गरीबों की दुर्गा पूजा और मेला (Durga Puja and Fair of the Poor)
दुर्गा पूजा खुशियों और उमंगों भरा पर्व है। लोग दुर्गा पूजा के शुभ अवसर पर नए नए कपड़े नए नए जूते लेते हैं। और मेले का आनंद लेने मेला पहुंच जाते हैं। मगर हमारे समाज में एक ऐसा तबका है, जिनका दुर्गा पूजा खुशियों भरा नहीं होता। वो अपने आर्थिक स्थिति से मजबूर रहते है। और उनका मेला मायूसी भरा निकल जाता हैं। उनके बच्चें रोते बिखेलते अपने अरमान को छुपा लेते हैं।
ऐसे में मैं अपने article में मुंशी प्रेमचन्द जी की एक कहानी सुनाने जा रहा हूं। जिसमें एक गरीब बच्चा अपने अरमानों को छुपा कर कुछ ऐसा कर देता है। जिससे हमारा दिल बाग बाग हो जाता हैं। चलिए हम आपको उस कहानी का नाम बताते हैं । उस कहानी का नाम ईदगाह है।
एक छोटे से गांव में एक प्यारा सा बच्चा हामिद अपनी दादी के साथ रहता था। वो बहुत ही गरीब थे। एक बार ईद के मौके पर हामिद ने मेले जाने की जिद ठानी। गरीब दादी ने हामिद के जिद के आगे घुटने टेक दिए। और दादी ने हामिद को बहुत समझाते हुए 1 रुपया दिया। और बताया कि इसे अनाप शनाप खर्च न करना भूख लगे तो कुछ खा लेना, और अपने लिए कुछ खिलौने ले लेना। मेले मैं पहुंचकर सभी बच्चे खूब मजे कर रहे थे, जगह – जगह, खाने – पीने कि चीजें थीं और खिलौनों की दुकाने थीं सभी बच्चे कुछ न कुछ खा रहे थे और खिलौने खरीद रहे थे, हामिद का मन भी बहुत कर रहा था मगर हामिद के पास सिर्फ एक रुपया था और उसे अपनी दादी की सीख याद आ रही थी बेटा इसे बहुत सोच समझकर खर्च करना, इसीलिए हामिद ने अब तक अपना एक रुपया बचा कर रखा था, मेले मैं घूमते हुए हामिद को एक बर्तन की दुकान दिखाई दी ! हामिद उस ओर बढ़ चला उसने पूरी दुकान मैं देखने के बाद एक लोहे का चिमटा उठाया और दुकानदार से उसका दाम पूछा ! दुकानदार ने उसका दाम एक रूपए बताया मासूम हामिद बहुत मायूस हो गया, क्योंकि उसके पास सिर्फ एक ही रुपया था, और उसका जी चाह रहा था कि वह भी और बच्चों की तरह खाए – पिए और खिलौने ले, किन्तु वह अपनी दादी के लिए चिमटा भी खरीदना चाहता था क्योंकि हामिद की आँखों मैं तबे पर रोटी सेकती उसकी दादी का चेहरा आ रहा था जिसकी उँगलियाँ चिमटा न होने की वजह से रोज ही तबे से जल जाती थीं, इसलिए हामिद अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदकर उसकी उँगलियों को जलने से बचाना चाहता था ! मगर इसके लिए हामिद को अपनी खुशियों का त्याग करना पड़ेगा, एक तरफ हामिद की अपनी खुशिया थीं दूसरी ओर रह – रह कर उसकी दादी की जलती उंगलियों का ख्याल ! अंत मैं नन्हे हामिद ने वीरता दिखाते हुए, दुकानदार से वह चिमटा खरीद लिया, और शान से उसे अपने काँधे पर रखकर पूरे मेले मैं यों ही घूमता रहा ! शाम हो चली थी सभी लोग एक जगह एकत्र हो वापस गाँव की ओर लौटने लगे ! हामिद के सभी मित्र हामिद का मजाक उड़ा रहे थे कि उसने ये क्या ले लिया चिमटा ! कोई उसे मिटटी का शेर दिखाता, तो हामिद उससे कहता तुम्हारा ये मिटटी का शेर 2 दिन मैं टूट जायेगा किन्तु मेरा चिमटा असली शेर से भी लड़ने का काम आएगा ! यों ही हंसी मजाक करते करते सभी बच्चे अपने गाँव वापस आ गए ! घर मैं हामिद की दादी बेसब्री से हामिद का इन्तजार कर रही थी, आते ही उसने हामिद से बड़े उल्लास से पूछा मेरे लाल ने मेले मैं क्या – क्या किया और अपने लिए कौन सा खिलौना ख़रीदा ? हामिद ने झट से चहकते हुए दादी के हाथ मैं चिमटा थमा दिया ! चिमटा देखते ही दादी आग – बबूला हो उठी , बोली कमबख्त ये क्या उठा लाया तेरे पास एक ही रुपया था फिर तूने ये चिमटा क्यों ख़रीदा ! इसका क्या करेगा तू और दादी ने हामिद का चिमटा गुस्से से दूर फेंक दिया ! मासूम हामिद ने चिमटा उठाया और फिर से अपनी दादी से लिपट गया और बोला दादी ये मैं अपने लिए नहीं आपके लिए लाया हूँ ! अब रोटी सेंकते बक्त कभी भी आपकी उँगलियाँ नहीं जलेंगी ! अपने पोते की बात सुनकर बूढी दादी की ऑंखें डबडबा उठीं, दादी अपने पोते के प्यार से भाव बिभोर हो उठी और हामिद को अपने कलेजे से लगा लिया ! बेटा इतने बड़े मेले मैं भी तू अपनी बूढी दादी को नहीं भूला ! और अपनी खुशियों का त्याग करके तुझे तेरी बूढी दादी की उँगलियों को जलने से बचाने के लिए चिमटा खरीद लाया ! बूढी दादी की आँखों मैं खुशी देखकर मासूम हामिद भी खुशी से चहक उठा और बोला दादी मुझे बहुत भूख लग रही है आज आप इसी चिमटे से सेंक कर मुझे रोटी खिलाना ! दादी ने एक बार फिर हामिद को अपने सीने से लगा लिया।
यह कहानी आज के पीढ़ी के लिए प्रेणादायक स्रोत बन सकती हैं। आज के बच्चें अपने जिद्द से अपने माता पिता के स्थिति को देखें बिना उनसे अपने इच्छा पूर्ति कराते हैं। वो चाहें मेले की बात हों या निजी जिंदगी की। हमें जरूरत है, ऐसे लाजवाब कहानियों से अपने बच्चों को अवगत कराने की और उनसे सिख लेने की।
आज के दौर में हम अपने पारंपरिक तौर तरीका भूलते जा रहे हैं। मेले हो या निजी जिंदगी हमें अब चाइनीज सामान लुभा रही हैं। जरूरत है हमें अपने पारंपरिक तरीके को अपनाने की। पहले के समय में मिट्टी से बने खिलौने, दीए का खूब प्रचलन था । पर यह अब विलुप्त होती जा रही है। जिसका जिम्मेदार खुद मानव हैं। मिट्टी के बर्तन, खिलौने, दीए विलुप्त हो जानें से वैसे लोगो की स्तिथि खराब हो गई है जिनका जीवन यापन इसी के माध्यम से चलता था। जिसके वजह से उनका हर पूजा पर्व हर मेला मायूसी के अंधकार में डूबा रहता है।
जरूरी है हमें वैसे लोगों को मदद करने की ताकि वो और उनके बच्चें का कोई भी पूजा कोई भी मेला मायूसी भरा न रह जाए। हमें अपने पारंपरिक तौर तरीका को अपनाना होगा। जिससे वैसे लोगों की स्थिति बेहतर हों सके जो आज कहीं गुमनाम हों गए हैं।