ऋण पत्र क्या है? ऋण पत्र के प्रकार तथा शोधन की विभिन्न विधियां
कंपनी अधिनीय में ऐसा प्रावधान है कि यदि कंपनी की अंशपुंजी उसकी आवश्यकता से कम हैं, तो वह ऋण पत्रों पर जनता से ऋण ले सकती हैं। इस ऋण के बदले में जो ऋणदाताओं को पत्र दिए जाते हैं, उन्हे ऋण पत्र कहते हैं।
भारतीय कंपनी अधिनियम 1956 की धारा 2(12) के अनुसार ऋण पत्र में कम्पनी का ऋण स्टॉक बॉन्ड और कोई भी दूसरा प्रतिभूति शामिल रहती हैं, चाहें इनमें से कोई संपति के आधार पर हो या न हो। धारा 16 के अनुसार ऋण पत्रों का निर्गमन उस समय तक नहीं जाता जब तक उसका उल्लेख प्रविवरण में न कर दिया जाए। धारा 17 के अनुसार ऋण पत्र धारियों को वोट देने का अधिकार नहीं होता , परंतु अंसधारियो के सदस्य रजिस्टर के समान इनका भी रजिस्टर रखा जाता है।
ऋण पत्रों के निम्न प्रकार होते हैं।
ऋण पत्र क्या है? ऋण पत्र के प्रकार तथा शोधन की विभिन्न विधियां
1. असुरक्षित या साधारण अथवा नग्न ऋण पत्र:
इस ऋण पत्र के धारकों को कंपनी से प्रतिभूति प्राप्त नहीं होती, अत: ऐसे ऋणपत्र इस बात के प्रमाण होते हैं कि कंपनी उन पर अंकित धन राशि के देनदार है। कंपनी के समापन समय ऐसे ऋण पत्रों का भुगतान साधारण लेन दारो की भांति किया जाता हैं।
2. रजिस्टर्ड ऋण पत्र:
इन ऋण पत्रों का पूरा विवरण पुस्तको में रखा जाता हैं। कंपनी की अनुमति के बिना इनका हस्तांतरण नहीं हो सकता है।
3. सुरक्षित अथवा बंधक ऋण पत्र :
ऐसे ऋण पत्रों के धारकों को कंपनी के संपति पर प्रभार या बंधक मिला होता है। यदि कंपनी अपने लेन दारों को पूर्ण भुगतान करने में असमर्थ होती हैं तो ऐसे ऋण पत्रों को धारक कंपनी की बंधक रखी हुईं संपत्ति से अपनी धनराशि वसूल कर सकते हैं।
4. विमोचनशील ऋण पत्र:
इन ऋण पत्रों का भुगतान एक निश्चित अवधि में अथवा सूचना देने पर किया जा सकता है। प्राय: ऐसे ऋण का भुगतान लाभ से अथवा संचित कोष से नए ऋण पत्रों का निर्ग्रमण करके किया जाता हैं।
5. अविमोचनशील ऋण पत्र:
ऐसे ऋण पत्र का भुगतान कंपनी के समापन की दशा में ही होती हैं।
6. परिवर्तित ऋण पत्र:
इस प्रकार के ऋण पत्रों का हस्तांतरण केवल सुपुर्दगी मात्र से हो जाता हैं। इनके स्वामियों का नाम कंपनी के रजिस्टर में नहीं लिखा जाता। जिस व्यक्ति के पास ये ऋण पत्र होते हैं, वहीं उसका स्वामी माना जाता हैं।
7. वाहक ऋण पत्र:
इन ऋण पत्रों का हस्तांतरण केवल सुपुर्दगी मात्र से हो जाता हैं
ऋण पत्रों का निर्गमन भी अंशो के तरह ही सम मूल्य पर या बट्टे पर किया जा सकता है। निर्गमन राशि भी अंशो की तरह ही किस्तों में या एक मुस्त ली जा सकती हैं। निर्गमन पर परविस्टया भी अंशो के निर्गमन की तरह ही की जाती हैं, केवल अंशपुनजी खाता की जगह ऋणपत्र खाता जमा किया जाता हैं। ऋण पत्रों पर अभिदान , अदत्त याचना का अग्रिम में प्राप्त होना , ऐसी स्थिति आ सकती हैं।
अंशो की भांति ही ऋण पत्रों का निर्गमन सम्मूल्य पर प्रीमियम पर और बट्टे पर किया जा सकता है। ऋण पत्रों के निर्गमण भांति ही होते हैं। अंतर केवल इतना ही होता हैं कि परविस्टयों में अंशपुंजी खाते के स्थान पर ऋणपत्र खाता लिखा जाता हैं।
ऋण पत्र क्या है? ऋण पत्र के प्रकार तथा शोधन की विभिन्न विधियां
ऋण पत्रों के शोधन की निम्न विधियां हैं।
1 अवधि संपाप्त होने पर ऋण पत्र धारियों का भुगतान करके यह भुगतान निर्गमन की शर्त के अनुसार सम्मुल्य पर या प्रीमियम पर या बट्टे पर विचार किया जा सकता है।
2. सामान्य बाजार में ऋण पत्रों का क्रय करके।
3. प्रति वर्ष कुल ऋण पत्रों में से कुछ का भुगतान करके।
यह अवधि संपाप्त होने पर ऋण पत्रों का भुगतान प्रीमियम पर किया जाता है तो यह ज्ञात हानि होती हैं। अतः इसके लिए आवश्यक है कि ऋण पत्रों के जीवनकाल में ही इस हेतु आवश्यक रकम का प्रावधान कर लिया जाए। इसके लिए आवश्यक अनुपातिक रकम से प्रति वर्ष लाभ हानि खाते को नाम एवम ऋण पत्रों के शोधन पर प्रीमियम खाते को जमा किया जाता है। यदि अंश प्रीमियम खाता के नाम से कोई राशि जमा हो तो उसका उपयोग भी ऋण पत्रों के शोधन पर प्रीमियम के भुगतान में किया जा सकता है। ऋण पत्रों पर देय प्रीमियम को बोनस भी कहते हैं।
ऋण पत्रों के शोधन के लिए सीकिंग फंड की स्थापना भी की जाती हैं। सीकिंग फंड एक ऐसा संचय है जो प्रतिवर्ष लाभों में से किया जाता हैं एवम के व्यापार से बाहर निश्चित अवधि तथा निश्चित राशि के लिए विनियोग कर दिया जाता हैं। तत्पश्चात ऋण पत्रों के भुगतान के समय उन विनियगो को बेच दिया जाता हैं एवम ऋण पत्रों का भुगतान कर दिया जाता हैं।
ऋण पत्रों के भुगतान के लिए सामान्यता दो प्रकार के सीकिंग फंड बनाए जाते हैं। संचय और असंचय । संचय सीकिंग फंड में ब्याज का विनियोग कर दिया जाता है। जबकि असंचय सीकिंग फंड में प्रति वर्ष लाभ हानि खाते से निकली गई राशि का विनियोग किया जाता हैं। इसमें अर्जित ब्याज का विनियोग नही किया जाता।