अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर निबंध
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस कब मनाया जाता है ?
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को विश्व स्तर पर मनाया जाता है। जिसमें महिलाओं की समाज में निष्पक्ष भूमिका हो।
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है ?
दुनियाभर में महिलाओं के खिलाफ भेद-भाव को खत्म करने के लिए इस दिन को खास सेलिब्रेट किया जाता है। साथ ही इस दिन को इसलिए भी सेलिब्रेट किया जाता है, ताकि महिलाओं के विकास पर ध्यान दिया जा सके। साथ ही उनकी उपलब्धियों पर भी गौर किया जा सके।
सबसे पहले कहां मनाया गया महिला दिवस:
सबसे पहले साल 1909 में न्यूयॉर्क में एक समाजवादी राजनीतिक कार्यक्रम के रूप में महिला दिवस का आयोजन किया गया था. फिर 1917 में सोवियत संघ ने इस दिन को एक राष्ट्रीय अवकाश घोषित किया।तब से धीरे-धीरे तमाम देशों में इस दिन को मनाने की शुरुआत हुई।अब अमूमन सभी देशों में इसे मनाया जाता है. कुछ लोग बैंगनी रंग के रिबन पहनकर इस दिन का जश्न मनाते हैं। आगे हम नारी सशक्तिकरण तथा प्राचीनकाल में महिलाओं की स्थिति के बारे में चर्चा करेंगें।
women empowerment
(नारी सशक्तिकरण)
नारी समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है जिसके बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। नारी के अंदर सहनशीलता, धैर्य, प्रेम, ममता और मधुर वाणी जैसे बहुत से गुण विद्यमान है जो कि नारी की असली शक्ति है। यदि कोई नारी कुछ करने का निश्चय कर ले तो वह उस कार्य को करे बिना पीछे नहीं हटती है और वह बहुत से क्षेत्रों में पुरूषों से बेहतरीन कर अपनी शक्ति का परिचय देती है।
नारी की हिम्मत और सहनशीलता पुरुषो से अधिक है। आज की नारी पुरषों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रही हैं। आज की नारी अपने परिवार के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए अपनी महत्वकांछाओं को पूरा कर रही है वो हर चुनौती का बड़ी दृण्डता से सामना कर रही है, ये संभव हो पा रहा है उस शक्ति के द्वारा जो प्रत्येक नारी के अंदर प्रकृति द्वारा प्रदत है आज की स्त्री अपने व्यक्तित्व से अथाह प्रेम करती है और उसे कुंठित नहीं होने देती है। आज हमारी देश की नारी हर क्षेत्र में अपनी मजबूत हौसलों की उड़ान से पूरी दुनिया में अपना परचम लहराया रही हैं। जो हमारे देश के लिए काफी गर्व की बात है।
नारी शक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण रानी लक्ष्मीबाई है। जिन्होंने अपनी दीर्द्ध निष्ठा से अंग्रेजो से लोहा लिया। और अंग्रेजो का नाकों में दम कर दिया। रानी लक्ष्मीबाई आज वैसे विचारधाराओं कि सिख है। जो महिलाओं को पुरषों से कम समझती है।
प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति
प्राचीन काल में महिलाओं की स्थिति बद से बद्तर थी। पहले लड़कियों को जन्म लेते ही मार दिया जाता था। और जो बच भी जाती थी । तो उनके खेलने कूदने के उम्र में किसी अधर पुरुष के साथ उनका विवाह करा दिया जाता था। उस समय लड़कियों को बोझ समझा जाता था। प्राचीनकाल में बाल विवाह का काफी प्रचलन था।
नारी कल्याण के लिए प्राचीनकाल में भी आवाजें उठाई गई। कई समाज सुधारक नारी कल्याण के लिए आगे आए। जिनमें प्रमुख राजा राम मोहन राय ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। काफी लंबे समय से चली आ रहीं प्रथा सती प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई। कहा जाता है कि
गुप्तकाल में 510 ईसवी के आसपास सती प्रथा के होने के प्रमाण मिलते हैं. ।
सती प्रथा में विधवा महिला को अपने मरे हुए पति के साथ जिंदा जलाया जाता था। जो की नारी की वैसी अवस्था को बतलाता है। जो बिना किसी गलती के मारी जाती थी। और इस तरह सती प्रथा का अंत राजा राम मोहन राय के सहयोग से 4 दिसंबर, 1829 को बंगाल सती रेग्युलेशन में पास किया गया। इस कानून के माध्यम से पूरे ब्रिटिश भारत में सती प्रथा पर रोक लगा दी गई। रेग्युलेशन में सती प्रथा को इंसानी प्रकृति की भावनाओं के विरुद्ध बताया। वह कुछ और दौर था जब महिलाओं को कोई वस्तु समझा जाता था। उन्हे शिक्षा ग्रहण नहीं कराया जाता था। पर आज की नारी सब पर भारी है। आज वह पढ़ भी रही है आगे बढ़ भी रही है। जो हमारे देश की प्रगति के लिए जरूरी भी हैं।
हमारी सरकार भी महिलाओं की प्रगति के लिए सजग हैं। जिसके लिए सरकार कई कल्याणकारी योजनाएं भी चला रही हैं।