चार्ल्स प्रथम के शासनकाल में इंगलैंड में हुए गृहयुद्ध के कारण एवं परिणाम (Causes and consequences of the civil war in England during the reign of Charles I)
चार वर्षों (1642-46) तक इंगलैंड के राजा चार्ल्स प्रथम और उनके संसद के बीच चलने वाले झगड़े प्रथम गृहयुद्ध के नाम से जाना जाता है। मध्यकालीन इंगलैंड के इतिहास में गृहयुद्ध का अत्यन्त व्यापक महत्त्व है, जिसे हम महान क्रांति की संज्ञा भी दे सकते हैं। गृहयुद्ध ने इंगलैंड के सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक वातावरण में एक व्यापक परिवर्तन ला दिया। वस्तुतः इंगलैंड का गृहयुद्ध जनता की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए नहीं लड़ा गया था। इसका वास्तविक कारण चार्ल्स प्रथम द्वारा संसद के अधिकारी को नष्ट करके जनता की नागरिक स्वतंत्रता को पैरों तले कुचलना था। उसने इंग्लैंड के संविधान के मौलिक सिद्धांतों की अवहेलना की। उसने प्रजा पर अत्याचार करने की भरपूर कोशिश भी की। अतः प्रजा अपनी स्वतंत्रता और धार्मिक विश्वासों की रक्षा के लिए राजा के विरुद्ध विद्रोह करने को विवश हो गई।
चार्ल्स प्रथम के शासनकाल में इंगलैंड में हुए गृहयुद्ध के कारण एवं परिणाम
गृहयुद्ध का तात्कालिक कारण चार्ल्स प्रथम द्वारा पिम व अन्य सहयोगियों को बन्दी बनानेका असफल प्रयत्न किया जाना और सैनिक कानून पास करना था। राजा द्वारा सैन्य नियंत्रण न छोड़े जाने के कारण दोनों पक्षों में शत्रुता बढ़ती गई जो अन्ततः गृहयुद्ध का मूलभूत कारण सिद्ध हुआ। इसके अतिरिक्त पिम और चार्ल्स प्रथम दोनों के व्यक्तित्व भी गृहयुद्ध के लिए उत्तरदायी थे। प्रत्येक पक्ष एक दूसरे को सदैव नीचा दिखाने एवं प्रहार करने के लिए तत्पर रहते थे। ऐसी स्थिति में गृहयुद्ध अवश्यम्भावी हो गया था।
इतिहासकारों के मध्य गृहयुद्ध के कारणों के प्रश्न पर मतैक्य नहीं है। कुछ इतिहासकारों का मत है कि गृहयुद्ध एक धार्मिक एवं राजनीतिक संघर्ष था। वस्तुतः यह धर्म की आड़ में राजनीतिक और वैधानिक स्वतंत्रता का संघर्ष का मूल कारण सम्प्रभु शक्ति के अस्तित्व का था। वास्तविक सम्प्रभूता राजा में निहित रहे या राजा और संसद दोनों में सम्मिलित रूप से रहे, यही भूत प्रश्न था। इतिहासकार रास का मत है कि इंगलैंड का गृहयुद्ध जनता की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए नहीं लड़ा गया था। यद्यपि राजा के विपक्ष में इंगलैंड का काफी प्रभावशाली वर्ग या तथापि यह कहना अनुचित होगा कि इंगलैंड को प्रजा ने निरंकुश सत्ता के विरुद्ध विद्रोह किया वस्तुतः गृहयुद्ध राजा के अधिकारों को सीमित करने के उद्देश्य से भी नहीं लड़ा गया था, बल्कि युद्ध का मूल कारण संसद के एक शक्तिशाली वर्ग का अपने में विभाजित हो जाना था। युद्ध में संसद के सदस्य और प्यूरिटन दल एक साथ हो गये थे और उनका नेतृत्व पीस और हम्पडन जैसे शक्तिशाली नेता कर रहे थे, जबकि राजा की ओर से हाइड, फॉकलैंड जैसे संसद के प्रभावशाली सदस्य थे। दोनों पक्षों के बीच कुछ ऐसे धार्मिक मतभेद उत्पन्न हो गये थे जिसने राजनीतिक मतभेदों को और भी गति प्रदान किया। इन मतभेदों का समाधान केवल युद्ध के द्वारा हो सम्भव था क्योंकि युद्ध ही राजा के विरुद्ध उन्हें एकता प्रदान कर सकता था।
इस तरह गृहयुद्ध का मुख्य कारण राजा और प्रजा अथवा राजा और संसद का झगड़ा मात्र नहीं था बल्कि स्वयं संसद और प्रजा के एक शक्तिशाली वर्ग के पारस्परिक मतभेद थे जिन्हें समाप्त करने के लिए राजा के विरुद्ध युद्ध करना एक साधन बनाया गया था। अतः इंगलैंड की अधिकांश जनता युद्ध के प्रति उदासीन थी। चार वर्षों तक चलने वाली इस युद्ध में भाग लेने वाली प्रजा की संख्या डेढ़ लाख तक भी नहीं पहुँच पाई थी।
चार्ल्स प्रथम के शासनकाल में इंगलैंड में हुए गृहयुद्ध के कारण एवं परिणाम
वस्तुतः गृहयुद्ध के लिए किसी एक कारण को ही उत्तरदायी ठहराना युक्तिसंगत नहीं होग बल्कि सत्यता तो यह है कि युद्ध अनेक कारणों के समन्वय का परिणाम था। राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक आदर्शों के सम्बन्ध में राजा के समर्थकों और संसद के समर्थकों के दृष्टिकोण में काफी अन्तर था। दिनानुदिन परिस्थतियाँ उग्र से उग्रतर रूप धारण करती चली गई और दोनों ही पक्ष युद्ध के लिए कृतसंकल्प हो चले। इस प्रकार गृहयुद्ध के अनेक कारण थे, जिन्हें हम सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक नामक दो कोटि में विभक्त कर सकते हैं।
गृहयुद्ध के सैद्धांतिक कारणों में प्रमुख थे-
(i) राजा किस आधार से शासन कर सकता है, (ii) राजा के विशेषाधिकार क्या हैं ? और (iii) राज्यसत्ता कहाँ निवास करती है ? जबकि गृहयुद्ध के व्यावहारिक कारणों में निम्नलिखित प्रमुख थे
(i) जेम्स प्रथम और चार्ल्स प्रथम की विदेश नीति की असफलता ।
(ii) दोनों शासकों में अनुभव की कमी एवं नवीन सुधारों की माँग को समझने, पूरा करने या टालने की क्षमता का प्रभाव,
(iii) विदेशी आक्रमण के भय की समाप्ति।
, (iv) समाज के विभिन्न वर्गों के पास धन की वृद्धि जबकि राजा के पास धन की कमी.
(v) इंगलैंड में हुए नवीन धार्मिक परिवर्तन और प्यूरिटन तथा कैथोलिक मतावलंभियो के मतभेदों में वृद्धि और पारस्परिक प्रतिद्वंदिता ।
निष्कर्षतः गृह युद्ध के कारणों का विवरण निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत दिया जा सकता हैं ।
राजा के विशेषाधिकार और संसद की सुविधा का प्रश्न-ट्यूडर कालीन राजाओं उनके संसदों ने ही विशेषाधिकार प्रदान करके उन्हें निरंकुश शासक का जामा पहनाया था। किन्तु राजा के निरंकुशता के विरोध की शक्ति ट्यूडर कालीन संसद में नहीं थीं। दूसरी ओर राजा अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग संसद की प्रतिष्ठा एवं जनहित को देखते हुए किया। अतएव उस समय राजा और संसद के बीच कोई विरोध उत्पन्न नहीं हुआ। किन्तु स्टुअर्ट कालीन राजाओं दे अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग अधीरता पूर्वक करना प्रारंभ किया। उन्होंने जनता पर नये-नये करों का बोझ लादना शुरू किया और वे न्यायिक मामलों में भी हस्तक्षेप करने लगे। मंत्रियों की नियुक्ति एवं पदच्युति में भी राजा स्वेच्छाचारी होने लगे। यहाँ तक कि वे संसदीय चुनाव और संसद की कार्यवाही तथा सुविधा पर भी प्रश्नचिन्ह लगा देते थे। राजा की यह स्वेच्छाचारिता न हो संसद की मर्यादा के अनुकूल थी और न जनहित के हित में ही। फलतः संसद अपने अधिकार की रक्षा के नाम पर अधिक जागरूक हो गयी और इन्हें जन समर्थन भी प्राप्त होने लगा। ऐसी स्थिति में दोनों ही पक्षों के लिए अपनी-अपनी सर्वोपरिता सिद्ध करना आवश्यक प्रतीत होने लगा और वे युद्ध के लिए उतावले हो चले।
सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन स्टूअर्ट कालीन संसद सदस्य धनी होने के कारण हठी और अकृतज्ञ थे। स्टूअर्ट राजाओं ने जब देश के धनाढ्यों पर प्रहार करना शुरू किया तो स्वभावतः वे संसद सदस्य राजा के प्रति अत्यधिक रुष्ट हो चले। पुराने करों को पुनर्जीवित कर राजा ने धनी एवं मध्यम वर्ग की सहानुभूति खो दी। विरोध करने वालों को जेल की हवा तक खानी पड़ी। संसद भी अनुचित करों का विरोध करने के लिए कृत संकल्प थी, क्योंकि इसे वह अपने अधिकार का अपहरण समझती थी। इस तरह आर्थिक प्रश्न राजा और संसद के बीच निरन्तर संघर्ष का एक प्रमुख कारण सिद्ध हुआ।
इंगलैंड में हुए नवीन धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक परिवर्तन भी गृहयुद्ध का कारण बना। इंगलैंड के समाज में ट्यूडरकाल से ही कुलीनों के विभिन्न वर्ग पारस्परिक प्रतिस्पर्धा में लगे हुए थे। उनमें धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक सम्मान के प्रश्न पर परस्पर मतभेद था। एकमात्र राजा का विरोध ही उन्हें एकता के सूत्र में आबद्ध कर सकता था। इस तरह उनकी पारस्परिक प्रति स्पद्धा से जो सामाजिक तनाव उत्पन्न हो रहा था, उसने भी गृहयुद्ध की भूमिका तैयार की। संसद में उनके सदस्यों की संख्या में वृद्धि होने के कारण संसद को राजा से संघर्ष करने का एक साधन बना लिया।
धार्मिक मतभेद-गृहयुद्ध का एक प्रमुख कारण स्टूअर्ट काल में राजा और संसद के बीच परस्पर धार्मिक मतभेद का होना था। चर्च का प्रधान होने के नाते धर्म-सुधार राजा के द्वारा ही सम्भव था। अतः प्यूरिटन वर्ग द्वारा राजा के समक्ष धर्म-सुधार का प्रस्ताव रखा गया, जिसे जेम्स प्रथम द्वारा अस्वीकृत किये जाने के कारण प्यूरिटनों में व्यापक असंतोष फैला। अब वे संसद के माध्यम से ही अपने धर्म की रक्षा करना चाहते थे। सौभाग्यवश उन दिनों संसद में प्यूरिटनों का ही वर्चस्व था। अतः स्वाभाविक रूप से संसद के सदस्य विशप व्यवस्था के विरोधी थे। इंगलैंड में स्थापित चर्च व्यवस्था को मिटाने के प्रश्न पर संसद के सदस्य दो सशक्त दलों में विभाजित हो गये। यद्यपि संसद के दोनों सदनों द्वारा धर्म-सुधार विल स्वीकृत नहीं हो पाया, परन्तु इससे संसद की एकता भी भंग हो गयी और गृहयुद्ध के असर परिलक्षित होने लगे। इस तरह धार्मिक मतभेद गृहयुद्ध का एक प्रधान कारण सिद्ध हुआ।
राजा का चरित्र -
स्टुअर्ट वंश के राजाओं के समक्ष ट्यूडर वंशीय शासकों की भौति कोई आंतरिक एवं वैदेशिक समस्या नहीं रह गई थी। वाणिज्य व्यापार में वृद्धि के फलस्वरूप इंगलैंड धनधान्य से परिपूर्ण था। ऐसी सुखद परिस्थिति को निरन्तर गति प्रदान करने के लिए आकर्षक चरित्र देश के और अधिक सुखदायी बनाने के बजाए अभिशापमयी सिद्ध हुआ। जेम्स प्रथम को जहाँ एक ओर विद्वता का घमण्ड था वहीं दूसरी ओर चार्ल्स प्रथम जिदी और अदूरदर्शी थे। उन्होंने सत्ता पर अपना नियंत्रण कायम रखने के लिए जरूरत से अधिक अधीरता का परिचय दिया। अपनी चारित्रिक दुर्बलताओं के कारण में शासन के अधिकारी वर्ग को भी संतुष्ट रखने में कामयाब न हो सको अन्ततः राजा के प्रबल विरोधियों में व्यक्तिगत शत्रुताको धार्मिक एवं संवैधानिक रूप देकर परिस्थिति को इतना संगीन बना दिया कि राजा और संसद में गृहयुद्ध अनिवार्य हो गया।
चार्ल्स प्रथम के सलाहकार गृहयुद्ध का वातावरण तैयार करने में स्वयं चार्ल्स की धातिरिक दुर्बलताओं को भी उसके प्रमुख सहकारों ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके धार्मिक मामलों के सलाहकार विलियम लॉर्ड कैथोलिकों का कट्टर समर्थक था। अ: Court of Star Chamber और Court of High Commission में प्यूरिटनों को कुचला जाने लगा जिससे देश में बेचैनी फैलने लगी। केताके असैनिक मामलों के सलाहकार बेष्टवर्थ ने अपनी पौतियों से कम समय के सदस्यों के साथ-साथ देश को साधारण जनता का भी राजा का भाबना डाला। इस तरह पास अपने दोनों विवादास्पद व्यक्तित्व वाले सप्ताहकारों के कारण अपनी लोकप्रियता खो दी थी।
चार्ल्स प्रथम का व्यक्तिगत शासन- चार्ल्स प्रथम को निरंकुशवादिता गृहयुद्ध का एक प्रमुख कारण सिद्ध हुआ। चार्ल्स ने लगातार 11 वर्षों तक बिना संसद की सहायता के शासन कर प्रथा को स्वतंत्रता एवं संसद के सम्मान को गहरा आघात पहुंचाया था। अपने निरंकुश शासन के जरिए यह एक बार पुनः देश में देवी अधिकार के सिद्धांत को पुनर्स्थापित करना चाहता था। अतः देश की प्रगति को आश में बैठी जनता के असंतोष को चार्ल्स ने अपने व्यक्तिगत शासन के जरिए और भी भड़का दिया। स्कॉटलैंड ने नेताओं से गुप्त समझौता किये जाने के कारण राजा संसद एवं प्रजा के सन्देह के घेरे में आ गया।
आयरलैंड का विद्रोह
अक्टूबर, 1641 ई० में आयरिश कैथोलिकों ने प्रोटेस्टेंटों के विरुद्ध कर, इंगलैंड के लगभग पाँच हजार प्रोटेस्टेंटों की हत्या कर दी। विद्रोहियों ने यह अफवाह भी फैला दी कि वे चार्ल्स के इशारे पर हो ऐसा काम कर रहे हैं। अतः देश के प्रोटेस्टेंटों का खून खौलने लगा। साथ ही संसद भी राजा के कैथोलिक विरोधी नीति से परिचित हो गई।
महान विरोध-पत्र
आयरलैंड के विद्रोह ने संसद को राजा के प्रति पूर्णतः अविश्वासी बना दिया था। अतः उग्रवादियों ने एक महान विरोध पत्र तैयार किया जिसमें राजा के दुष्कर्मों की सूची, संसद के सुधार और शासन तथा चर्च सम्बन्धी सुधार की योजनाओं का जिक्र किया गया था। इस विरोध पत्र के प्रश्न पर संसद में जोरदार बहस हुई। अन्ततः राजा के पक्षधर शक्तिशाली हो गये और सिंहात्मक उपायों से संसद को दबाने की चेष्टा करने लगे।
पाँच नाइटों का मामला-
चार्ल्स प्रथम की पत्नी फ्रांस की कैथोलिक राजकुमारी थी। अतः इंगलैंड में यह अफवाह फैल गई कि रानी यूरोप से सैनिक सहायता प्राप्त कर संसद को कुचलवा देगी, अतः चार्ल्स की भाँति उनकी रानी भी संदेह के घेरे में आ गई। कॉमन्स सभा के पाँच सदस्यों ने रानी के कार्यों की निन्दा की थी। उत्तेजित होकर राजा ने स्वयं सैकड़ों सैनिकों के साथ सभा भवन को घेर लिया, किन्तु उससे पूर्व हो ये सदस्य गण सभा भवन से भाग निकलने में सफल हो चुके थे। इस घटना से संसद सदस्य उत्तेजित हो उठे और इस तरह गृहयुद्ध सिर पर मंडराने लगी।
मिलिशिया बिल-
गृहयुद्ध में भाग लेने के पूर्व राष्ट्रीय सेना पर नियंत्रण रखना आवश्यक था। इसी उद्देश्य से संसद ने मिलिशिया बिल पास किया, जिसे राजा ने स्वीकृति नहीं दी। अतः दोनों पक्ष अब युद्ध की तैयारी में पूर्णतः जुट गये।
19 निवेदनों की अस्वीकृति-
1 जून, 1641 ई० को 19 निवेदन के रूप में संसद ने राजा के समक्ष कार्य कारिणी, न्याय, चर्च एवं सेना के नियंत्रण के सम्बन्ध में एक प्रस्ताव रखा, जिसे राजा ने पुनः अस्वीकृत कर दिया। क्योंकि इस प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान करने के बाद राजा केवल नाम मात्र का शासक रह जाता। इस प्रस्ताव की अस्वीकृति के साथ ही दोनों पक्षों के बीच गृहयुद्ध प्रारंभ हो गया।
चार्ल्स प्रथम के शासनकाल में इंगलैंड में हुए गृहयुद्ध के कारण एवं परिणाम
गृहयुद्ध के परिणाम ו
गृहयुद्ध में संसद की विजय हुई और चार्ल्स प्रथम को फाँसी के तख्ते पर झूलना पड़ा। चार्ल्स प्रथम की हत्या के बाद इंगलैंड में सावंधनिक विकास का मार्ग साफ हो गया। उसकी हत्या साथ ही देश से निरंकुश राजतंत्र की खत्म हो गयी। लेकिन यह उल्लेखनीय है कि गुह अपने सर्व प्रमुख उद्देश्य की पूर्ति में सफल न हो सका। गृहयुद्ध के बाद भी इंगलैंड में शान्ति और सुरक्षा की व्यवस्था लागू न की जा सकी। राजा की हत्या का क्रॉमवेल ने 'क्रूर आवश्यकता' की संज्ञा दी। राजा की हत्या के बाद सैनिक अधिनायकवाद का नया दौर प्रारम्भ हुआ और स्थानीय सरकार (Local Self Government) की समस्या उत्पन्न हो गयी। फलस्वरूप इंगलैंड में 'Common wealth' सरकार की स्थापना हुई। इस सरकार के अन्तर्गत लॉर्डस सभा तथा राजतंत्र को समाप्त कर उसकी जगह State Council नामक एक प्रशासनिक संस्था की स्थापना की गई। राजा की हत्या के कारण देश में राजा के प्रति लोगों की श्रद्धा बड़ी और बहुत से लोग राजतंत्र को समाप्त कर उसकी जगह State Council नामक एक प्रशासनिक संस्था की स्थापना की गई। राजा की हत्या के कारण देश में राजा के प्रति लोगों की श्रद्धा बढ़ी और बहुत से लोग राजतंत्र के समर्थक हो गये। अतः 1660 ई० में इंगलैंड में राजतंत्र पुनः स्थापित हुई। कॉमनवेल्थ की सरकार वास्तव में सैनिक शासन की प्रतीक थी। यही कारण है कि तंग होकर इंगलैंड की जनता ने 1660 में पुनः राजतंत्र की स्थापना किया, किन्तु राजा की स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही। सिद्धान्ततः राजा अभी भी प्रधान था, किन्तु अब वास्तविक शक्ति संसद में निहित हो गयी। राजा के धन की स्वीकृति के लिए अब संसद की स्वीकृति पर निर्भर रहना पड़ता था। अब विशेषाधिकार प्राप्त न्यायालयों का निर्माण नहीं हो सकता था। राष्ट्रीय नीति के निर्माण में कॉमन्स सभा हाथ बँटाने लगी। रोमन धर्म को अस्वीकार कर राष्ट्रीय चर्च के रूप में भी परिवर्तन हुआ। स्थायी सेना के सम्बन्धों में राष्ट्रीय पैमाने पर प्रतिक्रिया हुई। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गृहयुद्ध का परिणाम इंगलैंड के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुआ।