सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण और परिणाम

 

सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण और परिणाम (Causes and consequences of civil disobedience movement)

1930 में गाँधी जी के ग्यारह सूत्री मांगों का भारत सरकार ने कोई उत्तर नहीं दिया। अतः काँग्रेस सत्याग्रह या संविनय अवज्ञा आन्दोलन शुरू करने के लिए तुल गई। किन्तु महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों से संधिवार्ता का एक और दौर करने का प्रयास किया। उन्होंने अपने अंग्रेजी म रेजीनाल्ड्स के माध्यम से भारत के वायसराय को एक पत्र लिखा जिसका अन्तिम वाक्य या था कि, "मेरा बस चले तो मैं आपको अनावश्यक हो क्या जरा-सी कठिनाई में भी डालना चाहूँ। यदि आपको मेरे पत्र में सार दिखाई दे और हमारे साथ संधिवार्ता करना चाहें और इस हेतु आप इस पत्र को छपने से रोकना पसंद करें तो इसके पहुँचते ही आप मुझे तार कर दीजिए, मैं खुशी से रुक जाऊँगा। परन्तु इतनी कृपा अवश्य कीजिए कि यदि आप इस पत्र के सार को भी अंगीकार करने को तैयार न हों तो मुझे अपने इरादे से रोकने का प्रयत्न न करें। इस पत्र का तात्पर्य धमकी देना नहीं है, अपितु यह तो सत्याग्राही का साधारण और पवित्र कर्तव्य मात्र है।"

सविनय अवज्ञा आंदोलन के कारण और परिणाम

गाँधी जी के उक्त प्रश्न का उत्तर वायसराय ने अत्यन्त संक्षिप्त रूप में दिया जिसका आशय था कि, "आप जो कार्य करने जा रहे हैं उसके फलस्वरूप देश में अव्यवस्था उत्पन्न हो जायेगी।" इस पर गाँधी जी ने अत्यन्त क्षुब्ध होकर कहा था कि, "मैंने अंग्रेजों से रोटी माँगी थी और उन्होंने मुझे बदले में पत्थर भेज दिया। वास्तव में अंग्रेजी कानून को मानने से इन्कार करता हूँ और इस जबर्दस्ती की मैं विरोध में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का शुभारम्भ कर समाप्त करता हूँ ।"
इस तरह महात्मा गाँधी अपने पृथक प्रयासों के बावजूद सविनय अवज्ञा आन्दोलन को शुरू करने से नहीं रोक सके। उन्होंने इस आन्दोलन का शुभारम्भ स्वयं अपने हाथों अंग्रेजों के नमक कानून को भंग कर शुरू करने का निश्चय किया। अतः 12 मार्च, 1930 को गाँधी जी नमक- कानून भंग करने के लिए अपने 19 सहयोगियों के साथ साबरमती आश्रम से 200 मील की दूरी पर स्थित डण्डी की ओर चल पड़े। मार्ग में देशप्रेमियों ने सत्याग्रहियों का भव्य स्वागत। किया। गाँधी जी के इस नमक सत्याग्रह से भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नवजीवन का संचार हुआ। इस महान अवसर पर भारतीयों के दिलों में देशप्रेम की जितनी प्रबल धारा बह रही थी उतनी पहले कभी नहीं थी। 24 दिनों की यात्रा समाप्त करने के उपरांत गाँधी जी ने 6 अप्रैल, 1930 को डाण्डी के समुद्र तट पर नमक बनाकर नमक कानून भंग किया। तत्पश्चात् महात्मा गाँधी के कृत्य का अनुसरण करते हुए लाखों व्यक्तियों ने जगह-जगह नमक कानून का उल्लंघन किया। अंग्रेजों ने प्रारम्भ में नमक सत्याग्रह का मजाक उड़ाते हुए गांधी जी को गिरफ्तार करना आवश्यक न समझा। अतः धार धारे आंदोलन की गति तीव्र होती चली गई।

महात्मा गाँधी द्वारा तैयार किये गये सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रमों में नमक सत्याग्रह के अतिरिक्त शराब और विदेशी कपड़े की दुकानों पर धरना देना, चरखा कातना, विदेशी कपड़े जलाना, सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का बहिष्कार करना तथा सरकारी नौकरियों से त्यागपत्र देना इत्यादि भी शामिल थे। देशवासियों ने अत्यधिक उत्साह से गाँधी जी का साथ दिया। पुलिस के जोरदार दमनचक्र के बावजूद जनता के उत्साह में कमी न आई। कई स्थानों पर तो सरकार का शासन समाप्त हो गया और बड़ी कठिनाई से वहाँ दुबारा गोलियों की वर्षा भी की। अन्ततः 5 मई, 1930 ई० को गाँधी जी गिरफ्तार कर लिए गए। किन्तु उनकी गिरफ्तारी की खबर सुनकर जन आक्रोश और भी भड़क उठा और आन्दोलनकारियों ने प्रतिशोधग्नि में जलते हुए आन्दोलन को और भी गति प्रदान करने की चेष्टा की। पुरुषों के साथ महिलाओं ने भी आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू किया। अकेले दिल्ली शहर में 1,600 स्त्रियाँ धरना देने के कारण गिरफ्तार की गई। आन्दोलन की सफलता के लिए स्वियों के उत्साह को देखकर अंग्रेज अधिकारी भी अमित रहने लगे।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तीव्रता के साथ-साथ अंग्रेजों का दमन चक्र भी बढ़ता गया। गुजरात में पुलिस ने पाशविक प्रवृत्ति का पूर्ण परिचय दिया। एक पखवाड़े के अन्दर पेशावर में पुलिस ने निहत्थी भीड़ पर दो-दो बार गोलियाँ बरसाई। पुलिस द्वारा भीड़ पर लाठीचार्ज करना तो महज एक साधारण बात थी। जनता पर अवर्णनीय अत्याचार किये गये। अत्याचारों के प्रतिकारः स्वरूप अप्रैल, 1930 में चटगाँव का शस्त्रागार लूट लिया गया। 14 दिसम्बर, 1930 को एक अंग्रेज न्यायाधीश आन्दोलनकारी को गोली के शिकार भी हुए प्रति सप्ताह एक न एक अंग्रेज का वध हो ही जाता था। अंग्रेजों के लिये यह स्थिति सर्वथा असह्य थी अतः उन्होंने अपनी दमनात्मक नीति में और भी नृशंसता लाने का निश्चय किया। अनेक स्थानों पर आन्दोलनकारियों की सम्पत्तियाँ जब्त कर ली गयी। और उनके सभी संबंधियों को अपमानित किया गया। आर० बी० एथिलन्स ने अपनी पुस्तक गुजरात के उजड़े ग्राम में लिखा है। "गुजरात के हजारों किसानों के गाँव पुलिस अत्याचार के कारण उजड़ गए।"

आन्दोलन की चरमता और अंग्रेजों द्वारा कठोर दमन चक्र चलाये जाने के बीच परस्पर छोर के बीच ही मई, 1930 ई० में साईमन कमीशन की रिपोर्ट प्रकाशित होने से भारतीय जनता की अंग्रेज विरोधी भावना और भी उग्र रूप धारणा कर ली। सरकार के दमन चक्र चलाये जाने के बीच परस्पर छोड़ के विरोधी भावना और भी उग्र रूप धारण कर ली। सरकार के दमन चक्र के सम्मुख आन्दोलनकारियों का उत्साह दब नहीं सका और आन्दोलन द्रुत गति से बढ़ता रहा। इसी बीच सोलाकौम्बू नामक एक अंग्रेज अफसर ने महात्मा गाँधी और पं० मोती लाल नहेरू और पं. जवाहर लाल नहेरू से कारागार में मिलकर सरकार एवं आन्दोलनकारियों के बीच समझौता कराने का असफल प्रयत्न किया। डॉक्टर जयकर और सर तेजबहादुर सप्रु ने भी इस कार्य को आगे बढ़ाने की चेष्टा की, किन्तु वे भी कोई समझौता कराने में असफल सिद्ध हुए और सविनय अवज्ञा आन्दोलन पूर्ववत् चलता रहा।

12 नवम्बर, 1930 को इंगलैण्ड में हुए प्रथम गोलमेज सम्मेजन में कांग्रेस के भाग न लिये जाने से इसमें सविनय अवज्ञा आन्दोलन की समाप्ति पर कोई विचार-विमर्श नहीं किया जा सका। अतः सरकार कांग्रेस के साथ कोई संधिवार्ता करने को इच्छुक रहने लगी। किन्तु इसके लिए गाँधीजी समेत कांग्रेस कार्य समिति के सदस्यों को कारामुक्त कराना आवश्यक था। अतः सरकार और गाँधीजी की कई दिनों तक वार्ता जारी रही और 5 मार्च, 1931 को प्रसिद्ध गाँधी-इरविन समझौता हुआ। इस समझौते के फलस्वरूप सविनय अवज्ञा आन्दोलन स्थगित कर दिया गया। गाँधी ने द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में राष्ट्रीय कांग्रेस का सम्मिलित होना स्वीकार कर लिया। उन्होंने पुलिस द्वारा किये गये अत्याचारों की जाँच की माँग भी छोड़ दी। दूसरी ओर सरकार की ओर से लॉर्ड इरविन ने आन्दोलन के दौरान गिरफ्तार व्यक्तियों को कारामुक्त करना स्वीकार किया उन्हीं के समय छीनी गयी भूमि एवं सम्पत्ति वापस करने की बात भी मान ली। समुद्र तट से एक निश्चित दूरी तक बसे लोगों द्वारा समुद्र से नमक बनाने का अधिकार स्वीकार कर लिया गया। इतना ही नहीं, शराब या विदेशी कपड़े की दुकानों पर शांतिपूर्वक धरना देने वाली बात भी मान ली गई।

एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने