America's War of Independence


अमेरिका का स्वतंत्रता-संग्राम (America's War of Independence)

अमेरिका का स्वतंत्रता-संग्राम

इंगलैण्ड के राजा जेम्स प्रथम की कट्टर धार्मिक नीति से असन्तुष्ट होकर अनेक के प्यूरिटन अमेरिका में जा बसे थे। अमेरिकी उपनिवेशों में बसनेवाले अंगरेज अब भी  अपने को इंगलैण्ड की प्रजा समझते थे। इनका व्यापार इंगलैण्ड से ही होता था लेकिन में मत इंगलैण्ड में व्यापार पर कुछ ऐसे प्रतिबन्ध लगाये गये कि उपनिवेशों और इंगलैण्ड का लिए व सम्बन्ध बिगड़ने लगा । इसके अतिरिक्त, जार्ज तृतीय उपनिवेशों से जनतंत्रीय संस्थाओं और परम्पराओं को समाप्त कर उनपर अपना निरंकुश शासन लादना चाहता था। लेकिन उपनिवेशवासी स्वतंत्रता-प्रेमी थे और धार्मिक स्वतंत्रता प्राप्त करने की आशा से ही अपना देश छोड़कर सहस्रों मील दूर यहाँ आकर बसे थे। अतः जब उनकी स्वतंत्रता होकर पर आघात हुआ तो वे विद्रोह कर बैठे।

अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के कारण :

अमेरिका का स्वतंत्रता-संग्राम

(i) जनसंख्या का पश्चिमी क्षेत्र की तरफ विस्तार :

आबादी का अधिकतर भाग भेजने अमेरिका में पश्चिमी क्षेत्र की तरफ बढ़ता जा रहा था। पहले के निवासी जंगलों को   काटकर भूमि को कृषि योग्य बनाकर आनेवाले दूसरे जत्थे के हाथ उसे बेच डालते थे। इस प्रकार नये-नये कृषि क्षेत्रों के साथ ही अमेरिका की आबादी बढ़ती जा रही  थी । परन्तु 1763 ई० तक ब्रिटेन की सरकार उपनिवेशों के प्रति कोई दृढ नीति नहीं अपना सकी थी। उपनिवेशों की जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। बढ़ती  हुई जनसंख्या के लिए नयी भूमि की आवश्यकता थी। नये क्षेत्रों को आबाद करनेवाले प्रोटेस ऐसा समझते थे कि भूमि पर उनका ही अधिकार है। लेकिन ब्रिटेन  की सरकार को यह आशंका बनी रहती थी कि उपनवेश प्रवर्त्तक किसानों का संघर्ष में  वहाँ के मूल निवासियों के साथ अवश्य हो जायगा। अतः युद्ध रोकने के उद्देश्य से को ब्रिटेन की सरकार ने 1763 ई० में एक घोषणा की जिसके अनुसार नयी जमीन की बिक्री नहीं की जा सकती थी। लेकिन बहुत-से अमेरिकनों ने ब्रिटिश सरकार की घोषणा  को अन्यायपूर्ण बताया। असन्तोष की पहली चिनगारी यहीं से फूटी जिसने आगे चल का कर विस्फोट का रूप धारण कर लिया ।

(ii) उपनिवेश और इंगलैण्ड के बीच आर्थिक सम्बन्ध :

 सतरहवीं-अठारहवीं शताब्दी में इंगलैण्ड की अर्थनीति व्यवसायवाद के सिद्धान्त पर आधारित थी व्यवसायवाद के अनुसार राष्ट्र को महान एवं शक्तिशाली बनाने के लिए आर्थिक उप स्वावलम्बन और सन्तुलित व्यापार आवश्यक थे। उपनिवेशों की उपज पर इंगलैण्ड के का आधिपत्य रहता था। अमेरिकन उपनिवेशों की प्रमुख उपज कपास और तम्बाकू थी। ये दोनों चीजें केवल इंगलैण्ड में ही भेजी जाती थीं। साम्राज्यवादी नीति का आधार था नाविक कानून। नाविक कानून के अनुसार उपनिवेशों का माल इंगलैण्ड के जहाज से ही बाहर भेजा जा सकता था अथवा दूसरे देशों से माल इंगलैण्ड या उपनिवेशों में पहुँचाया जा सकता था। उपनिवेशवासी इस प्रकार की प्रणाली को तोड़ देना चाहते थे क्योंकि इससे एक ओर उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ाता था तो दूसरी और उनकी स्वतंत्र भावना को ठेस पहुँचती थी।

(iii) दृष्टिकोण की भिन्नता

उपनिवेश और इंगलैण्ड के दृष्टिकोण में भी अन्तर था। उपनिवेश में स्वायत्त शासन के विकास के फलस्वरूप धीरे-धीरे आत्मनिर्भरता आ गयी थी। उपनिवेशवासी सामाजिक समानता के पक्षपाती थे। उपनिवेशों में प्रतियोगिता के आधार पर किसी पद पर नियुक्ति की जाती थी। दूसरी ओर अंगरेजी शासन व्यवस्था में कुलीनों का प्रभाव था। उस समय इंगलैण्ड का शासक जॉर्ज तृतीय था। इंगलैण्ड में मतदान का अधिकार थोड़े से लोगों को प्राप्त था। अंगरेजी राजनीति में गरीबों के लिए कोई स्थान नहीं था। उपनिवेशवासियों की नजर में अंगरेजी सरकार में केवल राज्यपालों, सेनाध्यक्षों, प्रतियोगी व्यापारियों तथा वणिकों का ही स्थान था। दोनों के दृष्टिकोण में भिन्नता मतभेद का मुख्य कारण था।

(iv) अमेरिका में राजनीतिक आन्दोलन

इंगलैण्ड की स्वार्थपूर्ण नीति से असन्तुष्ट होकर अमेरिकन अपनी दशा पर विचार करने के लिए विवश हो गये। पैट्रिक हैनरी, जेम्स ओटिस, सेमुल एडम्स और टामस पेन ने स्वतंत्रता के विचारों का प्रचार किया। आरम्भ में तो इन विचारकों ने यह मांग की कि अमेरिकनों की पार्लियामेंट में प्रतिनिधि भेजने का अधिकार मिलना चाहिए क्योंकि बिना प्रतिनिधित्व प्रदान किये उपनिवेशों पर कर लादना व नये नियम बनाना उनके प्रति अन्याय है। ज्यों-ज्यों समय बीतता गया त्यों-त्यों उनका विरोध बढ़ता गया और अन्त में ओटिस आदि लेखकों ने मातृभूमि से सम्बन्ध-विच्छेद करने का सिद्धान्त प्रतिपादित भी किया।

(v) उपनिवेशवासियों का ब्रिटेन के प्रति रूख

प्रारम्भ से ही उपनिवेश में बसनेवाले इंगलैण्ड की सरकार के प्रति कड़ा रुख रखते थे। सताये हुए कैथोलिकों और प्रोटेस्टेण्टों के द्वारा ही उपनिवेश बसा था। निर्वासित व्यक्ति स्वतंत्रता के पुजारी थे। वे अन्धी राजभक्ति के समर्थक नहीं थे। ब्रिटेन के अत्याचार से ऊबकर ये उपनिवेश में स्वतंत्रता की साँस लेना चाहते थे। परन्तु, इंगलैण्ड की सरकार ने जब उपनिवेश को भी अत्याचार और अन्याय का अखाड़ा बना दिया तब ये विद्रोह कर बैठे।

(vi) उपनिवेशों में स्वायत्त शासन की व्यवस्था

बहुत-से उपनिवेशों में अंगरेजों ने स्वायत्त शासन की स्थापना में सहयोग किया था। राज्यपाल की नियुक्ति इंगलैण्ड का सम्राट करता था परन्तु धारा सभा के सदस्यों का निर्वाचन जनता स्वयं करती थी। धारा सभा का व्यवस्थापन और अर्थ पर पूरा नियंत्रण था। राज्यपाल का वेतन भी धारा सभा द्वारा ही निर्धारित होता था। परन्तु धारा सभा को राज्यपाल के इच्छानुसार चलना पड़ता था। व्यापार में भी थोड़ी-सी छूट उपनिवेशवासियों को मिली थी। उपनिवेशवासी मछली, अनाज आदि बाहर भेज सकते थे। उपनिवेशवासियों की रक्षा के लिए ब्रिटिश सेना की व्यवस्था थी परन्तु सेना का खर्च उपनिवेशवासियों को देना पड़ता था। उपनिवेशवासी व्यापारिक प्रतिबन्ध को सहने के लिए तैयार नहीं थे।

(vii) असन्तोषजनक शासन-प्रणाली

उपनिवेश की शासन-प्रणाली असन्तोषजनक थी। कार्यकारिणी और व्यवस्थापिका सभा के बीच निरन्तर संघर्ष होता रहता था। गवर्नर और उसकी काउन्सिल के सदस्य सम्राट द्वारा मनोनीत होते थे। वे सम्राट के प्रति उत्तरदायी थे । गवर्नर को वीटो (veto) का अधिकार (निषेधाधिकार) था। लोकसभा जनता की प्रतिनिधि संस्था थी। अतः लोक सभा की इच्छा की उपेक्षा करने पर व्यवस्थापिका सभा के सदस्य गवर्नर के वेतन को रोक देते थे। उपनिवेशवासी धारा सभा को सर्वशक्तिशाली सभा मानते थे। परन्तु ब्रिटेन की सरकार उसे अधीनस्थ और स्थानीय संस्था मानती थी। फलतः दोनों में संघर्ष होना स्वाभाविक था।

(viii) सप्तवर्षीय युद्ध :

सप्तवर्षीय युद्ध ने अमेरिकी उपनिवेशों को फ्रांसीसियों के आक्रमण की आशंका से मुक्त कर दिया। अमेरिकन सैनिकों के साहसिक कार्य के कारण ही अंगरेजों को विजय मिली थी। युद्ध में सफलता के बाद ब्रिटिश अमेरिकन में आत्मगौरव का भाव पैदा हुआ। उपनिवेशों में एकता का भाव हुआ। युद्ध के कारण आर्थिक संकट उपस्थित हो गया था, व्यापार रुक गया आर्थिक संकट से छुटकारा पाने के लिए उपनिवेशवासी विद्रोह करने को तैयार हो गये।

तात्कालिक कारण :

(ix) ग्रेनविल के आपत्तिजनक कार्य :

ग्रेनविल उपनिवेशों पर राजकीय नियंत्रण कड़ाई के साथ लागू करने का पक्षपाती था। सर्वप्रथम उसने अमेरिका के सम्बन्ध में कागजात पढ़े और उसे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि वहाँ से इंगलैण्ड को केवल दो हजार पौण्ड की वार्षिक आमदनी होती थी। चोरबाजारी रोकने के लिए सबसे पहले उसने एडमिरेल्टी कोर्ट की स्थापना की। उसने जलयान कानून सख्ती के साथ लागू किया। प्रचलित कानूनों को एकत्र कर उसे संशोधित करने का प्रयास किया। ग्रेनविल का कार्य अमेरिकन ब्रिटिश प्रवासी लोगों को अखरने लगा और वे उसे अत्याचारी शासन का प्रारम्भ समझने लगे।
अमेरिका का स्वतंत्रता-संग्राम

(i) शीरा कानून पास करना :

अमेरिका के निवासी फ्रांसीसी पश्चिमी द्वीपसमूह से सस्ता शीरा मंगाते थे। 1773 ई० में शीरा कानून पास हुआ। इसके द्वारा बाहर से आनेवाले शीरे पर चुंगी की दर बढ़ा दी गयी। ग्रेनविल ने चुंगी की दर तो कम कर दी परन्तु वह चुंगी लगाने और वसूलने में सावधानी बरतने लगा। इस कड़ाई से उपनिवेशवासियों को कठिनाई होने लगी और वे शीरा कानून का विरोध करने लगे।

(ii) सीमा-सम्बन्धी घोषणा

1763 ई० में एक शाही घोषणा प्रकाशित की गयी जिसके अनुसार मिसीसिपी नदी के पूरबवाला भाग रेड इंडियन्स के लिए सुरक्षित कर दिया गया। सम्राट द्वारा मनोनीत अध्यक्ष की अनुमति के बिना आदिम निवासी भूमिदान नहीं कर सकते थे। ग्रेनविल का उद्देश्य उक्त घोषणा द्वारा आदिम निवासियों के स्वार्थ की रक्षा गोरों के अत्याचार से करना था। परन्तु उपनिवेशवासी इसे अपने अधिकारों का अतिक्रमण समझ बैठे और वे शाही घोषणा से भयभीत हो गये।

(iii) स्थायी सेना की नियुक्ति

फ्रांसीसियों तथा आदिम जातियों के आक्रमण से उपनिवेशों की रक्षा के लिए ग्रेनविल ने दस हजार सैनिकों की एक स्थायी सेना कायम करनी चाही जिसमें तीन लाख रुपये वार्षिक खर्च बैठता था। ब्रिटेन की सरकार सेना के सारे खर्च का एक तिहाई भाग उपनिवेशों से वसूल करना चाहती थी। प्रस्तावित रकम की प्राप्ति ग्रेनविल स्टाम्प ऐक्ट पास कर पूरा करना चाहता था। उसने उपनिवेशवासियों को खर्च की रकम पूरा करने के लिए एक वर्ष का मौका दिया, परन्तु कोई जवाब नहीं मिला। फलतः ग्रेनविल को 1765 ई० में स्टाम्प ऐक्ट पास करना पड़ा। स्टाम्प ऐक्ट पास होने के साथ ही क्रान्ति की चिनगारी फूट पड़ी।

(iv) स्टाम्प ऐक्ट

इसका विरोध उपनिवेशवासियों ने जोरदार शब्दों में किया। अमेरिका का एक भी प्रतिनिधि ब्रिटेन की पार्लियामेंट में नहीं था। अमेरिकन लोगों को इस प्रकार के अन्य नये कर लगाने की आशंका का अनुभव होने लगा। अतः टैक्स बसूली के समय जहाँ-तहाँ दंगा होने लगा। गवर्नरों के घरों में आग लगा दी गयी। उपनिवेशवासियों के प्रबल विरोध को देखकर रॉकिंघम ने 1766 ई० में स्टाम्प ऐक्ट रद्द कर दिया किन्तु कर की वैधता दिखलाने के लिए उसने एक दूसरा ऐक्ट पास किया।

(v) आयात कर अधिनियम

1767 ई० में चांसलर टाउनशेण्ड हेरिस ने आयात कर अधिनियम पास करवाया। इसके अनुसार चाय, शीशा, कागज और रंग के आयात पर चुंगी लगा दी गयी। उपनिवेशवासियों की दृष्टि में यह अधिनियम औपनिवेशिक राज्य के मौलिक सिद्धान्त पर आघात करनेवाला था।

(vi) चाय कानून

ब्रिटेन की सरकार ने एक नया चाय कानून पास किया जिसके अनुसार ईस्ट इंडिया कम्पनी को सीधे अमेरिका चाय भेजने की अनुमति दी गयी। इस कानून द्वारा अमेरिकन लोगों को सस्ती चाय मिल जाती थी और कम्पनी को भी आर्थिक लाभ होता था। परन्तु उग्रपंथी अमेरिकनों ने इसे ब्रिटिश सरकार की चाल समझा और बोस्टन बन्दरगाह में कम्पनी के चाय से भरे हुए 340 बक्सों को समुद्र में फेंक दिया। बोस्टन चाय दुर्घटना के परिणामस्वरूप इंगलैण्ड में अधिक उत्तेजना फैली। ब्रिटेन की पार्लियामेंट दमनकारी नीति का समर्थन करने लगी और मेसाचुसेट्स ऐक्ट पास किया। इस कानून के द्वारा ब्रिटिश सैनिक कमाण्डर को ही अमेरिकन प्रान्तों का राज्यपाल बना दिया गया। सभी प्रकार के वाणिज्य के लिए बोस्टन बन्दरगाह बन्द कर दिया तथा क्यूबेक ऐक्ट के अनुसार कनाडा की सीमा ओहियो नदी तक बढ़ा दी गयी और वहाँ के कैथोलिकों को विशेष सुविधा दी गयी। कैथोलिक चर्च की प्रधानता कायम होने से प्यूरिटनों को कष्ट हुआ और वे असन्तुष्ट हो गये।

स्वतंत्रता-युद्ध का प्रारम्भ

अमेरिका का स्वतंत्रता-संग्राम


प्रथम कांग्रेस ब्रिटिश सरकार की दमननीति का प्रतिकूल प्रभाव उपनिवेशवासियों पर पड़ा। वे आपस में संगठित हो गये और 2 सितम्बर, 1774 ई० को फिलाडेलफिया में प्रथम कांग्रेस की बैठक बुलायी गयी जिसमें जार्जिया को छोड़कर सभी उपनिवेश सम्मिलित हुए। प्रमुख प्रतिनिधियों में वाशिंगटन, बेंजामिन फ्रेंकलिन, जॉन एडम्स आदि थे। अधिवेशन में उपनिवेशवासियों ने अपने अधिकारों का एक घोषणापत्र तैयार किया। ब्रिटेन की संसद के द्वारा पास किये गये तेरह ऐक्टों को समाप्त करने की मांग की गयी तथा ब्रिटेन के साथ आयात-निर्यात बन्द करने का प्रस्ताव स्वीकृत हुआ। 1775 ई० में लॉर्ड नॉर्थ ने उपनिवेशों के साथ समझौता का प्रस्ताव रखा जिसके अनुसार उपनिवेशवासियों को राजकीय कर से मुक्त कर दिया गया और अब वे स्वेच्छानुसार राज्य के खर्च में सहायता दे सकते थे। परन्तु नॉर्थ का प्रस्ताव देर से आया तबतक युद्ध की घोषणा हो चुकी थी।

द्वितीय कॉंग्रेस:

4 जुलाई, 1776 ई० को फिलाडेलफिया में उपनिवेशवासियों की दूसरी बैठक हुई। टॉमस जेफरसन के नेतृत्व में 'स्वतंत्रता का घोषणापत्र' तैयार किया गया। आजादी की घोषणा के अनुसार अमेरिका एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दुनिया के नक्शे पर आया।

युद्ध और स्वतंत्रता प्राप्ति

स्वतंत्रता की घोषणा के बाद युद्ध में तेजी आ गयी। साधनहीन होने पर भी अमेरिकन सिपाहियों ने 1777 ई० में बरगायन को सरोटोगा की लड़ाई में हरा दिया। स्पेन, फ्रांस और हॉलैण्ड ने इंगलैण्ड के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। 1781 ई० में ब्रिटिश सेनापति लॉर्ड कार्नवालिस ने आत्मसमर्पण कर दिया। 1782 से 83 ई० तक युद्ध जारी रहा। अन्त में अंगरेजों की जीत की सारी आशा समाप्त हो गयी। मजबूर होकर सितम्बर, 1783 ई० में ब्रिटेन को 'पेरिस की सन्धि' करनी पड़ी। इस सन्धि के अनुसार ब्रिटेन ने उत्तरी अमेरिका के तेरह उपनिवेशों की स्वतंत्रता स्वीकार कर ली।
अमेरिका की सफलता और अंगरेजों की असफलता के कारण :
जिस समय अंगरेजों और उपनिवेशवासियों में युद्ध शुरू हुआ, उस समय ऐसा लगता था कि साधनहीन अमेरिकन अस्त्र-शस्त्र से युक्त अंगरेजों का मुकाबला नहीं कर सकेंगे। क्रान्ति की सफलता सम्भावनामात्र थी। अमेरिकन असंगठित थे और उनमें एकता का अभाव था। अमेरिकनों की आर्थिक दशा भी दयनीय थी। इसलिए ऐसा लगता था कि अमेरिकनों की क्रान्ति असफल हो जायगी। लेकिन अमेरिकनों ने युद्धक्षेत्र में अपने अदम्य उत्साह और साहस का परिचय देकर असम्भव को भी सम्भव कर दिखलाया। इसके कई कारण थे

(i) वाशिंगटन का चरित्र

युद्ध को सफल बनाने में जार्ज वाशिंगटन का चरित्र और व्यक्तित्व का बहुत बड़ा हाथ था। यह उसके चरित्र बल का ही प्रभाव या कि विभक्त और असंगठित उपनिवेश एकता के सूत्र में आबद्ध हो गये। उसके आदेश पर सैनिक अपनी जान भी देने के लिए तैयार रहते थे।

(ii) जार्ज तृतीय का चरित्र

इंगलैण्ड के शासक जार्ज तृतीय का चरित्र अंगरेजों की पराजय का कारण बना। वह एक अदूरदर्शी शासक था। सैनिक मामलों में वह बराबर हस्तक्षेप किया करता था जिससे युद्ध-संचालन में गड़बड़ी होती थी। उसके स्वेच्छाचारी शासन के कारण इंगलैण्ड दो दलों में विभक्त था। पारस्परिक मतभेद के कारण इंगलैण्ड उपनिवेशों के प्रति कठोर नीति नहीं अपना सका। इंगलैण्ड में राष्ट्रीय एकता का भी अभाव था जबकि उपनिवेश एकता के सूत्र में आबद्ध थे।

(iii) इंगलैण्ड का अकेलापन

युद्ध शिविर में इंगलैण्ड अकेला था। अन्तरराष्ट्रीय स्थिति उसके विपरीत थी। युद्ध के दौरान फ्रांस, स्पेन और हॉलैण्ड ने अमेरिका को धन-जन से मदद की। रूस, डेनमार्क, नेपुल्स, प्रशा, पुर्तगाल, सिसली आदि ने इंगलैण्ड के विरुद्ध सशस्त्र तटस्थता की नीति अपनायी। ऐसी परिस्थिति में इंगलैण्ड का पराजित होना अवश्यम्भावी था।

(iv) दूरी और जंगल

अमेरिका और इंगलैण्ड के बीच तीन हजार मील की दूरी थी। यातायात के साधनों के अभाव में ठीक समय पर रसद आदि सेना को नहीं मिल पाती थी। फिर, अमेरिका में जंगलों का मीलों तक सिलसिला था जिसके चप्पे-चप्पे से अमेरिका निवासी परिचित थे लेकिन इंगलैण्ड के सैनिकों के लिए यह परेशानी का विषय बन गया। अतः अमेरिकी सेना ने गुरिल्ला युद्ध का सहारा लेकर इंगलैण्ड की सेना को तबाह कर दिया।
(v) अमेरिकनों की शक्ति का गलत अनुमान
सैनिक दृष्टिकोण से अंगरेज अपने को अजेय मानते थे। इंगलैण्ड की सरकार यह समझती थी कि उपनिवेशवासी इंगलैण्ड सैनिक शक्ति का मुकाबला नहीं कर सकेंगे। इसलिए इंगलैण्ड में सेना के संगठन का पूरा ध्यान नहीं दिया गया। नौसिखुए सैनिक अमेरिका के युद्ध में भाग लेने के लिए भेजे गये जिससे इंग्लैंड पराजित हुआ।

(vi) राजनीतियों का अभाव :

इंगलैण्ड में योग्य सैनिकों और कुशल संगठनकर्त्ताओं का भी अभाव था बड़ा पिट गठिया की बीमारी से पीड़ित रहने के कारण युद्धनीति के सफल संचालन में असमर्थ था नॉर्थ, रॉकिंधम आदि साधारण श्रेणी के राजनीतिज्ञ थे। अपनी अदूरदर्शिता के कारण वे उपनिवेशवासियों की भावनाओं को समझने में असफल रहे और उन्होंने अनेक गलतियों की दूसरी ओर वाशिंगटन एक योग्य सेनापति तथा कुशल संगठनकर्ता था। उसका व्यक्तित्व इतना आकर्षक और प्रभावशाली था कि उसके इशारे पर अमेरिकन सैनिक जान की बाजी लगा देते थे।

(vii) आदर्श की भिन्नता

दोनों के आदर्श में भी भिन्नता थी। प्रत्येक अमेरिकी स्वतंत्रता के लिए युद्ध कर रहा था, जबकि अंगरेज साम्राज्य की रक्षा के लिए। अतः उच्च आदर्श की विजय निश्चित थी। यह एक ऐसा संग्राम था जो हमेशा स्वतंत्रता की भावना से अनुप्रेरित होता रहा। अमेरिकी सैनिक एक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए लड़ रहे थे। उन्हें सम्पूर्ण जनता का समर्थन प्राप्त था। ऐसी स्थिति में अमेरिका की विजय निश्चित थी।

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव (परिणाम) : अमेरिका पर प्रभाव

अमेरिका का स्वतंत्रता-संग्राम

(i) एक स्वतंत्र राष्ट्र की स्थापना

क्रान्ति का सबसे महत्त्वपूर्ण परिणाम यह हुआ कि अमेरिका एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में दुनिया के नक्शे पर आया। आजादी की घोषणा द्वारा लोकतंत्र शासन का वह बीज अंकुरित हुआ जो सदियों से यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों के विरुद्ध उगने के लिए प्रयत्न कर रहा था। शासन करनेवाले मालिक न होकर जनता के सेवक हैं- इसे सर्वप्रथम इसी क्रान्ति ने व्यावहारिक रूप  दिया। अन्य अमेरिकी उपनिवेशों ने अपनी-अपनी आजादी की घोषणा कर दी और 7 वे स्वाधीन राज्य बन गये राज्यों में मताधिकार बढ़ा दिया गया और धारा सभा में 5 उचित प्रतिनिधित्व दिलाने की व्यवस्था की गयी। कर देनेवाले सभी व्यक्तियों को मताधिकार दिया गया।

(ii) संयुक्त राज्य अमेरिका का संविधान

युद्ध की समाप्ति के बाद तेरह राज्यों ने मिलकर संघ संविधान बनाया जो सभी राज्यों पर लागू हुआ। संविधान के अनुसार अमेरिका में प्रजातंत्र राज्य की स्थापना हुई। जॉर्ज वाशिंगटन अमेरिका का प्रथम राष्ट्रपति बना। राष्ट्रपति पद की अवधि चार साल रखी गयी। राष्ट्रपति को वैदेशिक का नीति को संचालित करने तथा सीनेट के पदाधिकारियों को नियुक्त करने का अधिकार मिला। संविधान के नियमों के उचित पालन के लिए सुप्रीम कोर्ट की स्थापना हुई। इस प्रकार अमेरिका में संविधान द्वारा 'जनता का शासन लागू हुआ। लेकिन यह पूर्ण राजनीतिक जनतंत्र नहीं था क्योंकि अधिकांश लोगों को वोट देने के अधिकार से वंचित रखा गया था।

घोषणापत्र ने अमेरिका के लोगों में एक नयी राजनीतिक चेतना का संचार किया और वे अपनी स्वतंत्रता का महत्व समझने लगे। व्यक्तिगत स्वाधीनता, स्वशासन और समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त करने के लिए घोषणा ने अमेरीकियों को मर-मिटने के लिए कटिबद्ध कर दिया। घोषणा ने एकतंत्रीय शासन व्यवस्था पर ऐसी कड़ी चोट पहुँचायी जो तबतक लोगों के कानों में गुजती रहेगी जबतक मनुष्य आजादी की कद्र करता रहेगा।

(iii) इंगलैण्ड और अमेरिका के बीच संघर्ष

घोषणा के बाद तात्कालिक परिणामस्वरूप अमेरिका को एक भयानक संघर्ष इंगलैण्ड के साथ अपनी आजादी को जीवित रखने के लिए करना पड़ा। ब्रिटेन के साथ उपनिवेशवासियों की जो सन्धि हुई उसका तात्कालिक परिणाम बहुत लाभदायक हुआ। युद्ध के बाद अमेरिका को कनाडा के किनारेवाला वह महत्त्वपूर्ण भाग मिला जो मछली मारने के लिए बहुत उपयुक्त था। अमेरिका का विस्तार प्रशान्त महासागर की दिशा में हुआ और उसे एक विशाल भू भाग में फैलने का मौका मिला।

(iv) अमेरिका की औद्योगिक तथा आर्थिक उन्नति

युद्ध के समय अमेरिकी सिपाहियों की अस्त्र-शस्त्र, कपड़े तथा भोजन से सम्बद्ध आवश्यकताओं की पूर्ति फ्रांसीसी और डच करते थे। लेकिन बाद में इनकी कमी महसूस हुई और इस कमी को पूरा करने के लिए अमेरिका में घरेलू उद्योग-धन्धों को आगे बढ़ाया गया। लोहा, सूती कपड़ा तथा अन्य उद्योग-धन्धों का विकास हुआ। इस औद्योगिक प्रगति के फलस्वरूप अमेरिका बहुत हद तक आत्मनिर्भर हो गया। वित्त-सम्बन्धी स्वतंत्रता भी कायम हुई। आर्थिक समस्या सुलझाने के लिए कागजी मुद्रा का प्रचार हुआ, फिर सूद पर कर्ज देने की प्रथा चली, बाद में कर प्रणाली शुरू हुई।

(v) सामाजिक प्रभाव:

सामाजिक दृष्टिकोण से क्रान्ति का महत्व विशेष था खुद के समय तथा उसके बाद उच्चकुलीन तथा टोरी दल के लोग कनाडा, पश्चिमी द्वीपसमूह तथा इंगलैण्ड हजारों-हजार की संख्या में जाने लगे। राजकीय समर्थकों के चले जाने के बाद उनकी रियासतें नीलाम कर दी गयीं। ब्रिटेन के राजमुकुट अथवा उसके एजेण्टों के जिम्मे जमीन थी उसका वितरण अमेरिकन कानून के आधार पर विभिन्न राज्यों के बीच हुआ। व्यापारी, वकील और पदाधिकारी वर्ग के लोग ही न्यूयार्क, मेसाचुसेट्स तथा बोस्टन आदि स्थानों में जमीन के अधिकारी बन गये।
क्रान्ति का प्रभाव गुलामों पर भी पड़ा। लगभग एक लाख गुलाम गुलामी छोड़कर भाग गये लेकिन उन्हें मुक्ति के बदले मौत मिली अथवा जीवन भर बँधुआ मजदूर बनकर रहना पड़ा।
अमेरिका में उत्तराधिकार के नये नियम बने। इसके अनुसार रियासत का उत्तराधिकारी बड़ा पुत्र हो हो सकता था। जेफरसन इस उत्तराधिकार नियम को नष्ट करने में सफल हुआ। रियासत का बँटवारा प्रत्येक पुत्र के बीच समान रूप से होने लगा। पुत्रियों का हिस्सा भी रियासत में सुरक्षित कर दिया गया। बड़ी-बड़ी रियासतों को बाँट डाला गया और कुछ को बेच डाला गया।

(vi) धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना

 जातीय समानता और पूजा-पाठ की विधि पूर्ण स्वाधीनता दिलाने का काम अमेरिकन क्रान्ति द्वारा ही पूरा हुआ। प्रत्येक राज्य में पुराने अंगरेजी चर्च की व्यवस्था नष्ट कर दी गयी और उसके स्थान पर धार्मिक स्वतंत्रता लोगों को दी गयी। 1786 ई० में धार्मिक स्वतंत्रता के सम्बन्ध में टॉमस जेफरसन ने एक बिल पार्लियामेंट (सीनेट) से पारित कराया। उक्त विधेयक के अनुसार धार्मिक प्रश्नों में सरकार किसी भी तरह हस्तक्षेप नहीं कर सकती थी। जेफरसन के धार्मिक विधेयक ने आधुनिक कानूनी व्यवस्था के दृष्टिकोण से एक ऐसा आदर्श उपस्थित किया जिसे आगे चलकर फ्रांस और इटली के लोगों ने भी अपनाया। इस प्रकार आधुनिक इतिहास में अमेरिका ने ही सबसे पहले धर्मनिरपेक्ष राज्य की थापना की।

इंगलैण्ड पर प्रभाव 

अमेरिकी क्रान्ति का सबसे अधिक प्रभाव इंगलैण्ड पर पड़ा। इंग्लैंड की पराजय से उसके वैदेशिक व्यापार को गहरा धक्का लगा। इससे इंगलैण्ड को अपार आर्थिक क्षति उठानी पड़ी। इंगलैण्ड की आन्तरिक नीति पर इस युद्ध का व्यापक प्रभाव पड़ा। उसने उपनिवेशों के प्रति अपनी नीति बदल दी और सहयोग एवं स्वतंत्रता के सिद्धान्त पर आधृत एक नयी नीति उसने अपनायी।

जार्ज तृतीय और लॉर्ड नॉर्थ के अदूरदर्शितापूर्ण व्यक्तिगत शासन का अन्त हो गया और मंत्रिमण्डलात्मक पद्धति तथा वैधानिक शासन का विकास तीव्र गति से होने लगा। शासन पर संसद का नियंत्रण बढ़ा और उत्तरदायी शासन की परम्परा का निरन्तर विकास होता गया।

फ्रांस पर प्रभाव 

इस क्रान्ति का प्रभाव फ्रांस पर भी पड़ा। युद्ध में भाग लेने
से फ्रांस की बिगड़ती हुई आर्थिक स्थिति और भी बिगड़ती गयी। फ्रांसीसी सैनिकों ने इस युद्ध में भाग लिया तथा जब वे अपने देश लौटे तो वहाँ भी स्वतंत्रता की मांग करने लगे। फलस्वरूप फ्रांस में भी 1789 ई० में एक क्रान्ति हुई।

आस्ट्रेलिया पर प्रभाव 

अमेरिका की स्वतंत्रता की लड़ाई के कुछ ही दिन पहले आस्ट्रेलिया का पता लगा था। अमेरिकी युद्ध के कैदियों को इंगलैण्ड ने आस्ट्रेलिया में भेजकर उस महादेश को आबाद करा दिया। अमेरिका को खो देने के बाद इंगलैण्ड ने आस्ट्रेलिया के विकास की ओर ध्यान दिया। फलतः आस्ट्रेलिया का विकास बड़ी तेजी से होने लगा !

आयरलैण्ड पर प्रभाव 

आयरलैण्ड अमेरिका की स्वतंत्रता से बहुत अधिक प्रभावित हुआ। वह भी अमेरिका की तरह इंगलैण्ड से स्वतंत्र होने का प्रयास करने लगा।आयरलैण्ड में इंगलैण्ड के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई का आरम्भ हुआ। स्पेन और हालैण्ड भी प्रभावित हुए। दोनों ने इंगलैण्ड से पुरानी दुश्मनी का बदला ले लिया। कनाडा में भी ब्रिटिश शासन के विरूद्ध आवाज उठी।

भारत पर प्रभाव

 अमेरिकी स्वातंत्र्य युद्ध के प्रभाव से भारत भी अछूता नहीं रह सका। युद्ध के छिड़ने के बाद भारत में भी अंगरेजों और फ्रांसीसियों के बीच लड़ाई दिए गयी। लेकिन इस युद्ध में फ्रांसीसी हार गये और उनकी सारी शक्ति विनष्ट हो गयी। अब यह लगभग तय हो गया कि भारत पर यदि किसी विदेशी शक्ति की सत्ता कायम होगी तो वह अंगरेजों की। कारण, फ्रांसीसियों की शक्ति क्षीण हो गई थी।

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम का महत्व :

अमेरिकी क्रान्ति का संसार के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसने पहले-पहल यह उदाहरण उपस्थित किया कि जागरित राष्ट्रीय भावना को कुचलना असम्भव है। इसने नवोदित पूँजीवाद को आगे बढ़ने का मौका दिया। आगे चलकर अमेरिकी पूँजीवाद ने स्वतंत्र अस्तित्व कायम किया। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका पहला देश था जिसने प्रजातंत्र की स्थापना की और वंशानुगत राजतंत्र का अन्त किया। यह पहला देश था जिसने एक लिखित संविधान और संघीय व्यवस्था का सूत्रपात किया। इतना ही नहीं, वह पहला देश था जहाँ धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना की गयी धर्म मनुष्य की व्यक्तिगत वस्तु बतलाया गया। संयुक्त राज्य अमेरिका ने साम्राज्यवाद को पहला धक्का दिया और युद्ध में साम्राज्यवादी देशों को हराकर स्वतंत्र हुआ। यह एक ऐसा उदाहरण था जो पराधीन राष्ट्रों को बहुत दिनों तक प्रेरित करता रहा। इसने यूरोप में एकतंत्रीय राज्य और सामन्ती अवशेषों को समाप्त करने में काफी सहायता पहुँचायी।


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