बुद्धि मापन यंत्र के रूप में WAIS की उपयोगिता
वैसे तो स्टैनफोर्ड बिनें मानदंड को मनोविज्ञान के क्षेत्र में बहुत अधिक लोकप्रियता मिली तथा इसका उपयोग शिक्षा के क्षेत्र के अतिरिक्त नैदानिक क्षेत्र में भी बड़े पैमानें पर होनें लगा। फिर भी , इस मानदंड की कुछ कठिनाइयां हैं, जैसे इस मानदंड द्वारा वैयस्को की बुद्धि को मापने में कठिनाई का अनुभव हुआ, क्योंकि इसमें वैयष्को की बुद्धि को मापने हेतु पर्याप्त पद , विषय या सामग्री नही थी।
इसके द्वारा सभी व्यक्तियों की बुद्धि को एक ही अंक या बुद्धिलब्धि द्वारा वयक्त किया जाता है, जिससे व्यक्ति की बुद्धि का वास्तविक स्वरूप प्रकट नहीं होता। देखा गया कि समान बुद्धिलब्धि वाले दो लोगों के बौद्धिक लक्षणों में बहुत भेद होते हैं। वस्तुत: बुद्धि कई प्रकार की अभिविर्तियों के मेल से बनती है। यही कारण है कि मानदंड का एक भाग किसी को सरल प्रतीक होता हैं तो समान बुद्धिवाले दूसरे को कठीन । साथ ही कुछ लोग मुख्यत: वाचिक अभिविर्ति के होते हैं तो कुछ लोग किर्यात्मक अभिविर्ती के। अतः स्टैनफोर्ड बीनें मानदंड द्वारा इन दोनों प्रकार की अभिवृत्तियों वाले लोगों की बुद्धि की जांच करने में कठिनाई होती है।
उपयुक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए बेलेवू मानशीक चिकत्सा अस्पताल ने 1939 में सामान्य बुद्धि की माप करने के उद्देश्य से एक जांचमाला बनाई जिसमें 10 उपखंड या उपजांच हैं। इस जांचमला से वाचिक और किर्यात्मक दोनों प्रकार की बौद्धिक क्षमता की जांच होती हैं। तथा इसका उपयोग 10 से 59 वर्ष तक के लोगों पर किया जा सकता है।
इसे वैश्लर बेलेवू के परीक्षण के नाम से जाना जाता है। इस परीक्षण को 1955 में संशोधित कर वैशलर ने वैश्लर वयस्क बुद्धि मानदंड प्रस्तुत किया और कुछ ही समय बाद केवल बच्चों की बुद्धि को मापने हेतु भी एक परीक्षण बनाया , जिसे वैश्लर बालबुद्धि परीक्षण मानदंड कहते हैं। ये तीनों परीक्षण कई प्रकार से एक दूसरे के सामान है।
1. तीनों में विचलन बुद्धिलब्धि निकाला जाता है। इसका वर्णन पहले किया जा चुका है।
2. तीनों टेस्ट टेस्ट बैटरी से ही बनाए गए हैं अतः उनके स्वरूप एक दूसरे के सदृश है।
3. तीनों टेस्ट से पूर्ण जांच बुद्धिलब्धी full scale IQ, VERBAL QUOTIENT एंड PERFORMANCE QUOTIEN प्राप्त किए जाते हैं।
वैसलर वयस्क बुद्धि मानदंड WAIS में 11 उपजान्च , जिनमें 6 वाचिक समस्याओं से संबद्ध हैं तथा 5 किर्यात्मक समस्याओं से। वाचिक समस्याओं में सूचना, बोध, गणित, समानताएं, अंकविस्तार और शब्द भंडार से संबंध प्रश्न है। किर्यात्मक समस्याओं में अंकचिन्ह, चित्रपुर्ती , चित्रवैवस्था, ब्लॉक डिजाइन और वस्तु संयोजन आदि योग्यताओं से संबद्ध प्रश्न है प्रत्यक उपपरिक्षण के लिए अलग अलग अंक दिए जाते हैं। जो
इस परीक्षण की एक विशेषता है। किन्तु विभिन्न खंडों के आधार पर जो बहुलब्धि प्राप्त होती हैं, उसकी विश्वसनीयता पूर्ण मानदंड बुद्धिलब्धी से कम होती है।
जहां तक इस टेस्ट की सार्थांकता या वैधता का प्रश्न हैं, इसमें कोई संदेह नहीं कि यह एक सार्थक टेस्ट प्रभावित हुआ है। विधालिय सफलता और इस टेस्ट के बीच ऊंचा सह संबंध सिद्ध हुआ है। शिक्षा, वायवासिक प्रमार्श, वायवासिक चयन आदि क्षेत्रों के अतिरिक्त नैदानिक में भी यह परीक्षण बहुत अधिक उपयोगी है।