A Brief Biography of Karl Marx in hindi

 A Brief Biography of Karl Marx ( कार्ल मार्क्स की एक संक्षिप्त जीवनी)

     कार्ल मार्क्स का जन्म 5 मई 1818 को एक यहूदी परिवार में हुआ था। उनका जन्म प्रशिया के राईन प्रान्त के ट्रीचर नामक स्थान पर हुआ था। उनकी माता हालैंड की एक यहूदी महिला थी। 6 वर्ष की अवस्था तक उनका पालन-पोषण यहूदी संस्कारों के अनुरूप हुआ। उसके पिता हरशेल मार्क्स एक वकील थे और उसकी मां हैनरिटा मार्क्स एक घरेलू कामकाजी महिला थी। 1824 में मार्क्स परिवार ने यहूदी धर्म के स्थान पर ईसाई धर्म अपना लिया।

A Brief Biography of Karl Marx in hindi

              यहूदी धर्म के प्रति मार्क्स की धारणा आजीवन विपरीत रही। मार्क्स अपने पिता की नौ संतानों में सबसे बड़े थे। वे बचपन से अपने घर की अपेक्षा अपने पड़ोसी के घर में अधिक आत्मीयता महसूस करते थे। उनकी शिक्षा 1830 से 1835 तक ट्रिचर के एक स्कूल में सम्पूर्ण हुई। इसके बाद उच्च शिक्षा के लिए उसे 1835 में बॉन विश्वविद्यालय में भेजा गया लेकिन यहां पर उसने कानून की शिक्षा ग्रहण करने की बजाय इतिहास और दर्शन शास्त्र का अध्ययन शुरू हुआ।
इसके एक वर्ष बाद ही मार्क्स ने बर्लिन विश्वविद्यालय में इतिहास व दर्शन पर ही अपना सम्पूर्ण ध्यान लगा दिया। यहां पर उसने हीगल के द्वन्द्ववादी चिन्तन का अध्ययन किया।
1841 में उसने जेना विश्वविद्यालय से ‘डेमोक्रिटस’ और एपिक्यूरस के प्राकृतिक दर्शन मे भेद (The Differences between the Natural Philosophy of Democritus and Epicurus) पर निबन्ध लिखकर अपनी डॉक्टरेट (Ph.D) की उपाधि प्राप्त की।

कार्ल मार्क्स ने समाजवाद को गतिशील शक्ति के रूप में परिवर्तित कर दिया। वह प्रसिद्ध दार्शनिक हीगेल से बहुत प्रभावित था। मार्क्स का काल यूरोप में क्रान्तियों का काल था। वह अपने समय के क्रान्तिकारी आन्दोलनों में रुचि लेने लगा और 1842 ई० में उसने क्रान्तिकारी विचारों से पूर्ण समाचार पत्र का सम्पादन आरम्भ किया। प्रशा की सरकार ने इस पर कठोर प्रतिबन्ध लगा दिया और मार्क्स को पेरिस भाग जाना पड़ा। पेरिस में वह फ्रांसीसी समाजवादियों के सम्पर्क में आया। फ्रेडरिक एंजिल्स से उसकी मित्रता वहीं हुई। एंजिल्स जीवन पर्यन्त मार्क्स का सहयोगी और मित्र बना रहा। 1845 ई० में फ्रांस की सरकार ने भी मार्क्स को निर्वासित कर दिया। वहाँ से वह अपनी पत्नी और एंजिल्स के साथ ब्रुसेल्स चला गया। यहाँ भी उसने अपना समाजवादी प्रचार जारी रखा। इस समय तक मार्क्स की गणना ख्यातिप्राप्त समाजवादियों में होने लगी। समाजवादियों के क्षेत्र में उसकी प्रतिष्ठा इतनी बढ़ गयी थी कि 1847 ई० में जर्मन साम्यवादी लोगों ने उससे प्रार्थना की कि वह पैरिस में होनेवाली साम्यवादियों की महासभा के लिए घोषणा-पत्र (Communist Mani festo) तैयार करे। इस प्रकार 1848 ई० में प्रसिद्ध समाजवादी घोषणा-पत्र प्रकाशित हुआ, जो आधुनिक समाजवाद के जन्म की घोषणा थी। इसमें मार्क्स ने बतलाया था कि मानव का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास है। मानव समाज अनेक वर्गों में विभाजित है जिनमें निरन्तर संघर्ष होता रहता है। धनी वर्ग के लोग गरीबों को सताते रहते हैं। प्रारम्भ में समस्त शक्ति तथा उत्पादन के साधनों पर सामन्तों और पूँजीपतियों का अधिकार था। धीरे-धीरे औद्योगिक क्रान्ति के परिणामस्वरूप यह शक्ति शिक्षित मध्यम वर्ग के पास चली आयी जो पूँजीपति हो गये। ये पूँजीपति अब मजदूरों का शोषण करते हैं और यह कार्य इसी क्रम में तबतक चलता रहेगा जबतक समस्त शक्ति पर मजदूरों का अधिकार नहीं हो जाता मार्क्स ने यह विचार प्रकट किया कि शीघ्र ही एक साम्यवादी क्रान्ति होगी जिससे पूँजीपतियों तथा उनके शासन का अन्त होगा तथा श्रमिक वर्ग शासन पर अधिकार करने में सफल होगा जिसमें समाज का ढाँचा साम्यवादी सिद्धान्तों के अनुकूल हो जायेगा। घोषणा पत्र में मार्क्स ने ओजपूर्ण शब्दों में संसार भर के मजदूरों से अपील की कि "विश्व के मजदूरों एक हो जाओ। तुम्हें पूँजीवाद का नाश करना है तुम्हारे पास खोने के लिए अभावों एवं कष्टों के अतिरिक्त और कुछ नहीं है।" घोषणा-पत्र के प्रकाशित होने के बाद मार्क्स पुनः जर्मनी लैट आया और वहाँ से फिर समाजवादी समाचारपत्र का सम्पादन करने लगा। पर जर्मनी में जब 1848 ई० की क्रान्ति असफल हो गयी तो इस अखबार को बन्द कर देना पड़ा। स्वयं मार्क्स को जर्मनी छोड़कर भागना पड़ा। वह सन्दन चला आया। वहीं उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "दास कैपिटल' (Das Capital) की रचना की। इस पुस्तक के द्वारा एक सर्वथा नवीन विचारधारा प्रवाहित हुई जिसने सम्पूर्ण प्राचीन मान्यताओं को झकझोर कर हिला दिया।

ऐंजिल्स से आर्थिक सहायता प्राप्त करके कार्ल मार्क्स ने निर्बाध रूप से अपने क्रान्तिकारी विचारों को अपनी रचनाओं में प्रस्तुत किया। उसने स्वयं एंजिल्स का ऋण स्वीकार करते हुए अपने समाजवादी चिन्तन को ‘हमारा सिद्धान्त’ की संज्ञा दी है। अपने इस सहयोगी के कारण ही कार्ल मार्क्स दास कैपिटल (Das Capital) जैसे महान ग्रन्थों की रचना कर सका। अपने इस ग्रन्थ के सिद्धान्तों को व्यावहारिक रूप देने के लिए उसने 1864 में लन्दन में प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर संगठन (First International) में जर्मनी में मजदूर वर्ग का प्रतिनिधित्व किया। इसके बाद कार्ल मार्क्स ने अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘दास कैपिटल’ (Das Capital) के शेष भागों को पूरा करने के लिए अपनी लेखनी उठाई। लेकिन खराब स्वास्थ्य के कारण वे इसे पूरा नहीं कर सके और इस साम्यवादी सन्त की कैंसर के रोग के कारण 14 मार्च, 1883 को मृत्यु हो गई।

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