नगर निगम
शहरी स्थानीय स्वशासन संस्थाओं में नगर निगम शीर्ष स्थान रखता है। नगर निगम नगरपालिका का बड़ा रूप है। बड़े-बड़े नगरों में नगर निगम की स्थापना होती है। इसकी तुलना इंगलैण्ड के काउन्टी बौरो से की जा सकती है। बड़े नगरों की आवश्यकताएँ और समस्याएँ कठिन होती हैं। जब उन सबों का समाधान नगरपालिका से नहीं हो पाता है तो वहाँ नगर निगम की स्थापना होती है। नगरपालिका की तुलना में नगर निगम के कार्य एवं आय के साधन भी अधिक होते हैं। इस पर नगरपालिका की अपेक्षा सरकारी नियंत्रण भी कम रहता है। जिस शहर में नगर निगम होता है वहाँ नगरपालिका नहीं होती है।भारत में कई नगरों में नगर निगम है, बिहार की राजधानी पटना में सबसे पहले नगर निगम को स्थापना की गई। इसे पटना नगर निगम के नाम से पुकारा जाता है। पटना नगर निगम अधिनियम के अनुसार अन्य नगरों में नगर निगम की स्थापना की गई है। इसके लिए बिहार नगर निगम अधिनियम, 1976 के अनुसार राँची, गया, मुजफ्फरपुर एवं भागलपुर में नगर निगम बना है। यहाँ हम पटना नगर निगम के गठन और कार्यों की जानकारी प्राप्त करेंगे।
पटना नगर निगम का संगठन
हुई। पटना नगर निगम के तीन मुख्य अंग है— निगम परिषद, स्थायी समिति और मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी ।
निगम परिषद निगम परिषद में 52 सदस्य होते हैं। इसके सदस्यों के कई प्रकार होते हैं। जैसे—
(i) निर्वाचित सदस्य निर्वाचित सदस्यों की संख्या 37 है। समूचे शहर को 37 बाहों में बाँट दिया जाता है। प्रत्येक वार्ड से एक-एक सदस्य चुना जाता है। चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है। नगर में रहने वाले नागरिक ही इन सदस्यों को चुनते हैं।
(ii) मनोनीत सदस्य सरकार तीन सदस्यों को मनोनीत करती है।
(iii) विशेष हितों के प्रतिनिधि पटना में स्थापित मजदूर संघ, वाणिज्य संघ और पटना विश्वविद्यालय के रजिस्टर्ड स्नातकों के एक-एक प्रतिनिधि विशेष हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
(iv) पदेन सदस्य चार सरकारी पदाधिकारी नगर निगम के पदेन सदस्य होते हैं। निदेशक जनस्वास्थ्य सेवाएँ, बिहार पी० एच० ई० डी० के चीफ इंजीनियर, लोक निर्माण विभाग के अभियंता, प्रमुख सह विशेष सचिव तथा पटना विकास प्राधिकार के अध्यक्ष इसके पदेन सदस्य हैं।
(v) संवाधित सदस्य- -सभी 47 सदस्य मिलकर शेष पाँच सदस्यों को चुनते हैं। इन्हें संवाचित सदस्य कहते हैं । नगर निगमों के निर्वाचित सदस्यों की संख्या बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है साथ ही विशेष हितों के प्रतिनिधि की व्यवस्था को समाप्त किया जा रहा है।
VI कार्यकाल
नगर निगम के सदस्यों का निर्वाचन 4 वर्षों के लिए होता है।
VII भत्ता
पटना नगर निगम के इतिहास में पहली बार 1981 ई० में सदस्यों को भत्ता देने की व्यवस्था की गई है।
मेयर तथा उपमेयर -
निगम परिषद में एक मेयर और एक डिपुटी मेयर होता है। मेयर और डिपुटी मेयर का निर्वाचन परिषद अपने सदस्यों में से करता है। मेयर को महापौर या निगमपति श्री कहते हैं। इन्हें नगरपिता के नाम से भी पुकारा जाता है। इनका निर्वाचन एक वर्ष के लिए होता है। कोई व्यक्ति एक बार से अधिक मेयर मा डिप्टी मेयर निर्वाचित हो सकता है।मेयर निगम परिषद में सभापति का कार्य करता है। वह सभा की कार्यवाही शक्तिपूर्वक चलाने के लिए नियम बनाता है। सभा भंग करने वाले सदस्यों को वह सभा से बाहर कर सकता है। वह सभा को 3 दिनों के लिए स्थगित कर सकता है। मेयर पदेन स्थायी समिति का सभापति होने के नाते राजनीतिक कार्यपालक समिति का अध्यक्ष भी होता है। मेयर नगर का प्रथम व्यक्ति माना जाता है।
डिपुटी मेयर, मेयर के सहायक के रूप में कार्य करता है। यह मेयर की अनुपस्थिति में उसके कार्य का सम्पादन करता है। वह पदेन स्थायी समिति का अध्यक्ष होता है।
स्थायी समिति-
स्थायी समिति नगर निगम का एक मुख्य अंग है। इसमें मेयर और उपमेयर के अलावा 13 और सदस्य होते हैं। मेयर स्थायी समिति का अध्यक्ष होता है। इसका चुनाव दो वर्षों के लिए निगम द्वारा होता है। यह समिति निगम परिषद को प्रशासन के कार्य में मदद पहुँचाती है।
अन्य समितियाँ
स्थायी समिति के अलावा अलग-अलग कार्य के लिए भी कुछ समितियाँ बनाई जाती है। जैसे—शिक्षा के काम के लिए शिक्षा समिति, बाजार के लिए बाजार समिति आदि। प्रत्येक समिति अपने क्षेत्र के सम्बन्ध में निगम को आवश्यक सलाह देती है।मुख्य कार्यपालक अधिकारी •
मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी नगर निगम का सबसे बड़ा - पदाधिकारी होता है। वह नगर निगम के सभी कार्यों का उत्तराधिकारी होता है। नगर निगम के सभी कार्यों का उत्तरदायित्व इसी पर है। यह कम वेतन पाने वाले कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकता है। मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार करती है। इसको नियुक्ति पाँच वर्षो के लिए की जाती है। यह नगर निगम का वास्तविक शासक होता है। यह नगर निगम के कार्यों का विवरण राज्य सरकार को देता है। इस तरह मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी राज्य सरकार और नगर निगम के बीच कड़ी का काम करता है।नगर निगम के कार्य नगर निगम निम्नलिखित कार्यों का सम्पादन करता है—
1. सड़कों का निर्माण, मरम्मत एवं सफाई
2. नालियों का निर्माण, मरम्मत एवं सफाई।
3. सार्वजनिक स्थान के कूड़े-कड़फट की सफाई
4. रोशनी का करना।
5. पीने के पानी का प्रबन्ध करना।।
6. पशुओं की रक्षा करना तथा उनके इलाज की व्यवस्था करना।
7. लोगों के स्वास्थ्य और इलाज का प्रबंध करना ।
8. शिक्षा के लिए स्कूलों की स्थापना करना और उनका प्रबन्ध करना।
9. बाजार, हाट, मेले इत्यादि का प्रबन्ध करना ।
10. पुस्तकालयों तथा कला केन्द्रों की स्थापना करना
11. कसाईखाना का निर्माण करना ।
12. खतरनाक तथा नशीली चीजों की खरीद-बिक्री पर नियंत्रण रखना।
13. पार्क, फुलवारी आदि का निर्माण और उनका प्रबन्ध करना।
14. महामारियों की रोकथाम के लिए टीके, सूई आदि की व्यवस्था करना ।
15. आग लगने पर उसे बुझाने का प्रबन्ध करना।
16. बच्चा जन्म देनेवाली माताओं और बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल के लिए बच्चा-गृह खुलवाना और उसका प्रबन्ध करना।
17. घरेलू उद्योग-धन्धों को बढ़ावा देना ।
यद्यपि नगर निगम की स्थापना से पटना में बहुत सुधार हुआ है तथापि यह सुधार सन्तोषजनक नहीं है। पटना शहर में गन्दगी अब भी बहुत अधिक है। नगरनिगम के आय के साधन भी कम हैं। नगर निगम में गंदी राजनीति अर्थात् दाव-पेंच बढ़ गई है। अतः इन दोषों को दूर करना जरूरी है। पटना के अतिरिक्त राँची, मुजफ्फरपुर, भागलपुर, दरभंगा और गया में भी नगर निगम बनाए गए हैं। इन शहरों में भी इसके कार्यों में सुधार अपेक्षित है।
अन्य शहरी संस्थाएँ
बिहार में स्थानीय स्वशासन की कुछ अन्य संस्थाएँ भी हैं। इन संस्थाओं के गठन और कार्यों का वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है-1. नोटिफाइड एरिया कमिटी -
छोटे-छोटे शहरों में नोटिफाइट एरिया कमिटी की स्थापना की गई है। नोटिफाइड एरिया कमिटियों की स्थापना का अधिकार सरकार को है। अभी राज्य में 96 नोटिफाइड एरिया कमिटियाँ हैं।
संगठन -
नोटिफाइड एरिया कमिटी के सदस्यों की संख्या 10 से 40 तक होती है। समिति - के सदस्यों को राज्य सरकार मनोनीत करती है। सदस्यों को तीन वर्ष के लिए मनोनीत किया जाता है। कोई सरकारी पदाधिकारी ही कमिटी का अध्यक्ष होता है। कमिटी का एक उपाध्यक्ष भी होता है जिसे कमिटी के सदस्य चुनते हैं।कार्य-
यह अपने क्षेत्र में वही कार्य करती है जो नगरपालिकाएँ करती हैं। यह लोगों की जरूरतों को ध्यान में रखती है, सफाई, पीने के पानी का प्रबन्ध, अस्पताल और दवा का प्रबन्ध, टीके, सूई का प्रबन्ध, पार्क बगीचों का प्रबन्ध, सड़कों और गलियों का निर्माण इत्यादि इसके मुख्य कार्य है। नोटिफाइड एरिया में कर लगाने का अधिकार राज्य सरकार को है।2. सुधार न्यास-
बिहार में सबसे पहले 1952 ई० में पटना सुधार न्यास की स्थापना हुई। नगर के विकास के लिए इस तरह की संस्थाएँ बनाई जाती हैं। इसकी स्थापना का अधिकार राज्य सरकार को है। 1962 ई० में राँची, मुजफ्फरपुर और गया में भी सुधार न्यास की स्थापना हुई। परन्तु तीनों जगहों पर अब क्षेत्रीय विकास प्राधिकार की स्थापना की गई है।
संगठन •
सुधार न्यास के कुछ सदस्य होते हैं। साधारणतः इसमें ग्यारह सदस्य रखे जाते है। इसका एक अध्यक्ष होता है। अध्यक्ष की बहाली राज्य सरकार द्वारा की जाती है। काम ठीक दम से करने के लिए कुछ समितियाँ होती है। इसके कुछ स्थायी कार्मचारी भी होते हैं।
कार्य
-सुधार न्यास का सबसे बड़ा कार्य नगरों को योजनाबद्ध तरीके से बसाना, घनी आबादी वाले इलाके को फिर से बसाना, सड़कों को चौड़ा और पक्का करना, हवादार मकानों का निर्माण करना, गंदे मोहल्लों की सफाई करना, जल, रोशनी आदि नागरिक सुविधाओं की व्यवस्था भी इसके कार्य हैं।
3. क्षेत्रीय विकास प्राधिकार 1976 ई० में बिहार सरकार ने कुछ नगरों को योजनाबद्ध ढंग से विकास करने के लिए एक नई संस्था का गठन किया इसे क्षेत्रीय विकास प्राधिकार कहा गया। पटना, मुजफ्फरपुर, गया, दरभंगा और राँची में क्षेत्रीय विकास प्राधिकारों की स्थापना की गई है। जनवरी 1989 में भागलपुर के लिए भी क्षेत्रीय विकास प्राधिकार की स्थापना का निश्चय किया गया।
संगठन इसमें एक अध्यक्ष एवं एक उपाध्यक्ष होता है। दोनों की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा होती है इसमें कई सदस्य होते हैं। इसकी बैठक दो महीने में कम से कम एक बार जरूर होनी चाहिए। कुछ समितियाँ भी बनाई जाती हैं, इसके कुछ स्थायी कर्मचारी होते हैं।
कार्य क्षेत्रीय विकास प्राधिकार के भी लगभग वही कार्य हैं जो सुधार न्यास के हैं। यह हवादार मकान बनाने के लिए भूमि अर्जन और भूमि विकास का काम करता है। गन्दी बस्तियों की सफाई, जल, पार्क, गैस, बिजली की आपूर्ति के लिए योजना तैयार करना, पेड़ लगवाना, पार्क, बगीचों का प्रबन्ध, अस्पताल, बाजार आदि का प्रबन्ध इसके मुख्य कार्य है।
4. कैन्टोनमेण्ट बोर्ड -जिन शहरों में फौजी छावनियाँ होती हैं वहाँ कैन्टोनमेण्ट बोर्ड की स्थापना - की जाती है। बिहार में दानापुर और रामगढ़ में कैन्टोनमेण्ट बोर्ड है। इन बोर्डों का काम भारतीय सेना के सिपाहियों की छावनियों को गन्दगी से बचाना एवं लोकतंत्रीय प्रणाली से वहाँ की शासन व्यवस्था को संचालित करना होता है।