भारत की अर्थव्यवस्था (Economy of India)
सबसे पहले हम यह समझेगें की अर्थव्यवस्था होती क्या है, उसके प्रकार एवम गुण और दोष
अर्थव्यवस्था का अर्थ (Meaning of an Economy)
किसी देश के प्राकृतिक तथा भौतिक साधन एवं उसके मानवीय प्रयत्न ही अर्थव्यवस्था की सृष्टि करते हैं। अर्थव्यवस्था से हमारा अभिप्राय एक देश या क्षेत्र विशेष की उस व्यवस्था से है जिसके अंतर्गत मनुष्य की आवश्यकताओं की संतुष्टि से संबंधित उसके सभी आर्थिक क्रियाकलापों का संपादन होता है।
आप अपने देश, राज्य, शहर या गाँव में देखते हैं कि लोग कई प्रकार की आर्थिक क्रियाओं में संलग्न हैं। किसान खेत-कारखानों में काम करनेवाले मजदूर, कारीगर, शिक्षक डॉक्टर, इंजीनियर, दूकानदार आदि समाज के विभिन्न वर्ग है, जो किसी-न-किसी कार्य में लगे हुए है। इनकी ये क्रियाएँ आर्थिक क्रियाएँ कहलाती है। लेकिन, इन क्रियाओं का उद्देश्य क्या होता है? इसका सीधा एवं सरल उत्तर यह है कि इन क्रियाओं के द्वारा लोग अपने जीविकोपार्जन अर्थात विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन अथवा साधन प्राप्त करना चाहते है। मनुष्य को जीवन में भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा, चिकित्सा, मनोरंजन आदि की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनेक प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं की जरूरत पड़ती है। आर्थिक क्रियाओं के द्वारा ही इन आवश्यकताओं की संतुष्टि संभव है। यही कारण है कि समाज का प्रत्येक वर्ग या समुदाय किसी कार्य में लगा है तथा इससे उसे जो धन, आय या साधन प्राप्त होता है उससे वह अपनी और अपने परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करता है।
अर्थव्यवस्था के कार्य। (Functions of an Economy)
एक अर्थव्यवस्था आर्थिक क्रियाओं के संचालन की व्यवस्था या प्रणाली है। इन आर्थिक क्रियाओ के द्वारा ही मनुष्य जौविकोपार्जन एवं अपनी आवश्यकताओं की संतुष्टि करता है। इसलिए जान लेना आवश्यक है कि अर्थव्यवस्थाओं का संचालन किस प्रकार होता है।
उत्पादन (Production)
किसी भी समाज के सदस्यों को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अनेक प्रकार को 'वस्तुओं और सेवाओं की आवश्यकता होती है। एक आर्थिक व्यवस्था में ही विभिन्न साधनों के सहयोग से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है जो हमारी आवश्यकताओं को संतुष्ट करती है। उत्पादन के इन साधनो को हम भूमि, श्रम, पूँजी संगठन एवं साहस पाँच वर्गों में विभक्त कर सकते हैं। एक अर्थव्यवस्था उत्पादन के साधनों को एकत्र कर उनमें सामंजस्य स्थापित करती है।
प्राचीन काल में मनुष्य की आवश्यकताएं बहुत कम थी। वह उनकी पूर्ति स्वयं कर लेता था। लेकिन, वर्तमान समय में कोई भी व्यक्ति अपनी विविध प्रकार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन नहीं कर सकता। अतएव, आधुनिक समाज का प्रत्येक सदस्य किसी एक ही वस्तु का उत्पादन करता है और इनके आदान-प्रदान या विनिमय द्वारा अपनी आवश्यकताओं को पूरा करता है। आरंभ में लोग अपनी वस्तुओं का प्रत्यक्ष रूप में एक-दूसरे से विनिमय करते थे। उदाहरण के लिए, एक किसान अनाज देकर जुलाहे से कपड़ा प्राप्त कर लेता था। लेकिन, वस्तुओं और सेवाओं के प्रत्यक्ष विनिमय में कई कठिनाइयाँ थी। इसके फलस्वरूप समाज में मुद्रा का आविष्कार हुआ। मुद्रा विनिमय के माध्यम का कार्य करतो है। इस व्यवस्था के अंतर्गत किसान अनाज को बेचकर मुद्रा प्राप्त करता है और इस मुद्रा से अपनी आवश्यकता की अन्य वस्तुएं खरीदता है। इस मौद्रिक प्रणाली में वस्तुओं और सेवाओं का लेन-देन अर्थात विनिमय अप्रत्यक्ष रूप में होता है। एक अर्थव्यवस्था विनिमय की इस व्यवस्था द्वारा समाज के सदस्यों में संपर्क स्थापित कर उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करती है।
वितरण (Distribution)
एक अर्थव्यवस्था में मानवीय आवश्यकताओं की संतुष्टि अथवा उपभोग के लिए वस्तुओं का उत्पादन और इनका विनिमय होता है। परंतु उत्पादन के साधन उत्पादन का कार्य संयुक्त रूप से करते हैं। अंतः, इनके सम्मिलित प्रयास से उत्पादित वस्तुओं और सेवाओ का, जिसे कुल राष्ट्रीय उत्पादन कहते हैं, इन्हीं के बीच वितरण कर दिया जाता है। किसी देश या समाज के कुल उत्पादन में से भूमि को लगान, श्रमिको को मजदूरी, पूँजीपति को व्याज, संगठनकर्ता को वेतन तथा साहसी को लाभ मिलता है। समाज के कुल उत्पादन से इन साधनों को जो हिस्सा मिलता। है वह इनकी आय होती है। इस प्रकार, आर्थिक क्रियाओं के संचालन में वितरण भी एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। इसका अभिप्राय उत्पादन के साधनों द्वारा उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के विक्रय से प्राप्त आय को इन्हीं के बीच बाँटने की क्रिया से है। एक अर्थव्यवस्था ही इस बात का निर्णय लेती है कि समाज की कुल संपत्ति का उत्पादन करनेवाले साधनों के बीच किस प्रकार वितरण किया जाए।
विनियोग (Investment):
आर्थिक व्यवस्था या अर्थव्यवस्था का एक अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना है। एक विकासशील अर्थव्यवस्था में ही देश के नागरिकों की बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा किया जा सकता है। इसके लिए कुल राष्ट्रीय उत्पादन एवं आय में वृद्धि आवश्यक है। यदि हम अपनी उत्पादित संपूर्ण संपत्ति का उपभोग कर जाते हैं तब समाज का भावी विकास संभव नहीं होगा। अतः एक अर्थव्यवस्था कुल उत्पादन के एक भाग को बचाकर उसका प्रयोग अपनी उत्पादनक्षमता को बढ़ाने के लिए करती है। इसे आर्थिक शब्दावली में विनियोग या निवेश कहा जाता है।
इस प्रकार, उपभोग, उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा विनियोग एक अर्थव्यवस्था के मुख्य कार्य है। किसी भी अर्थव्यवस्था में यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।
विश्व के सभी देशों की अर्थव्यवस्थाएं एक जैसी नहीं है। उदाहरण के लिए, हमारी अर्थव्यवस्था चीन की अर्थव्यवस्था से भिन्न है। उसी प्रकार, भारत तथा अमेरिका या जापान की अर्थव्यवस्थाओं में भी बहुत अंतर है। इस अध्याय में हम इस बात पर विचार करेंगे कि विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्था में किस आधार पर अंतर किया जाता है।
यद्यपि अर्थव्यवस्थाओं के वर्गीकरण के कई आधार हो सकते हैं, तथापि इनमें दो अधिक महत्त्वपूर्ण है—
(i) उत्पादन के साधनों का स्वामित्व
(ii) विकास का स्तर
साधनों के स्वामित्व का आधार (Basis of Ownership)
हम जानते है कि एक अर्थव्यवस्था समाज के सदस्यों के लिए जीविकोपार्जन की व्यवस्था करती है। इसके लिए देश में अनेक प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन होता है। परंतु, विस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन कई साधनों के सहयोग से होता है, जिन्हें उत्पादन के साधन कहते है। इन उत्पादन के साधनों पर किसी व्यक्ति या राज्य अथवा दोनों का अधिकार हो सकता है। अतः, उत्पादन के साधनों के स्वामित्व की दृष्टि से अर्थव्यवस्था के तीन प्रकार होते हैं
(i) पूँजीवादी अर्थव्यवस्था
(ii) समाजवादी अर्थव्यवस्था
(iii) मिश्रित अर्थव्यवस्था
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था (Capitalistic Economy)
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वह है जिसमें उत्पादन के साधनों पर व्यक्ति या किसी निजी संस्था का अधिकार एवं नियंत्रण रहता है। इस व्यवस्था के अंतर्गत आर्थिक क्रियाओं का संचालन जी लाभ के उद्देश्य से किया जाता है। इसमें राज्य या सरकार व्यक्ति के आर्थिक क्रियाकलाप में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करती। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था को स्वतंत्र अर्थव्यवस्था कहते है। विश्व के अधिकांश विकसित देशों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था है।
मुख्य विशेषताएँ (Important Features)
एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं निम्नांकित है।
(i) निजी स्वामित्व (Private ownership)
— पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्ति विशेष काप संपत्ति एवं उत्पादन के साधनों पर अधिकार रहता है। वह अपनी संपत्ति का इच्छानुसार प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र होता है। किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर उसकी संपत्ति पर उसके ऊ त्तराधिकारियों का अधिकार हो जाता है।
(ii) आर्थिक स्वतंत्रता (Economic freedom) –
इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक व्यक्ति को अपना कार्य या व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता रहती है। समाज के आर्थिक जीवन में सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम होता है।
(iii) उपभोक्ताओं की संप्रभुता (Consumers' sovereignty) —
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता सर्वोच्च होता है। वास्तव में, इस प्रकार की अर्थव्यवस्था उपभोक्ताओं की इच्छा से संचालित होती है। उत्पादक उन्हीं वस्तुओं का उत्पादन करते हैं जिनकी उपभोक्ता माँग करते है।
(iv) मुनाफे की प्रवृत्ति (Profit motive) —
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की एक प्रमुख विशेषता लाभ या मुनाफे की प्रवृत्ति है। इसमें सभी प्रकार की आर्थिक क्रियाओं का उद्देश्य अधिक-से-अधिक लाभ अर्जित करना होता है।
(v) प्रतियोगिता (Competition ) –
इस प्रकार की अर्थव्यवस्था के अंतर्गत सभी क्रेताओं और विक्रेताओं में प्रतियोगिता होती है। परिणामतः, बाजार में माँग एवं पूर्ति की शक्तियाँ कार्यशील रहती हैं और कोई भी व्यक्ति किसी वस्तु के मूल्य को प्रभावित नहीं कर सकता।
(vi) मूल्य-यंत्र (Price mechanism) —
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के संचालन में मूल्य-यंत्र की भूमिका अत्यधिक महत्त्वपूर्ण होती है। इसमें किसी वस्तु का मूल्य बाजार में उस वस्तु की माँग और पूर्ति के द्वारा निर्धारित होता है।
(vii) समाज का दो वर्गों में विभाजन (Division of society into two classes) —
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में समाज पूँजीपति एवं श्रमिक- -दो वर्गों में विभाजित होता है। पूँजीपतिवर्ग वह है जिसका उत्पादन के साधनों पर अधिकार रहता है। श्रमिकवर्ग वह है जो पूँजीपतियों के हाथ अपना श्रम बेचकर जीवनयापन करता है।
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के गुण (Merits of a Capitalistic Economy)
एक पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के कई लाभ है, जिनमें निम्नांकित महत्त्वपूर्ण है।
(i) अधिक उत्पादन (Increased production)
– एक पूँजीवादी व्यवस्था तकनीकी विकास को प्रोत्साहित करती है। इसके फलस्वरूप इस अर्थव्यवस्था में अधिकाधिक उत्पादन होता है। पूँजीवाद के महान आलोचक कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने भी इस दृष्टि से पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रशंसा की है।
(ii) अकुशलता का निराकरण (Elimination of inefficiency) —
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में विभिन्न उत्पादकों के बीच तीव्र प्रतियोगिता होती है। परिणामतः, उत्पादन के क्षेत्र में अकुशल एवं अयोग्य स्वतः हट जाते हैं तथा योग्य और कुशल उत्पादकों को ही सफलता मिलती है।
(iii) सस्ती वस्तुएँ (Cheap goods) -
इस व्यवस्था के अंतर्गत प्रत्येक उत्पादक अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से उत्पादन लागत को घटाने का प्रयास करता है। इससे उपभोक्ताओं को कम मूल्य पर ही उत्तम कोटि की वस्तुएँ प्राप्त होती है।
(IV) साधनों का पूर्ण उपयोग (Fall utilisation of(( resources) -
(v) लोचपूर्ण (Elastic)
इस प्रकार की व्यवस्था अधिक लोपूर्ण होती है। इसमें अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं के अनुरूप निरंतर परिवर्तन होते रहते है।
(vi) उच्च जीवन-स्तर (Higher standard of living)-
पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के अंतर्गत व्यक्तिविशेष का संपत्ति पर अधिकार रहता है। इससे लोगों को कठिन परिश्रम करने की प्रेरणा मिलती है। इसके फलस्वरूप राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय में वृद्धि होती है और नागरिकों का जीवन-स्तर ऊंचा होता है।
मिश्रित अर्थव्यवस्था के दोष (Demerits of a Mixed Economy)
मिश्रित अर्थव्यवस्था पूर्णतः दोषरहित नहीं है। इसमें कुछ दोष भी हैं जो निम्नांकित हैं।
(i) अव्यावहारिक (Impractical)
कई लेखकों ने मिश्रित अर्थव्यवस्था को अव्यावहारिक बताया है। इनके अनुसार निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्र का व्यवहार में एक साथ कार्य करना कठिन है।
(ii) अस्थायित्व ( Instability) –
मिश्रित अर्थव्यवस्था के अंतर्गत स्थायित्व का अभाव होता है। यह संभव है कि इसमें सार्वजनिक क्षेत्र का इतना अधिक विस्तार हो जाए कि वह निजी क्षेत्र को अंततः समाप्त कर दे। उसी प्रकार यह भी संभव है कि निजी क्षेत्र इतना शक्तिशाली हो कि सार्वजनिक क्षेत्र को उसपर निर्भर रहना पड़े इन दोनों ही परिस्थितियों में मिश्रित अर्थव्यवस्था स्थायी नहीं होगी।
(iii) कुशलता का अभाव (Lack of efficiency)–
मिश्रित अर्थव्यवस्था के विरुद्ध अकुशलता का भी आरोप लगाया जाता है। इसमें पूँजीवादी तथा समाजवादी किसी भी व्यवस्था का संपूर्ण लाभ नहीं प्राप्त होता है।
(iv) राष्ट्रीयकरण की आशंका (Fear of nationalisation ) –
मिश्रित अर्थव्यवस्था केबीअंतर्गत निजी क्षेत्र को हमेशा राष्ट्रीयकरण की आशंका बनी रहती है। इससे देश के आर्थिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था (Mixed Economy in India)
पूँजीवादी एवं समाजवादी दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाएँ एक-दूसरे के सर्वधा विपरीत होती है। पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में व्यक्तियों को अपनी आर्थिक क्रियाओं के संचालन की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है। इसके विपरीत, एक समाजवादी अर्थव्यवस्था पूर्णतः नियंत्रित अर्थव्यवस्था होती है। मिश्रित अर्थव्यवस्था इन दोनों का मध्य मार्ग है।
भारत की अर्थव्यवस्था भी एक मिश्रित या मिली-जुली अर्थव्यवस्था है। हमारे देश की प्रथम औद्योगिक नीति की घोषणा 1948 में हुई जिसमें एक मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाने का निर्णय लिया गया। इसमें सार्वजनिक तथा निजी दोनों ही क्षेत्र कार्यरत है। निजी क्षेत्र के अंतर्गत मूल्य-यंत्र एवं माँग तथा पूर्ति की शक्तियों इस बात का निर्णय लेती है कि किस प्रकार की वस्तुओं का किसके लिए उत्पादन हो परंतु इसमें निजी उद्यम को भी पूर्णतः स्वतंत्र नहीं छोड़ दिया जाता है। इस व्यवस्था में सरकार इस क्षेत्र का भी नियंत्रण करती है कि वे राष्ट्रीय योजना के निर्देशन में कार्य करें।
सार्वजनिक क्षेत्र (Public Sector)
भारत का सार्वजनिक क्षेत्र सरकार के अधीन है और वह योजना अधिकारियों द्वारा निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार कार्य करता है। भारत सरकार या योजना आयोग इस बात का निर्णय लेता है कि यह क्षेत्र किस प्रकार की वस्तुओं का कितनी मात्रा में उत्पादन करे। इस व्यवस्था में योजना अधिकारी ही इस बात का भी निर्णय लेते हैं कि उत्पादन की कौन-सी विधि या तकनीक अपनाई जाए जिसमें साधनों का पूर्ण एवं कुशल उपयोग हो।
भारत के सार्वजनिक क्षेत्र में सरकार ही इस बात का भी निर्णय लेती है कि कौन-सा उद्योग कहाँ स्थापित किया जाए, उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं का मूल्य क्या हो तथा उत्पादन के साधनों का पारिश्रमिक किस आधार पर निर्धारित किया जाए।
बोकारो का इस्पात कारखाना, हिन्दुस्तान मशीन टूल्स, हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड चित्तरंजन का रेलवे इंजन कारखाना, भारतीय उर्वरक निगम आदि सार्वजनिक क्षेत्र की औद्योगिक है।
निजी क्षेत्र (Private Sector)
एक मिश्रित अर्थव्यवस्था होने के कारण भारत में सार्वजनिक क्षेत्र के साथ ही निजी क्षेत्र भी है। इस क्षेत्र के उद्यमों का प्रबंध और संचालन निजी उद्यमियों द्वारा होता है। यह क्षेत्र लाभ या मुनाफे के उद्देश्य से वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करता है। टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी, बजाज स्कूटर्स लिमिटेड, खेतान फैन लिमिटेड, ग्रासिम इंडस्ट्रीज लिमिटेड, आई.टी.सी. लिमिटेड आदि भारत में निजी उपक्रम के उदाहरण है।
भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था की उपयुक्तता (Suitability of Mixed Economy in India) भारत के लिए मिश्रित अर्थव्यवस्था उपयुक्त है या नहीं यह एक विवादास्पद पन रहा है। कई लेखकों के अनुसार इस व्यवस्था में सार्वजनिक क्षेत्र का ही अधिक विस्तार हुआ है। व्यक्तिगत प्रेरणा एवं उद्यम पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ा है।
वास्तव में, यह तर्क निराधार है। भारत में मिश्रित अर्थव्यवस्था की उपयुक्तता निम्नलिखित बातों से सिद्ध होती है।
(i) संरचनात्मक सुविधाओं का निर्माण किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए संरचनात्मक सुविधाओं का निर्माण अत्यंत आवश्यक है। इनके अंतर्गत शक्ति के साधन, रेल एवं सड़क यातायात तथा संचार सुविधाएँ आदि शामिल हैं। इनके विकास के लिए भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार आवश्यक था।
(ii) पूँजीगत उद्योगों का विकास- निजी उद्योग आधारभूत एवं पूँजीगत उद्योगों के विकास में रुचि नहीं लेते हैं। इसका कारण यह है कि इनके लिए बहुत अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है और ये काफी समय के बाद उत्पादन आरंभ करते हैं। मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाने के कारण ही भारत में आधारभूत उद्योगों का इतनी शीघ्रता से विकास हुआ है।
(iii) सामाजिक उद्देश्यों की प्राप्ति -सामाजिक दृष्टि से भी भारत के लिए मिश्रितः - अर्थव्यवस्था अधिक उपयुक्त है। इससे देश में धन के केंद्रीकरण एवं आर्थिक विषमताओं में कमी हुई है।
विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्था (Developed and Developing Economy)
आर्थिक विकास की दृष्टि से हम विश्व की विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं को दो भागों में विभाजित कर सकते है। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान आदि देशों की अर्थव्यवस्थाएँ विकसित अर्थव्यवस्थाओं के उदाहरण है। इन देशों की राष्ट्रीय तथा प्रतिव्यक्ति आय अधिक है तथा इनके नागरिकों का जीवन स्तर अपेक्षाकृत बहुत ऊँचा है। इसके विपरीत भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया आदि देशों की अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई या विकासशील अर्थव्यवस्था है। इनकी प्रतिव्यक्ति आय बहुत कम है तथा ये देश निर्धन देशों की श्रेणी में आते है। अतः, विकास के स्तर के आधार पर अर्थव्यवस्था के दो प्रकार है
(i) विकसित अर्थव्यवस्था
(ii) विकासशील अर्थव्यवस्था
विकसित अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएं निम्नांकित है।
(i) औद्योगिक क्षेत्र की प्रधानता (Predominance of industrial sector)
विकसित अर्थव्यवस्था में औद्योगिक क्षेत्र की प्रधानता पाई जाती है। इसमें राष्ट्रीय आय का अधिकांश उद्योग-धंधों से प्राप्त होता है। (ii) पूँजी का अधिकाधिक प्रयोग (Maximum use of capital) — विकसित अर्थव्यवस्था में पूंजी का अधिकाधिक प्रयोग होता है। इस अर्थव्यवस्था के अंतर्गत उत्पादक क्रियाओं में श्रम की अपेक्षा पूँजी की प्रधानता होती है।
(iii) आधुनिक तकनीक (Modern technology)
इस प्रकार की अर्थव्यवस्था में उत्पादन के अत्याधुनिक तरीकों का प्रयोग किया जाता है। इससे देश के उपलब्ध साधनों का इष्टतम उपयोग होता है तथा उत्पादन की मात्रा में तेजी से वृद्धि होती है।
(iv) उच्च जीवन-स्तर (Higher standard of living) -
विकसित अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय एवं प्रतिव्यक्ति आय अधिक होती है। इसके फलस्वरूप इसके नागरिकों का सामान्य जीवन स्तर ऊँचा रहता है।
(v) वचत एवं विनियोग (Saving and investment)
प्रतिव्यक्ति आय अधिक होने के कारण विकसित अर्थव्यवस्था में बचत, पूँजी निर्माण एवं विनियोग की मात्रा अधिक होती है। इन देशों में उत्पादकता का स्तर ऊँचा होने का यह एक प्रमुख कारण है।
विकासशील अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ (Important Features of a Developing Economy)
विकासशील अर्थव्यवस्था की मुख्य विशेषताएँ निम्नांकित है।
(i) निम्न प्रतिव्यक्ति आय (Low per capita income) –
यह विकासशील अर्थव्यवस्था की प्रधान विशेषता है जो उसके संपूर्ण आर्थिक जीवन को प्रभावित करती है। प्रतिव्यक्ति आय कम होने के कारण इन देशों में व्यापक निर्धनता वर्तमान रहती है तथा लोगों के रहन-सहन का स्तर बहुत निम्न होता है।
(ii) कृषि की प्रधानता (Predominance of agriculture) -
अर्द्धविकसित या विकासशील देशों में कृषि की प्रधानता रहती है। इसके साथ ही इनकी कृषि व्यवस्था परंपरागत और पिछड़ी होती है।
(iii) औद्योगिक पिछड़ापन (Industrial backwardness)-
विकासशील देशों में आधुनिक एवं वृहत उद्योगों का अभाव होता है। इनकी उत्पादन तकनीक भी प्राचीन होती है।
(iv) पूँजी की कमी (Lack of capital) —
पूँजी निर्माण की मंद गति विकासशील अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख लक्षण है। उपलब्ध साधनों का पूर्ण उपयोग नहीं होने के कारण ऐसे देशों में पूँजी निर्माण की दर कम होती है।
(v) आय एवं धन का असमान वितरण (Unequal distribution of income and wealth) -
एक विकासशील अर्थव्यवस्था में आय और धन का वितरण बहुत ही विषम होता है। राष्ट्रीय आय का एक बड़ा भाग कुछ थोड़े-से व्यक्तियों के हाथ में केंद्रित रहता है और देश की अधिकांश जनता घोर निर्धनता में जीवनयापन करती है।
(vi) जनसंख्या का दबाव (Pressure of population) -
तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या भी विकासशील देशों की एक प्रमुख विशेषता है। जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि के कारण इन देशों में बेरोजगारी तथा अर्द्धबेरोजगारी की मात्रा अधिक होती है।
(vii) अन्य (Others) –
इसके अतिरिक्त विकासशील देशों की कुछ अन्य विशेषताएँ भी हैं। इन देशों में उपभोग का सामान्य स्तर बहुत निम्न रहता है, इनके अधिकांश निवासी अशिक्षित और रूढ़िवादी होते हैं। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की स्थिति बहुत कमजोर होती है तथा समाज कई वर्गों में विभाजित रहता है।
भारत की अर्थव्यवस्था
भारतीय अर्थव्यवस्था ने पिछले कुछ दशकों में बड़ी वृद्धि देखी है। इस उछाल का श्रेय काफी हद तक सेवा क्षेत्र को जाता है। कृषि और इससे जुड़ी गतिविधियों को भी वैश्विक मानकों से मेल खाने के लिए सुधारा गया है और विभिन्न खाद्य उत्पादों के निर्यात में वृद्धि देखी गई है जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिला है। कई नए बड़े पैमाने के साथ-साथ लघु उद्योग भी हाल के दिनों में स्थापित किए गए हैं और इनका भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव भी साबित हुआ है। Covid के दौरान भारत समेत कई देशों के जीडीपी ग्रोथ रेट गिर गई थी । परंतु covid महामारी के बाद भारत की जीडीपी रेट में लगातार सुधार आता जा रहा हैं। वर्तमान समय में कभी ब्रिटिश उपनिवेश रहा भारत 2021 के आखिरी तीन महीनों में ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना है.
गणना अमेरिकी डॉलर के आधार पर की गई है. इसके अलावा अंतराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आंकड़े अनुसार, जीडीपी (GDP) के आंकड़ों के आधार पर भारत ने पहली तिमाही में अपनी बढ़त और मजबूत कर ली है.
औद्योगिक क्षेत्र का उदय
भारत सरकार ने लघु और बड़े पैमाने पर उद्योग के विकास को भी बढ़ावा दिया क्योंकि यह समझ में आ गया था कि, अकेले कृषि, देश के आर्थिक विकास में मदद नहीं कर पाएगी। स्वतंत्रता के बाद से कई उद्योग स्थापित किए गए हैं। बेहतर कमाई की कोशिश में बड़ी संख्या में लोग कृषि क्षेत्र से औद्योगिक क्षेत्र में स्थानांतरित हो गए।
आज, हमारे पास कई उद्योग हैं जो बड़ी मात्रा में कच्चे माल के साथ-साथ तैयार माल का निर्माण करते हैं। फार्मास्युटिकल इंडस्ट्री, आयरन एंड स्टील इंडस्ट्री, केमिकल इंडस्ट्री, टेक्सटाइल इंडस्ट्री, ऑटोमोटिव इंडस्ट्री, टिम्बर इंडस्ट्री, जूट और पेपर इंडस्ट्री कुछ ऐसे इंडस्ट्री में से हैं, जिन्होंने हमारी आर्थिक वृध्दि में बहुत बड़ा योगदान दिया है।
सेवा क्षेत्र में विकास
सेवा क्षेत्र ने हमारे देश के विकास में भी मदद की है। इस क्षेत्र ने पिछले कुछ दशकों में वृद्धि देखी है। बैंकिंग और दूरसंचार क्षेत्रों के निजीकरण का सेवा क्षेत्र पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। पर्यटन और होटल उद्योगों में भी धीरे-धीरे वृद्धि देखी जा रही है। हाल के एक सर्वेक्षण के अनुसार, सेवा क्षेत्र देश की अर्थव्यवस्था में 50% से अधिक का योगदान दे रहा है।
डिमोनेटाइजेशन के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था
सबसे ज्यादा प्रभावित ग्रामीण इलाकों के लोग थे जिनके पास इंटरनेट और प्लास्टिक मनी (Credit & Debit Card) नहीं थी। यह देश के कई बड़े और छोटे व्यवसायों को बहुत बुरी तरह से प्रभावित करता है। उनमें से कई को इसके परिणामस्वरूप बंद कर दिया गया था। जबकि विमुद्रीकरण के अल्पकालिक प्रभाव विनाशकारी थे, जब दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखा गया तो इस निर्णय का एक उज्जवल पक्ष भी था।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर विमुद्रीकरण का सकारात्मक प्रभाव
भारतीय अर्थव्यवस्था पर विमुद्रीकरण का सकारात्मक प्रभाव काले धन का टूटना है, जाली मुद्रा नोटों में गिरावट, बैंक जमाओं में वृद्धि, विमुद्रीकरण ने रियल एस्टेट क्षेत्र में काले धन के प्रवाह को रोक दिया ताकि एक निष्पक्ष तस्वीर सुनिश्चित की जा सके। डिजिटल लेनदेन में वृद्धि, आतंकवादी गतिविधियों के लिए मौद्रिक समर्थन में कटौती, प्रमुख परिणाम साबित हुए।
भारतीय अर्थव्यवस्था पर विमुद्रीकरण का नकारात्मक प्रभाव
हमारे कई उद्योग नकदी-चालित हैं और अचानक विमुद्रीकरण ने इन सभी उद्योगों को भूखा छोड़ दिया। इसके अलावा, हमारे कई छोटे पैमाने के उद्योग, साथ ही बड़े पैमाने पर विनिर्माण उद्योगों को भारी नुकसान हुआ, जिससे देश की अर्थव्यवस्था नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई। कई कारखानों और दुकानों को बंद करना पड़ा। इससे न केवल व्यवसायों बल्कि वहां कार्यरत श्रमिकों पर भी असर पड़ा। कई लोगों, विशेषकर मजदूरों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।