ईरान का इतिहास

 ईरान का इतिहास ( History of iran)

ईरान की सभ्यता के जन्मदाता आर्य थे। ई० पू० 1500 तक आयों की एक शाखा ईरान में आकर बसी । ईरानी आर्य और मीड जाति के बीच इस क्षेत्र पर राजनीतिक प्रभुत्व के लिए संघर्ष हुआ । साईरस नामक व्यक्ति ने 550 ई० पू० में ईरान की मीड जाति के लोगों को परास्त करके ईरान में आर्य जाति की शासन की स्थापना की ।

साईरस एक योग्य सेनापति एवं श्रेष्ठ शासक था। उसने अपनी महत्त्वाकांक्षा के कारण अनेक युद्ध करके अपने साम्राज्य का विस्तार किया। शीघ्र ही साईरस ने सीरिया,मेसोपोटामिया, बेबिलोन, अफगानिस्तान आदि अनेक प्रदेशों को अपने साम्राज्य में मिला लिया। केवल युद्ध में ही नहीं, साईरस की प्रतिभा शासन संचालन में भी अद्भुत थी। उसमें एक श्रेष्ठ एवं जनहित-चिन्तक शासक के सभी गुण थे। साईरस की मृत्यु के बाद उसके पुत्र सेम्बिसिस ने 525 ई० पू० में मिस्र पर विजय प्राप्त करके अपने पिता की परम्परा को आगे बढ़ाया। किन्तु ई० पू० 521 में उसने आत्महत्या कर ली। दारा प्रथम उसका उत्तराधिकारी बना ।

दारा प्रथम का साम्राज्य और शासन :

ईरान का इतिहास  ईरान की सभ्यता के जन्मदाता

 दारा प्रथम ने विजयों द्वारा ईरानी साम्राज्य को विस्तृत किया सबसे पहले उसने विद्रोहियों को दबाया। उसने एक विशाल सेना  का संगठन किया। अपनी निजी प्रतिभा के आधार पर उसने अपना साम्राज्य भारत में सिन्धु नदी के किनारे, सम्पूर्ण मध्य एशिया, ईरान, एशिया माइनर, मेसोपोटामिया, मिस्र तथा यूरोप में यूनान के पूर्वी भागों तक विस्तृत किया ।

उसका शासन-प्रबन्ध भी कई दृष्टियों से अच्छा था। उसने अपने समूचे साम्राज्य को 23 भागों में विभक्त किया और उन विभागों तथा प्रान्तों की देखभाल और शासन प्रबन्ध के लिए अधिकारी नियुक्त किया। इन अधिकारियों के अधीन और भी कई कर्मचारी थे जो इन अधिकारियों को पर्याप्त सहायता दिया करते थे

इसके अतिरिक्त, इन प्रान्तों के प्रमुख नगरों को जोड़नेवाली अनेक सड़कें साम्राज्य भर में फैली हुई थीं। अपने साम्राज्य में शान्ति एवं व्यवस्था बनाये रखने के लिए उसने प्रत्येक प्रान्त में एक अलग अधिकारी 'मीर मुंशी' के पद के नाम से नियुक्त किया। सड़कों तथा यातायात के साधनों की उन्नति की ओर अधिक ध्यान दिये जाने के कारण राज्य में शान्ति एवं व्यवस्था स्थापित करने में पूर्ण सफलता मिली

दारा के शासनकाल में ईरान का वाणिज्य-व्यवसाय भी बहुत बढ़ा-चढ़ा था। यातायात के सुलभ साधनों ने इस व्यापारिक उन्नति में बहुत अधिक योगदान किया। ईरान का व्यापार पश्चिमी देशों तथा पूर्वी द्वीपसमूहों आदि से होने लगा।

मारायान नामक स्थान पर दारा और यूनान की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ जिसमें दारा की पराजय हुई | 486 ई० पू० में दारा की मृत्यु हो गई। दारा के पश्चात उसके अयोग्य उत्तराधिकारी इस महान साम्राज्य को सम्भालने में सर्वथा अयोग्य सिद्ध हुए। विलासितापूर्ण जीवन ने उनकी सामर्थ्य शक्ति को समाप्त कर दिया। योग्य शासक दे अभाव में एक छोटी-सी रियासत मकदूनिया के राजा फिलिप ने इस साम्राज्य पर अपना अधिकार करना प्रारम्भ किया और बाद में उसके पुत्र सिकन्दर का इस पर पूरा अधिकार हो गया।

ईरानी शासन-व्यवस्था :

फारस का राजनीतिक संगठन और शासन-प्रबन्ध उच्च कोटि का था। साम्राज्य प्रान्तों में बँटा हुआ था । प्रत्येक प्रान्त में तीन प्रधान अधिकारी होते थे-क्षत्रप, सेनाध्यक्ष और सचिव । क्षत्रप का अधिकार आर्थिक और न्याय सम्बन्धी विषय तक सीमित रहता था। सेना पर उसका कोई अधिकार न था। क्षेत्रप का काम कर वसूलना और आय व्यय का हिसाब करके सम्राट के पास भेजना था । प्रान्त में शान्ति स्थापित करना और सड़कों की रक्षा करना उनका ही काम था। सेनाध्यक्ष प्रान्त में सेना की देख-भाल करता था । सचिव का सम्बन्ध सम्राट से सीधा रहता था। क्षत्रप के कार्यों की रिर्पोट भेजना उसका मुख्य कर्त्तव्य था ।

प्रान्तों में सड़कों का जाल बिछा हुआ था और इन सड़कों पर राज्य के घुड़सवार लगातार गश्त लगाया करते थे। इस कारण सम्पूर्ण राज्य में शान्ति और व्यवस्था कायम रहती थी। सभी सम्राट धर्म को बड़ा महत्त्व देते थे और उनके सच्चे पालनकर्त्ता होते है थे । राज्य का आधार इस धर्मप्रधानता के कारण उदारता और न्याय ही था ।

सरदारों की शिक्षा : 

ईरान का इतिहास  ईरान की सभ्यता के जन्मदाता

जरथुष्ट्र ने सरदारों की शिक्षा पर जोर दिया था। पाँच वर्ष से बीस वर्ष तक सरदारों का पालन राजा के दरबार में होता था। उन्हें घुड़सवारी तीरन्दाजी तथा सत्य बोलने की शिक्षा दी जाती थी। उन्हें साहसी बनाने का प्रयास किया जाता था, जिससे वे साहस के साथ शत्रुओं का सामना करें और युद्ध के समय कायरता का परिचय न दें। कर्तव्यहीन सरदारों को फाँसी की सजा दी जाती थी। सरदारों को अपने कबीले का नियम बतलाया जाता था तथा दूसरों के साथ प्रेम के साथ मिलने की सलाह दी जाती थी। सामरिक शिक्षा के अतिरिक्त उन्हें व्यावहारिक शिक्षा भी दी जाती थी।

अधीनस्थ राज्यों की प्रजा के साथ उदारता तथा सहिष्णुता का व्यवहार कि जाता था। उनकी भाषा, रीति-रिवाज और धर्म में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किय जाता था ।

न्याय-व्यवस्था :

 न्याय करने के लिए एक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त था। उसके अध्यक्षता में एक न्यायालय होता था जिसमें सात न्यायाधीश रहते थे स्थानी न्यायालयों की भी व्यवस्था थी। बादी और प्रतिवादी के बीच अपने चुने हुए पंचों है। द्वारा समझौता कराने का प्रयत्न किया जाता था। प्राणदण्ड बार-बार अपराध करने पर दिया जाता था ।

साम्राज्य नें एक किनारे से दूसरे किनारे तक सड़क बनी थीं। सड़कों पर तीर है या चार मील की दूरी पर सराय रहता था। डाक पहुँचाने के लिए घोड़े रखे जाते हैं मार्गो पर शान्ति सुरक्षा का अच्छा प्रबन्ध था ।

सेना : 

साम्राज्य का यह नियम था कि चौदह से पचास की उम्र का व्यक्ति युद्ध कला सीखे और आवश्यकता पड़ने पर सेना में भरती हो। इससे बचने के प्रयत्न करने पर प्राणदण्ड दिया जाता था। सेना दस, सो, हजार तथा दस हजार के समूहों में विभक्त थी। सम्राट की अंगरक्षा के लिए एक विशेष प्रकार की सेना होती थी । साधारण सैनिक भाले, तलवार, खंजर, बड़ी, पुरी और तीर-कमान से लड़ते थे। सेना में हाथी, घोड़े, रथ और पैदल के दल होते थे । वे एक जहाजी बेड़ा भी रखते थे ।

सामाजिक जीवन :

सामाजिक वर्गीकरण: प्राचीन ईरान का समाज पाँच वर्गों में विभक्त था। सर्वाधिक शक्ति-सम्पन्न शासकों का वर्ग था। उसके बाद पुरोहित और व्यापारी वर्ग के लोग आते न थे। शेष दो वर्ग किसानों और दासों का था । किसानों की सामान्य स्थिति ठीक नहीं हो। वे व्यापारियों से आर्थिक दृष्टि से दबे रहते थे सबसे बुरी दशा गुलामों की थी। युद्ध में हारे सभी सैनिकों को दास बना लिया जाता था।

स्त्रियों की स्थिति : 

समाज में स्त्रियों को पुरुषों के समान ही अधिकार मिले हुए  थे। पर्दा प्रथा प्रचलित नहीं थी किन्तु बाद में विदेशी प्रभाव के कारण प्रारम्भ हुई। - बहुविवाह की प्रथा धनी वर्ग के लोगों में प्रचलित थी विवाह को एक धर्मप्रधान कृत्य माना जाता था। स्त्रियों के नैतिक चरित्र को बहुत महत्त्व दिया जाता था ।

रहन-सहन प्राचीन ईरान में धनी लोग सोना के आभूषण और रेशमी वस्त्र पहनते थे। मोतियों की माला धारण करने का रिवाज प्रचलित था। भोजन बड़ा ही सादा होता था। गेहूँ और जौ की रोटी और पका माँस ही मुख्य भोजन रहा करता था। साधारणतया ईरानी लोग एक ही समय भोजन किया करते थे।

साम्राज्य तथा सम्पत्ति बढ़ने के कारण सुखमय जीवन व्यतीत करने की ओर जनता की प्रवृत्ति थी। मद्यपान, भोगविलास, ठाट-बाट उनके जीवन में बढ़ने लगे थे। यहाँ तक कि रणक्षेत्र में भी स्त्रियों का होना अनिवार्य सा हो गया था। लोग सुन्दर भवनों में रहते थे; सुन्दर बाग लगाते थे; रत्नजड़ित पोशाक पहनते थे; मद्यपान और नाच रंग अत्यधिक बढ़ गया था। इसी कारण ईरान का पतन भी हुआ ।

आर्थिक जीवन: 

ईरान का आर्थिक जीवन समुन्नत या साम्राज्य के अधीनस्थ 'प्रान्तों से बहुत अधिक सोना और चाँदी आते थे जिससे देश में सर्वत्र समृद्धि थी । पर, वहाँ आर्थिक व्यवस्था की रीढ़ कृषि ही थी। कृषि के विस्तार के लिए नहरें बनवायी गयी थीं। नयी-नयी फसलें भी लगवायी गयी थीं। पनचक्की जैसे अभिनव मशीनी काम भी ईरानवालों ने ही शुरू किया था रेशम की मांग अधिक होने के कारण बड़े पैमाने पर रेशम के कीड़ों का पालन करवाया गया था। कृषि के अलावा, छोटे-छोटे उद्योगों की भी स्थापना हुई थी। आन्तरिक तथा बाह्य व्यापार बड़े पैमाने पर फैला हुआ था। बाह्य व्यापार स्थलमार्ग और जलमार्ग दोनों से ही होता था।

धार्मिक जीवन 

प्राचीन ईरान में धार्मिक विश्वासों की विविधता थी। ईरान का आदि धर्म बहुत-कुछ भारत के वैदिक धर्म से मिलता-जुलता था। आर्यों की तरह ईरानी भी वरुण, वायु, इन्द्र, सूर्य, पृथ्वी एवं अन्य देवताओं की पूजा करते थे। बाद में वहाँ एक नये धर्म का जन्म हुआ जिसका जन्मदाता जरथ्रुष्ट्र थे । उनके द्वारा चलाये गये धर्म को पारसी धर्म अर्थात् जरष्ट्र-धर्म कहा गया। जरद्युष्ट ने लोगों को केवल एक ही देवता की पूजा करने की शिक्षा दी।

सांस्कृतिक जीवन :

वास्तुकला : ईरानियों ने वास्तुकला में बहुत अधिक प्रगति नहीं की। इसका प्रमुख कारण यह था कि ईरानी लोगों का अधिकांश जीवन युद्ध के मैदान में ही व्यतीत हुआ। फिर भी अन्य देशों के साथ सम्पर्क होने से वहाँ अनुकरणात्मक कला-पद्धति का विकास हुआ। पशुओं की प्रस्तर मूर्त्तियाँ और पत्थर पर खुदे चित्रों से स्पष्ट होता है कि उन्होंने क इस कला में बड़ी उन्नति कर ली थी। ईरान के सम्राटों ने विशाल भवनों और सरकारी इमारतों का निर्माण कराया ।

लिपि, भाषा और साहित्य

 ईरान में साहित्य की विशेष प्रगति नहीं हुई थी। ईरानियों ने अक्षर बेबिलोन वालों से ग्रहण किया किन्तु उन्होंने तीन सो अक्षरों का काम केवल छत्तीस अक्षरों से निकालना शुरू किया। ईरान में अनेक भाषाएँ प्रचलित थीं। परंतु संस्कृत से मिलती जुलती एक भाषा उनकी राजभाषा थी। पीछे चलकर प्राचीन ईरान की भाषा दो रूपों में हो गयी। एक का नाम था जिन्द और दूसरी थी पहलवी । साहित्य में प्रणय गीतों का अधिक स्थान था। उन्होंने कहानियाँ भी लिखीं जिसका प्रमाण हमें अरेबियन नाइट से मिलता है । 'अवेस्ता' नामक धर्मग्रन्थ में उनका गीत काव्य सुरक्षित है। ईरानियों ने लौकिक ज्ञान तथा विज्ञान में बहुत कम उन्नति की लेकिन कुछ सीमा तक वैद्यकशास्त्र में अवश्य उन्नति हुई थी ।

शिक्षा : 

ईरान में कुछ सम्पन्न व्यक्तियों तक ही शिक्षा सीमित थी। पुरोहित शिक्षा देते थे । मन्दिर में कक्षाएँ लगती थीं। बच्चों को अवेस्ता पढ़ाया जाता था और धार्मिक शिक्षा ही पाठ्यक्रम का मुख्य अंग थी। इसके अतिरिक्त, सैनिक शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाता था । पत्थर फेंकना, तीर चलाना, घुड़सवारी करना आदि शिक्षा के प्रमुख अंग थे। बच्चों को शिकार खेलना भी सिखाया जाता था। ठंढ में खुला बदन सोने, गर्मी में लगातार परिश्रम करने आदि की आदत डालकर कष्ट सहन करने की 2 प्रवृत्ति बच्चों में प्रारम्भ से निर्मित की जाती थी। गुरु का पद बड़ा सम्मान का माना जाता था।

ईरानी सभ्यता की देन 

फारस की सभ्यता कला कौशल, साहित्य आदि के क्षेत्र में दूसरों को प्रभावित करने के स्थान पर वह स्वयं ही दूसरों से अधिक प्रभावित हुई। जिन-जिन सभ्यताओं के सम्पर्क में ईरानी लोग आये उन सभी का कुछ-न-कुछ प्रभाव उनपर दिखाई पड़ता है। उनकी भाषा जिन्द पर वैदिक संस्कृत का प्रभाव बहुत अधिक पड़ा । धर्म के क्षेत्र में भी इनके देवता, इनकी रीति-रिवाज, इनके धार्मिक आचरण पर भी भारत का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा ।


कला के क्षेत्र में फारस की कला पर यूनान का प्रभाव सर्वाधिक दृष्टिगोचर होता है। सैनिक संगठन एवं राज्य-व्यवस्था में अवश्य ही ईरान ने अन्यों को प्रभावित किया। प्रान्त-रचना और उनमें स्वतंत्र अधिकारियों की नियुक्ति, सेना का समुचित संगठन एवं  उसकी रचना, राज्य संचालन में धर्म का महत्व और उदारता तथा न्याय का आधार अवश्य ही प्रभावित करनेवाली वस्तुएँ हैं। ईरान में उच्च नैतिक सिद्धान्तों पर आधारित  एक धार्मिक विचारधारा का भी प्रादुर्भाव हुआ इस प्राचीन देश ने जरथ्रुष्ट्र नामक उपदेशक और मनुष्य जाति को ऊँचा उठाने की शिक्षा देनेवाले एक महात्मा को जन्म दिया । जरथ्रुष्ट्र के विषय में हम अगले अध्याय में अध्ययन करेंगे ।

एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने