History of sir robert walpole in hindi

 History of sir robert walpole in hindi ( सर रॉबर्ट वालपोल का इतिहास हिंदी में)

Ans.  सर रॉबर्ट वालपोल का जन्म 1676 ई० में नोफोर्क के एक जमींदार के घर हुआ था। प्रथम दो भाईयों की असमय मृत्यु हो जाने से वालपोल ही पैत्रिक सम्पत्ति का उत्तराधिकारी हुआ। उसकी शिक्षा एटर्न के स्कूल एवं कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुई थी। 1702 ई में रायजिंग नामक बोरो से वह कॉमनसभा का सदस्य निर्वाचित हुआ। छह वर्षों तक छोटे-छोटे पदों पर काम करने के बाद 1708 ई. में वह युद्धमंत्री बना। धन का दुरुपयोग करने के आरोप में उसे 1712 ई. में कैद कर लिया गया, किन्तु आरोप सिद्ध नहीं होने पर उसे मुक्त कर दिया गया।

History of sir robert walpole

हैनोवरवंश के शासन के साथ ही वालपोल का भाग्योदय हुआ। वह 1715 ई. में कोषाध्यक्ष नियुक्त हुआ। हैनोरवंश के शासक अपने कृपापात्रों को धन देकर संतुष्ट रखना चाहते थे। युद्धनीति भी वालपोल को पसन्द न थी। अतः 1717 ई. में मतभेद के कारण उसे पदत्याग कर दिया और 1721 ई० तक विरोधी के रूप में पार्लियामेंट में रहा। दक्षिणी समुद्र का बुलबुला की घटना के साथ बालपोल का भाग्य पलटा और वह असाधारण योग्यता का परिचय देकर प्रधानमंत्री बन गया। 21 वर्षों तक वह प्रधानमंत्री बना रहा। 1742 ई में कामनसभा में बहुमत नहीं रहने पर उसने पदत्याग कर दिया। जार्ज द्वितीय ने उसे अर्ज ऑफ आक्सफोर्स को पदवी दी और कुछ पेंशन भी दी। 1745 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।

चारित्रिक गुण :
बालपोल अपने युग का आदर्श मंत्री था। वह हँसमुख, मिलनसार और सहिष्णु था। खेल-तमाशों का उसे अधिक शौक था। वह सर्वप्रथम शिकारगाह की ही डाक खोलता था। वह परिश्रमी, बुद्धिमान और व्यावहारिक था। दूसरों की योग्यता को परखने की उसमें विलक्षण सूझ थी कठिनाइयों से वह घबढ़ाता नहीं था। चिन्ता उसे परेशान नहीं करती थी। वह कहा करता था कि कपड़ों को उतार देने के साथ ही में अपनी चिन्ताओं का भार हल्का कर डालता हूँ। आत्मविश्वास के बल पर ही वह विरोधियों को कटु आलोचना को भी बर्दास्त कर लेता था।

अवगुण :
बालपोल के चरित्र में अंधकार पक्ष भी था। वह मानवीय कमजोरियों का शिकार हो जाता था। उसके सामने कोई आदर्श नहीं था। उसका व्यक्तिगत चरित्र निम्न स्तर का था। निजी स्वार्थपूर्ति के हेतु वह नीच से नीच काम भी कर सकता था। सगे-संबंधी ऊँचे-से-ऊँचे पद पर नियुक्त कर देता था। वह दूसरों पर रोब जमाना चाहता था। देश की अपेक्षा निजी स्वार्थ को उसने सदैव प्राथमिकता दी। परन्तु उसमें परिस्थिति को समझने की सूझ थी, अतः योग्यता और धैर्य के साथ उसने राष्ट्र की समृद्धि बढ़ाने की चेष्टा की। अवगुण के बावजूद उसने एक साधारण जमींदार के पद से ऊपर उठकर प्रधानमंत्री का पद पाया। उसकी गिनती इंगलैंड महान् राजनीतिज्ञों में होती है।

वालपोल की गृहनीति :
वालपोल की गृहनीति शानदार थी। सोए हुए कुत्ते को छेड़ो मत को नीति का समर्थन कर उसने राष्ट्र की समृद्धि को बढ़ाया। वह एक महान अर्थशास्त्री था। "दक्षिणी समुद्र का बुलबुला से जो गम्भीर आर्थिक समस्या राष्ट्र के सामने उपस्थित हो गयी थी। उसका समाधान उसने सफलतापूर्वक किया साझेदारों को एक-तिहाई हिस्से को पूँजी लौटाकर उसने कम्पनी को साख को रक्षा की और राष्ट्रीय कर्ज का उत्तरदायित्व सरकार पर ही सौंप दिया। राष्ट्रीय कर्ज का सूद आधा कम कर उसने ऋण चुकाने की चेष्टा की। सरकार का खर्च घटाकर कुछ रकम बचाने की भी चेष्टा की गयी। उसने इंग्लैंड की अनिश्चित शुल्क-सूची (टारिफ) में भी सुधार किया। बहुत-सी वस्तुओं पर से चुंगी उठा दी गयी और स्वतंत्र व्यापार की नीति को प्रोत्साहन दिया गया। देश में तैयार किए हुए माल के निर्यात एवं बाहर से कच्चे माल के आयात को वालपोल अधिक प्रोत्साहन देने लगा। औपनिवेशिक व्यापार पर वह कड़ा नियंत्रण रखना चाहता था। 1733 ई० में वालपोल ने एक्साइज बिल पेश किया। शराब और तम्बाकू पर वह बन्दरगाह के बदले बिक्री के स्थानों पर चुंगी लगाना चाहता था। चोर बाजारी रोकना, रेवेन्यू बढ़ाना एवं इंगलैंड को केन्द्रीय बाजार बनाना ये बिल के तीन प्रमुख उद्देश्य थे। वालपोल की नीति बहुत ही उपयोगी थी, परन्तु 'एक्साइज' शब्द डचों से आतंकित हो उठे। वे बिल का विरोध करने लगे। लोग यह प्रचार करने लगे कि वालपोल चुंगी अधिकारियों का जत्था तैयार कर चुनाव को प्रभावित करना चाहता है और लोगों की स्वतंत्रता का अपहरण करना चाहता है। जगह-जगह बिल के विरोध में सभा होने लगा और जुलुस निकलने लगे। प्रजा और पार्लियामेंट के विरोध को देखकर वालपोल ने बिल वापस ले लिया।

धार्मिक नीति :
वालपोल के समय धार्मिक कट्टरता की भावना शेष हो चुकी थी। यह चर्चा को असंतुष्ट करना नहीं चाहता था। डिसेंटरी ने उसे सहायता दी थी, परन्तु डिसेंटरी पर जो धार्मिक प्रतिबंध लगा हुआ था, उसे वालपोल ने रद्द नहीं किया। डिसेंटरों को प्रसन्न रखने के उद्देश्य से वह प्रतिवर्ष क्षमा कानून द्वारा उन्हें मुक्त कर नये पदों पर नियुक्त कर लेता था। इस कानून से डिसेंटरों को लाभ हुआ, परन्तु वालपोल जैसे व्यक्ति के लिए कानून भंग करना न्यायोचित नहीं था।

कैबिनेट प्रथा का विकास वैधानिक दृष्टिकोण से मंत्रिमण्डलीय प्रथा का विकास वालपोल की सबसे बड़ी देन थी। वह इंगलैंड का पहला प्रधानमंत्री था। जार्ज प्रथम और जार्ज द्वितीय अंग्रेजी भाषा से अनभिज्ञ रहने के कारण मंत्रिमण्डल की बैठकों में भाग नहीं लेते थे। राजा के बदले वालपोल ही मंत्रिमण्डल की बैठकों का सभापतित्व करने लगा और राजा के सारे विशेषाधिकारों को उसने हथिया लिया। मंत्रिमण्डल में अन्य मंत्रियों की नियुक्ति वह स्वयं करने लगा। मंत्रियों को एक टीम के रूप में एकमत होकर काम करने तथा सामूहिक रूप से उत्तरदायित्व स्वीकार करने पर वह विशेष जोर देने लगा। प्रधान के पद के महत्व को वालपोल जरूरत से अधिक बढ़ाना चाहता था। अपने सहकर्मियों के बीच वह 'बराबरी वालों में प्रधान' की हैसियत से काम नहीं करना चाहता था, बल्कि उन्हें अपने अधीन रखना चाहता था। विरोध करने वाले मंत्रियों को वह शीघ्र ही हटा देता था। उदाहरण के लिए 1724 से 1725 ई. में कार्टरेट और पुल्टनी जैसे योग्य मंत्रियों को विरोध करने के ही कारण पद त्याग करने के लिए उसने बाध्य किया। वालपोल वस्तुतः मंत्रिमण्डल में सर्वोच्च स्थान रखता था। विरोधी मंत्रियों को वह राजा द्वारा बर्खास्त करवा देता था, वह एकमात्र प्रधानमंत्री बनना चाहता था। सहकर्मियों पर कठोर नियंत्रणा रखने के चलते उसे 'हिगो का दिल सर्जट' भी कहा जाता था।
वालपोल ने विरोधी दल को दबाने का प्रयास नहीं किया। टोरी दल के अतिरिक्त कुछ असंतुष्ट द्विग जिन्हें देशभक्त (पेट्रीयट) कहा जाता था, प्रमुख विरोधी थे। विरोधी दल को वेल्स के राजकुमार को समर्थन भी प्राप्त था। वह राजा के बदले रानी कैरोलीन को प्रभावित कर अपनी नीति एवं योजनाओं को कार्यान्वित करवा लेता था। अतः राजा और मंत्रिमंडल के बीच की कड़ी के रूप में प्रधानमंत्री के पद के महत्व को बालपोल ने बढ़ाया। उसने कामनसभा की प्रधानता को स्वीकार कर लिया। कामनसभा का विश्वास खो जाने पर पद त्याग कर उसने इंगलैण्ड में एक नयी परम्परा को जन्म दिया। परन्तु आधुनिक मंत्रिमण्डल के सभी मंत्रियों का एक साथ विकास वालपोल के समय नहीं हो पाया। वह मंत्रिमण्डल के सभी मंत्रियों के साथ विचार-विमर्श के बदले कुछ चुने हुए मंत्रियों के साथ ही योजना एवं नीति पर विचार करता था। वालपोल स्वयं प्रधानमंत्री के पद को पसन्द नहीं करता था। यदि कोई उसे प्रधानमंत्री कहकर पुकारता था, तो वह अपनी बेइज्जती समझता था। दूसरी बात यह थी कि मंत्री खानगी तौर पर राजा को अलग से भी राय दे सकते थे उस समय सामूहिक उत्तरदायित्व एवं गोपनीयता का सिद्धांत विकसित नहीं हो पाया था जो मंत्रिमण्डलात्मक व्यवस्था का प्राण माना जाता है। वालपोल के पद त्याग से उसके सभी सहयोगियों ने पद त्याग नहीं किया। अतः सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत का भी उस समय अभाव था। परन्तु मंत्रिमण्डल को संसदीय कार्यपालिका का स्थान दिलाने में वालपोल की देन की उपेक्षा नहीं की जा सकती है। मंत्रिमण्डल पर राजा का प्रभाव अभी भी बना हुआ था। राजा किसी भी मंत्रिमण्डल का पतन करा सकता था। राजा ही प्रधानमंत्री को चुनता था और अन्य मंत्रियों को प्रधानमंत्री चुनता था। अतः वालपोल के समय मंत्रिमण्डलात्मक प्रणाली को पूर्णता प्राप्त नहीं हुई थी।

.वालपोल की वैदेशिक नीति

Ans. वालपोल की वैदेशिक नीति का आधार शांति-तटस्थता और कूटनीति था। वह शांति की नीति का अग्रदूत था। यूरोपीय युद्ध में उलझकर वह इंगलैंड के धन-जन की हानि करना चाहता था। स्पेन के उत्तराधिकार की लड़ाई का खर्च अभी पूरा नहीं हो पाया था। हैनोवरवंश की सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी विदेशी युद्ध इंगलैंड के लिए खतरनाक होता । अतः वालपोल ने तटस्थ रहने का सक्रिय रूप से प्रयास किया। उसने युद्ध के बदले कूटनीति का सहारा लिया। फ्रांस के साथ उसने मित्रता का सम्बन्ध कायम रखकर अंग्रेजी व्यापार को प्रोत्साहन दिया। वह आस्ट्रिया और स्पेन की गतिविधि पर ध्यान रखता था। 1708 ई० में आस्ट्रिया, स्पेन और रूस के बीच वियना की गुप्त संधि हुई, जिसके अनुसार जिब्राल्टर में आस्ट्रिया के सम्राट को आस्ट्रेट कम्पनी खोलने तथा व्यापारिक सुविधाएँ देने की बात तय हुई। तीनों राष्ट्रों (आस्ट्रिया, स्पेन एवं रूस ने स्टुअर्टवंश के प्रिंटेंडर की सहायता करने का आश्वासन दिया। यह संधि इंगलैंड के लिए खतरनाक थी, अतः संधि के प्रभाव को कम करने तथा यूरोपीय राज्यों के बीच शक्ति-संतुलन की नीति कायम रखने के उद्देश्य से वालपोल ने इंगलैंड, फ्रांस एवं प्रशा के बीच हैनोवर की सौंध कर लो। यह संधि की कूटनीति की महान विजय थी।

1727 ई० में स्पेन ने जिब्राल्टर पर असफल आक्रमण किया। दो वर्ष बाद स्पेन और इंगलैंड के बीच संधि हुई जिसके मुताबिक फिलिप पंचम ने ऑस्टेंड कम्पनी की स्वीकृति रद्द कर दी और परमा में डान केरलास की मांग को मान्यता दी गयी। इस संधि के दो वर्ष बाद आस्ट्रिया और के बीच साँध हो गयी। परन्तु इन संधियों से यूरोपीय संकट टल नहीं पाया।

1733 ई० में पोलैंड के शासक आगस्टस की मृत्यु हो गयी। पोलैंड में उत्तराधिकार का प्रश्न उपस्थित हो गया। आगस्टस नेक्सनी का भी एलक्टर था, अतः आस्ट्रिया और रूस मृत राजा के पुत्र आगस्टस मार्ले को गद्दी पर बैठाना चाहते थे। परन्तु फ्रांस ने पोलैंड के भूतपूर्व राजा Slanislaus Leczynski का पक्ष लिया। फ्रांस और स्पेन के बीच पारिवारिक संधि हुई। रूस और सेक्सनी की सेना की सहायता से आगस्टस माले गद्दी पर बैठा। अब फ्रांस, स्पेन और सेवाय की सेना ने आस्ट्रिया के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। वालपोल बहुत पेशोपेश में गया कि वह किस पक्ष का साथ दे। इंग्लैंड का जनमत आस्ट्रिया के पक्ष में था। परन्तु आस्ट्रिया का पक्ष लेने पर फ्रांस और स्पेन के साथ इंग्लैंड की शत्रुता बढ़ जाती, अतः जनमत की उपेक्षा कर वालपोल पोलैंड के उत्तराधिकार युद्ध में तटस्थ रहा। उसने रानी कैरोलीन को गर्वपूर्वक यह कहा कि पोलैंड के युद्ध में पच्चास हजार यूरोपीय मारे गये, परन्तु उनमें एक भी अंग्रेज नहीं था।

1739 ई. में स्पेन के विरूद्ध आक्रमण करने के लिए वालपोल को विवश हो जाना पड़ा। यूट्रैक्ट की संधि के अनुसार इंगलैंड को स्पेनी अमेरिकी में प्रतिवर्ष एक जहाज भेजने का अधिकार मिला था। नीग्रो गुलामों को बेचने से इंगलैंड को अत्यधिक लाभ होता था, अतः संधि की शर्तों की अवहेलना कर इंगलैंड के व्यापारी कई जहाज भेजने लगे। स्पेन के अधिकारियों ने अंग्रेजी जहाजों की जाँच प्रारम्भ कर दी। जेंकिस नामक अंग्रेजी जहाजी कप्तान ने पार्लियामेंट में आकर बयान दिया कि स्पेन के अधिकारियों ने उसका एक कान काट लिया है। इस बयान से इंगलैंड में तहलका मच गया। प्रबल जनमत के सामने वालपोल को शांति के बदले युद्धनीति की घोषणा करनी पड़ी। स्पेन के साथ युद्ध का संचालन ठीक नहीं हो पाया। फलतः इंगलैंड को पेड्रो की संधि करनी पड़ी। अंग्रेजी जहाजों को क्षति पहुँचाने का दोष स्वीकार करते हुए स्पेन ने 95,000 पौंड की रकम देना स्वीकार किया। इस संधि की आलोचना राष्ट्रीय अपमान के रूप में विरोधियों ने की। सन् 1740 ई० में आस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध का संचालन वालपोल ठीक से नहीं कर पाया कॉमनसभा में और बाहर भी वालपोल की असफल वैदेशिक नीति की तीव्र भतर्सना की गयी। परिणामस्वरूप 1742 ई० के आम चुनाव में वालपोल कॉमनसभा का बहुमत खो बैठा और उसी वर्ष उसने पद त्याग कर दिया।

वालपोल की स्कॉटिस नीति :
1736 ई० में एडिनबरा में पोर्टियस विद्रोह हुआ। पोर्टियस एडनबरा शहर की सेना का कप्तान था। वह चुंगी नहीं चुकाने वाले एक चोर व्यापारी को. प्राणदण्ड की सजा दे रहा था। उस व्यापारी के प्रति सहानुभूति रखने वाले लोगों की एक भीड़ ने नगर रक्षक सेना पर पत्थर फेंकना शुरू किया। पोर्टियस ने भीड़ पर गोली चला दी जिससे लोग और भी उत्तेजित हो गये। पोर्टियस पर मुकदमा चला और उसे फाँसी की सजा मिली। परन्तु सरकार ने उसकी सजा स्थगित कर दी। कुद्ध भीड़ ने किले में घुसकर पोर्टियस को फाँसी दे दी। वालपोल एडिनबरा का चार्टर छीन लेना चाहता था परन्तु विरोधी दल ने चार्टर छीनने की कटु आलोचना की। इसे वे नागरिक स्वतंत्रता का अपहरण मानते थे। अनिश्चय की स्थिति में वालपोल ने चार्टर छीनने का प्रस्ताव वापस ले लिया और केवल एडिनबरा शहर को दण्ड देकर ही उसे संतुष्ट रह जाना पड़ा।

आयरिश नीति
आयरलैंड की मुद्राप्रणाली में सुधार लाने के उद्देश्य से एक लुहार को ताम्बे के सिक्के बनाने की आज्ञा दी गयी, परन्तु सिक्का सुधार की योजना में आयरिशों से पूछा नहीं गया। आयरलैंड में लोक विरोध हुआ और विवशतावरा वालपोल को सिक्का बनाने का ठेका रद्द कर देना पड़ा। वालपोल की इस नीति से इंगलैंड की प्रतिष्ठा पर बहुत बड़ा आघात पहुँचा

औपनिवेशिक नीति
वालपोल उपनिवेशों से मित्रता रखना चाहता था। उसने स्वतंत्र व्यापार की नीति अपनाकर उपनिवेशों की शिकायत दूर करने की चेष्टा की परन्तु औपनिवेशिक व्यापार को वह पूर्णरूप से मुक्त करना नहीं चाहता था। उसने 1733 ई. में मीलसेज एक्ट पास कर चीनी के आयात पर निषेधात्मक चुंगी लगा दी। हेट बनाने एवं ताँबा गलाने पर भी प्रतिबंध लगाकर औपनिवेशिक व्यापार पर नियंत्रण रखा गया।

वालपोल के पतन के कारण वालपोल का पतन कई कारणों के चलते हुआ। उसने एक संगठित विरोधी पक्ष का सामना करना पड़ा। टोरी दल के अतिरिक्त असंतुष्ट द्विग उसको शांति नीति का विरोध करते थे। असंतुष्ट हिगों को पेट्रियट हिंग कहा जाता था। कुछ नौजवान भी वालपोल के कट्टर विरोधी थे जिनमें विलियम पीट प्रधान था। वालपोल उन्हें लड़के नाम से पुकारता था। टोली दल के अतिरिक्त कुछ प्रसिद्ध विद्वान जैसे जेम्स थॉम्पसन और डीन स्विपट भी वालपोल की कटु आलोचना करने लगे। संगठित विरोधी पक्ष को प्रसन्न करने के लिए वालपोल ने भ्रष्टाचार का सहारा लिया। वह व्यक्ति का मूल्य चुकाना चाहता था, परन्तु यह वालपोल का भ्रम था। संगठित विरोधी पक्ष के चलते ही वह स्कॉटलैंड में पोर्टियस विद्रोह को दबाने में असफल रहा। स्पेन के साथ उसे युद्ध करने के लिए मजबूर होना पड़ा और उसमें केवल अप्रतिष्ठा ही हाथ लगी। 1737 ई० में जार्ज द्वितीय की रानी कैरोलिन की मृत्यु हो गयी। रानी वालपोल की सहायिका थी। उसकी मृत्यु हो साथ वालपोल की स्थिति बहुत नाजुक हो गयी। 1742 ई० में कॉमनसभा में बहुमत नहीं रहने पर वालपोल को पद त्याग कर देना पड़ा।

वालपोल अपने युग का एक महान व्यक्ति था। उसने देश को समृद्ध किया। उसने स्टुअर्ट पुनः स्थापन को रोका और राजतंत्रात्मक सरकार के स्थान पर संसदीय सरकार की स्थापना की। पूरे 21 वर्षों तक शांति की नीति अपनाकर उसने एक ओर यदि राष्ट्र का आर्थिक विकास किया तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री के पद की सृष्टि की, मंत्रिमण्डलात्मक प्रथा में नये आदर्शों की स्थापना की और दलीय व्यवस्था को संगठित किया। इंगलैंड वालपोल की कीर्ति को भूल नहीं सकता है। उसने भविष्य के लिए इंगलैंड के विकास का मार्ग प्रशस्त कर दिया। उसने सम्भावित खतरे से इंगलैंड की रक्षा की। ग्रेट ब्रिटेन के आधुनिक निर्माताओं में उसे अद्वितीय स्थान प्राप्त है।

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