व का लगभग 40 प्रतिशत रेल नेटवर्क नवगठित पाकिस्तान के हिस्से में चला गया। ऐसी स्थिति में यह आवश्यकता महसूस की गई कि कुछ लाइनों की मरम्मत की जाए और कुछ नई लाइने बिछाई जाएँ ताकि जम्मू जैसे क्षेत्रों को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ा जा सके।
इससे पूर्व रेलवे संबंधी उत्पादन देश में काफी कम होता था, परंतु देश ने जैसे-जैसे विकास किया रेलवे संबंधी उत्पादन भी देश के अंदर ही होने लगा।
देश में जैसे-जैसे रेलवे नेटवर्क का विकास हुआ, रेलवे के संचालन और प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ भी सामने आने लगीं और इन चुनौतियों से निपटने के लिये नए विकल्पों की खोज की जाने लगी। कई विशेषज्ञ रेलवे के निजीकरण को इसी प्रकार के एक विकल्प के रूप में देखने लगे।
वर्ष 2019 में लखनऊ से नई दिल्ली के बीच भारत की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस की शुरुआत हुई, जिसे रेलवे में निजीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में सरकार देश में कुछ स्टेशनों के समग्र विकास हेतु निजी निवेश को आकर्षित करने की योजना बना रही है और यदि ऐसा होता है तो यह रेलवे में निजीकरण की ओर दूसरा बड़ा कदम होगा।
भारतीय रेलवे की सबसे तेज़ ट्रेन, “ट्रेन 18” या जिसे आमतौर पर वंदे भारत के नाम से जाना जाता है, पूरी तरह से वातानुकूलित कुर्सी वाली एक प्रतिष्ठित ट्रेन है और इसे कानपुर और प्रयागराज के माध्यम से दिल्ली से वाराणसी के बीच संचालित किया जाता है। अपने टेस्ट रन में, यह मेक इन इंडिया पहल के तहत 180 किमी प्रति घंटे की यात्रा करने वाली एकमात्र स्वदेशी ट्रेन है। लेकिन गति प्रतिबंधों के कारण, यह 130 किमी/घंटा की गति से चलने वाले रूट ट्रैक की अधिकतम गति सीमा से अधिक नहीं हो सकता है।
सबसे पहले कब चली रेल
कितना लंबा नेटवर्क है भारतीय रेलवे का
- भारतीय रेलवे का नेटवर्क 1.16 लाख किमी लंबा है। कोई 15 हजार रेलगाड़ियां इस नेटवर्क पर दौड़ती हैं। इस नेटवर्क पर 6 हजार से ज्यादा स्टेशन हैं। करीब 2 करोड़ लोग रोज रेलगाड़ियों के माध्यम से इधर से उधर आते-जाते हैं।
दुनिया का चौथा नेटवर्क
- भारतीय रेलवे का नेटवर्क दुनिया में अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है। हालंकि तकनीक के मामले में ये तीनों देश भारत से कुछ या बहुत आगे हैं, किंतु भारतीय रेलवे भी इनसे एकदम उन्नीस भी नहीं है, बीस ही है।
चीन आगे निकल गया
- भारत में सबसे पहले रेल 1853 में दौड़ी थी, जबकि चीन में इसके 23 साल बाद यानी 1876 में। जब भारत आजाद हुआ तो भारत में रेल नेटवर्क की कुल लंबाई 53,596 किमी थी, जबकि चीन का रेल नेटवर्क सिर्फ 27,000 किमी ही था।
- आजादी के इन 65 वर्षों में भारत में केवल 10,000 किमी की या उसे कुछ ही अधिक बढ़ोतरी हो पाई है, जबकि चीन 78,000 किमी के रेल नेटवर्क के साथ भारत से काफी आगे निकल गया है तथा उसका रेल नेटवर्क भारत की तुलना में फैलता ही जा रहा है। उसने ठेठ तिब्बत तक रेल लाइन डाल दी है।
तीन तरह की पटरियां
भारतीय रेलवे में तीन तरह की पटरियां बिछी हुई हैं, ये हैं- बड़ी लाइन, छोटी लाइन तथा संकरी लाइन। इनमें से बड़ी लाइन की पटरियों का संजाल भारत के अधिकांश हिस्सों में फैला हुआ है। अधिकतर गाड़ियां इसी पटरी पर चलती हैं।
- छोटी लाइन की पटरियां अब धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं। मध्यप्रदेश में संभवत: रतलाम से अकोला तक का छोटी लाइन का नेटवर्क बचा हुआ है। यह भाग भी अब शीघ्र ही बड़ी लाइन में बदल दिया जाएगा।
- संकरी लाइन का भी भाग मप्र में संभवत: नागपुर-छिंदवाड़ा-जबलपुर वाले भाग में ही शेष रह गया है, जो कि भविष्य में बड़ी लाइन में बदल दिया जाएगा। इसके बाद शायद ही कोई छोटी या संकरी लाइन मप्र में शेष रह पाएगी।
सस्ती सवारी, रेलगाड़ी हमारी
भारतीय रेलवे दुनिया में संभवत: सबसे सस्ता रेलवे है। कोई 10 पैसे प्रति किमी की दर से रेलवे द्वारा किराया वसूला जाता है, जबकि बसों में किराया इससे करीब 10 गुना ज्यादा यानी 1 रुपए प्रति किमी के करीब है। यही कारण है कि सस्ता होने के कारण रेलगाड़ियों में काफी भीड़भाड़ रहती है। लोग डिब्बों में ठूंस-ठूंसकर भरे रहते हैं। वार-त्योहार व शादी-ब्याह तथा ग्रीष्मकालीन अवकाश के दिनों में तो किसी भी श्रेणी में जगह खाली नहीं रहती है। वेटिंग काफी लंबी हो जाती है।
तीन तरह की रेलगाड़ियां व सुविधाएं
- आमतौर पर जनता की सुविधा हेतु 3 तरह की रेलगाड़ियां चलाई जाती हैं। ये हैं - पैसेंजर, एक्सप्रेस व मेल (एक्सप्रेस)। इनमें से पैसेंजर का किराया सबसे कम होता है। एक्सप्रेस का उससे ज्यादा तथा मेल (एक्सप्रेस) का सबसे ज्यादा किराया लगता है।
- जनरल बोगी (सेकंड क्लास) का किराया सबसे कम होता है, जबकि स्लीपर में उससे ज्यादा तथा एसी का किराया सबसे अधिक लगता है।
- जनरल बोगी में साधारण-सी सुविधाएं होती हैं। स्लीपर में जनरल से थोड़ी अच्छी व सोने की सुविधा होती है, जबकि एसी कोच में वातानुकूलन समेत 'ए' क्लास की सुविधाएं मिलती हैं।
काफी पूंजी की जरूरत
- नई रेलवे लाइन डालने व अन्य सुविधाओं के लिए रेलवे को काफी पूंजी की जरूरत है, किंतु राजनीतिक कारणों से रेलवे का इतना मामूली किराया पिछले 8-10 वर्षों में बढ़ाया गया है कि वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है। अगर थोड़ी भी ज्यादा वृद्धि कर दी जाए तो रेलवे के पास काफी पूंजी आ सकती है और वह अपना कायाकल्प कर सकता है। किन्तु वोटों की राजनीति के चलते रेलवे को मोहरा बनाया जा रहा है, जो इसके लिए नुकसानदेह ही साबित होगा।
- इतना सब होने के बावजूद आज भी रेलगाड़ी की सवारी हम सबको खूब लुभाती है। हर कोई इसमें यात्रा करना चाहता है व चाहेगा, आखिर क्यों नहीं आरामदेह जो है।
- जिन्हें बस या अन्य साधनों से परेशानी होती है, वे इसी में बैठना पसंद करते हैं। तो फिर देर किस बात की, आप भी तैयार हो जाइए लेलगाली' में बैठने के लिए।
- मुंबई और अमृतसर के बीच चलने वाली गोल्डन टेंपल ट्रेन 1 सितंबर को अपने 84 साल पूरे कर चुकी है। वर्ष 1928 में शुरू हुई यह ट्रेन कभी देश की सबसे लंबी और तेज गति से चलने वाली ट्रेन हुआ करती थी।
- उस समय यह पाकिस्तान के पेशावर को मुंबई से जोड़ती थी। अविभाजित हिंदुस्तान के फ्रंट से चलने वाली इस ट्रेन का नाम पहले फ्रंटियर मेल था। यह कोटा में इतनी मशहूर थी कि लोग इसकी आवाज सुनकर ही अपनी घड़ी का टाइम सेट करते थे।
- बंटवारे के बाद से यह ट्रेन मुंबई से अमृतसर के बीच में चल रही है। नाम बदलने के बावजूद कोटा में आज भी लोग इसको फ्रंटियर मेल के नाम से बुलाते हैं। इस ट्रेन से कोटा की कई यादें जुड़ी हैं।
- तब तीन टुकड़े कर दिए थे ट्रेन के
इस ट्रेन के मुख्य गाड़ी नियंत्रक रहे अब्दुल मुईद बताते हैं कि 2 मई 1974 को ऐतिहासिक रेल हड़ताल के दौरान डिब्बों के बीच के ज्वॉइंट खोलकर इस ट्रेन के कोटा में तीन टुकड़े कर दिए थे। उस समय स्टेशन पर लाठीचार्ज भी हुआ था। उस समय ड्राइवर मिस्टर विलियम इस ट्रेन को जैसे-तैसे छुड़ा कर ले गए थे।
- एक पैसे में मिलते थे चमन के अंगूर
रेलवे में रहे वरिष्ठ बाबू रामस्वरूप सिंह ने बताया कि तब इस ट्रेन में पेशावर से चमन के अंगूर आते थे, जो कोटा में कभी-कभी ही देखने को मिलते थे। यह अंगूर इतने रसीले और मीठे होते थे कि दिख जाएं तो लोग मांगने में भी संकोच नहीं करते थे।
- फर्स्ट क्लास में सलाम करते थे हैड टीटी
उस समय इस ट्रेन में फर्स्ट क्लास में सफर करने वाले का अलग ही सम्मान होता था। फर्स्ट क्लास का इतना रुतबा था कि ट्रेन के रुकने पर हैड टीटी आकर डिब्बे में सलाम मारकर सार-संभाल करते थे। भोजनालय में इतना स्वादिष्ट खाना बनता था कि शहर से लोग डबल रोटी लेने ट्रेन तक जाया करते थे।
वक्त के साथ आगे बढ़ता रेलवे
समय के साथ साथ भारत के रेलवे ने काफ़ी प्रगति की हैं। लगातार रेलवे ट्रैक को भारतीय रेलवे बिछाने का कार्य कर रही है। और सम्पूर्ण भारत के लोगों को रेलवे से परिचय कराने का प्रयास कर रहीं है। भारतीय रेलवे आज लोगों के जीवन का आधार बन गया है। भारतीय रेलवे लोगों को कम किरयाए पर एक राज्य से दूसरे राज्य ले जानें का कार्य करती हैं।
वर्तमान समय में रेलवे की स्तिथि
और यह जानें की ऐसा करने का कारण क्या हैं?
भारत की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस के बाद अब नीति आयोग ने देश की कुछ अन्य ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों के संचालन के निजीकरण का सुझाव दिया है। ध्यातव्य है कि नीति आयोग एक व्यापक योजना पर कार्य कर रहा है, जिसमें रेलवे स्टेशनों के आसपास के क्षेत्र के समग्र विकास की परिकल्पना की गई है और अनुमान के मुताबिक इसमें निजी निवेश आकर्षित करने की प्रबल संभावना है। विदित है कि भारत के पास अमेरिका, चीन और रूस के बाद दुनिया में चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। एक अनुमान के मुताबिक, भारतीय रेलवे प्रतिदिन लगभग 2.5 करोड़ लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है और इस कार्य के लिये उसके पास तकरीबन 1.3 मिलियन कर्मचारी हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय रेलवे का संपूर्ण बुनियादी ढाँचा रेलवे बोर्ड द्वारा प्रबंधित है और भारतीय रेल सेवाओं पर उसका एकाधिकार है, परंतु बीते 2 दशकों में भारतीय रेलवे में निजीकरण का विषय चर्चाओं का केंद्र बिंदु रहा है। यह सच है कि भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सेवाएँ देने हेतु प्रशंसा का हकदार है, परंतु कुछ पहलुओं जैसे- दुर्घटना, खानपान और समय की पाबंदी आदि के कारण भारतीय रेलवे को समय-समय पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है और इन्हीं आलोचनाओं ने भारतीय रेलवे में निजीकरण को भी हवा दी है।
निजीकरण से आशय
सामान्यतः निजीकरण का आशय निजी मालिकों को राज्य के स्वामित्त्व वाले उद्यमों के हस्तांतरण से है। ध्यातव्य है कि यह दुनिया भर में एक महत्त्वपूर्ण नीति उपकरण बन गया है।
बीते कुछ दशकों से निजी और सार्वजानिक क्षेत्र में श्रेष्ठता की बहस काफी प्रबल हो गई है और इसी कारण निजीकरण भी चर्चाओं के केंद्र में रहा है।
निजीकरण के उद्देश्य
सरकार के बोझ को कम करना
प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना
सार्वजानिक वित्त में सुधार करना
अनावश्यक हस्तक्षेप को कम करना
गुणवत्ता में सुधार करना
रेलवे में निजीकरण के कारण
रेलवे अपनी सेवाओं जैसे- टिकटिंग, खासितंबर 2003 में प्रशासन को मज़बूत करने के उद्देश्य से ज़ोन की संख्या को बढ़ाकर 12 कर दिया गया जिसके बाद कई अन्य मौकों पर रेलवे ज़ोन्स की संख्या को बढ़ाया गया और वर्तमान में देश में कुल 17 ज़ोन मौजूद हैं।
देश में जैसे-जैसे रेलवे नेटवर्क का विकास हुआ, रेलवे के संचालन और प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ भी सामने आने लगीं और इन चुनौतियों से निपटने के लिये नए विकल्पों की खोज की जाने लगी। कई विशेषज्ञ रेलवे के निजीकरण को इसी प्रकार के एक विकल्प के रूप में देखने लगे।
वर्ष 2019 में लखनऊ से नई दिल्ली के बीच भारत की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस की शुरुआत हुई, जिसे रेलवे में निजीकरण की दिशा में एक बड़ा कदम माना गया।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में सरकार देश में कुछ स्टेशनों के समग्र विकास हेतु निजी निवेश को आकर्षित करने की योजना बना रही है और यदि ऐसा होता है तो यह रेलवे में निजीकरण की ओर दूसरा बड़ा कदम होगा।नपान, कोच रखरखाव और टिकट चेकिंग आदि के विषय में ग्राहकों को संतुष्ट करने में असफल रहा है और यह आम लोगों की रेलवे के प्रति नाराज़गी का प्रमुख कारण है।
तकनीकी स्तर पर भी रेलवे सेवाओं की गुणवत्ता के उच्च मानकों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाया है और यही कारण है कि समय-समय पर रेल दुर्घटना की खबरें सामने आती रही हैं।
इसके अलावा रेलगाड़ियों का समय प्रबंधन भी भारतीय रेलवे के समक्ष एक बड़ी चुनौती के रूप में मौजूद है।
भारतीय रेलवे में सुधार हेतु नीति निर्माण के लिये वर्ष 2014 में गठित बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिशें इस संदर्भ में सहायक साबित हो सकती है।
रेलवे में निजीकरण
संदर्भ
भारत की पहली प्राइवेट ट्रेन तेजस एक्सप्रेस के बाद अब नीति आयोग ने देश की कुछ अन्य ट्रेनों और रेलवे स्टेशनों के संचालन के निजीकरण का सुझाव दिया है। ध्यातव्य है कि नीति आयोग एक व्यापक योजना पर कार्य कर रहा है, जिसमें रेलवे स्टेशनों के आसपास के क्षेत्र के समग्र विकास की परिकल्पना की गई है और अनुमान के मुताबिक इसमें निजी निवेश आकर्षित करने की प्रबल संभावना है। विदित है कि भारत के पास अमेरिका, चीन और रूस के बाद दुनिया में चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। एक अनुमान के मुताबिक, भारतीय रेलवे प्रतिदिन लगभग 2.5 करोड़ लोगों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती है और इस कार्य के लिये उसके पास तकरीबन 1.3 मिलियन कर्मचारी हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय रेलवे का संपूर्ण बुनियादी ढाँचा रेलवे बोर्ड द्वारा प्रबंधित है और भारतीय रेल सेवाओं पर उसका एकाधिकार है, परंतु बीते 2 दशकों में भारतीय रेलवे में निजीकरण का विषय चर्चाओं का केंद्र बिंदु रहा है। यह सच है कि भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में सेवाएँ देने हेतु प्रशंसा का हकदार है, परंतु कुछ पहलुओं जैसे- दुर्घटना, खानपान और समय की पाबंदी आदि के कारण भारतीय रेलवे को समय-समय पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है और इन्हीं आलोचनाओं ने भारतीय रेलवे में निजीकरण को भी हवा दी है।
निजीकरण से आशय
सामान्यतः निजीकरण का अर्थ निजी मालिकों को राज्य के स्वामित्त्व वाले उद्यमों के हस्तांतरण से है। वास्तविकता यह की दुनिया भर में यह एक महत्त्वपूर्ण नीति उपकरण बन गया है।
बीते कुछ दशकों से निजी और सार्वजानिक क्षेत्र में श्रेष्ठता की बहस काफी प्रबल हो गई है और इसी कारण निजीकरण भी चर्चाओं के केंद्र में रहा है।
निजीकरण के उद्देश्य
सरकार के बोझ को कम करना
प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना
सार्वजानिक वित्त में सुधार करना
अनावश्यक हस्तक्षेप को कम करना
गुणवत्ता में सुधार करना
रेलवे में निजीकरण के कारण
भारतीय रेलवे उन चुनिंदा सरकारी स्वामित्त्व वाले उपक्रमों की सूची में आती है जिसे साल-दर-साल नुकसान का सामना करना पड़ रहा है।
भारतीय रेलवे अपने बुनियादी ढाँचे और सेवाओं के आधुनिकीकरण के साथ तालमेल रख पाने में असफल रहा है। हालाँकि वर्तमान में इस दिशा में कार्य जारी है।
रेलवे अपनी सेवाओं जैसे- टिकटिंग, खानपान, कोच रखरखाव और टिकट चेकिंग आदि के विषय में ग्राहकों को संतुष्ट करने में असफल रहा है और यह आम लोगों की रेलवे के प्रति नाराज़गी का प्रमुख कारण है।
तकनीकी स्तर पर भी रेलवे सेवाओं की गुणवत्ता के उच्च मानकों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाया है और यही कारण है कि समय-समय पर रेल दुर्घटना की खबरें सामने आती रही हैं।
इसके अलावा रेलगाड़ियों का समय प्रबंधन भी भारतीय रेलवे के समक्ष एक बड़ी चुनौती के रूप में मौजूद है।
भारतीय रेलवे में सुधार हेतु नीति निर्माण के लिये वर्ष 2014 में गठित बिबेक देबरॉय समिति की सिफारिशें इस संदर्भ में सहायक साबित हो सकती हैं।
बिबेक देबरॉय समिति
वर्ष 2014 में रेलवे बोर्ड ने प्रमुख रेल परियोजनाओं के लिये संसाधन जुटाने और रेलवे बोर्ड के पुनर्गठन हेतु एक समिति का गठन किया था।
इस समिति ने वर्ष 2015 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और रेल के डिब्बों तथा इंजन के निजीकरण का पक्ष लिया।
समिति की मुख्य सिफारिशें
रेलवे के बुनियादी ढाँचे के लिये एक अलग कंपनी का निर्माण।
ट्रेन संचालन को निजी लोगों के लिये खोलना।
भारतीय रेलवे को अपनी जटिल लेखांकन पद्धति को छोड़कर राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मानकों को अपनाना चाहिये।
भारतीय रेलवे में भर्ती के विभिन्न माध्यमों को सुव्यवस्थित किया जाना चाहिये।
रेलवे में निचले स्तर पर विकेंद्रीकरण की आवश्यकता है।
माल और यात्री गाड़ियों को चलाने के लिये निजी क्षेत्र को अनुमति दी जानी चाहिये।
नई लाइनों के निर्माण में रेलवे को राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करना चाहिये।
क्या लाभ होगा निजीकरण से
बेहतर बुनियादी ढाँचा
निजीकरण के पक्ष में एक तर्क यह दिया जाता है कि इससे बेहतर बुनियादी ढाँचे को बढ़ावा मिलेगा और यात्रियों के लिये बेहतर सुविधाएँ उपलब्ध होंगी। उम्मीद है कि रेलवे में निजी कंपनियों के आने से बेहतर प्रबंधन संभव हो पाएगा।
गुणवत्ता और किराए के मध्य संतुलन
संभवतः रेलवे से लोगों को सबसे अधिक शिकायत यह रहती है कि प्रदान की गई सेवाओं की गुणवत्ता यात्रियों द्वारा किये गए भुगतान से मेल नहीं खाती है। रेलवे में निजीकरण के समर्थक मानते हैं कि इसके पश्चात् उपरोक्त समस्या को आसानी से संबोधित किया जा सकता है।
दुर्घटनाओं में कमी
कई अध्ययनों में सामने आया है कि देश में ट्रेन दुर्घटनाओं का सबसे मुख्य कारण रखरखाव की कमी है और निजीकरण समर्थक मानते हैं कि यदि हमें इन दुर्घटनाओं पर रोक लगानी है तो निजी क्षेत्र को प्रवेश की अनुमति देनी होगी।
प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि
अभी तक रेलवे में रेलवे बोर्ड का एकाधिकार है, परंतु निजीकरण के माध्यम से इस क्षेत्र में एकाधिकार को समाप्त कर प्रतिस्पर्द्धा लाई जा सकती है, ताकि ग्राहकों को बेहतर-से-बेहतर सुविधा प्रदान की जा सके।
रेलवे में निजीकरण के नुकसान
सीमित कवरेज
यदि रेलवे का स्वामित्त्व भारत सरकार के पास ही रहता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि वह लाभ की परवाह किये बिना राष्ट्रव्यापी कनेक्टिविटी प्रदान करती है। परंतु रेलवे के निजीकरण से यह संभव नहीं हो पाएगा, क्योंकि निजी उद्यमों का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है और उन्हें जिस क्षेत्र से लाभ नहीं होता वे वहाँ कार्य बंद कर देते हैं।
सामाजिक न्याय
निजी उद्यमों का एकमात्र उद्देश्य लाभ कमाना होता है और रेलवे में लाभ कमाने का सबसे सरल तरीका किराए में वृद्धि है और यदि ऐसा होता है तो इसका सबसे ज़्यादा असर आम नागरिकों पर पड़ेगा।
जवाबदेही
निजी कंपनियाँ अपने व्यवहार में अप्रत्याशित होती हैं और इनमें जवाबदेहिता की कमी पाई जाती है, जिसके कारण रेलवे जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में इनके प्रयोग का प्रश्न विचारणीय हो जाता है।
निष्कर्ष
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि देश में रेलवे के समक्ष चुनौतियाँ नहीं हैं, परंतु निजीकरण द्वारा एकपक्षीय चुनौतियों का हल नहीं हो सकता, इसलिये यह आवश्यक है कि एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जाए और सभी पहलुओं को ध्यान में रखकर आगे बढ़ा जाए।