सरकार

 सरकार

सरकार

सरकार राज्य का एक आवश्यक अंग है। सरकार के अभाव में राज्य की कल्पना बेकार है। राज्य अपने कार्यों का सम्पादन सरकार के माध्यम से ही करता है। आज के लोक कल्याणकारी राज्य में सरकार का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है। जनता को अमन-चैन की प्राप्ति एवं सामाजिक न्याय की स्थापना में सरकार का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस प्रकार सरकार अपने विभिन्न रूपों में रहकर जनता की सेवा करता है। आधुनिक युग में विश्व के अधिकांश देशों की शासन प्रणाली जनतांत्रिक है अतएव जनतांत्रिक शासन प्रणाली वाले देशों में सरकार का महत्त्व तो है ही, किन्तु राजतंत्रीय एवं तानाशाही शासन के देशों में भी सरकार का महत्त्व कम नहीं है। अतः सरकार राज्य और समाज के लिए आवश्यक एवं अनिवार्य है।

सरकार का अर्थ

आधुनिक युग जनतंत्र का है। इस जनतांत्रिक युग में सरकार का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। सरकार के अभाव में राज्य रूपी शरीर की कल्पना करना बेकार है। सरकार राज्य का वह प्रकाश पुंज है जिसके आलोक में राज्य प्रकाशित होकर अमन-चैन की व्यवस्था करता है। राजनीति विज्ञान का प्रसिद्ध विद्वान गार्नर ने ठीक ही कहा है कि "सरकार राज्य का वह साधन या मशीन है जिसके द्वारा राज्य के उद्देश्य अर्थात् सामान्य नीतियों और हितों की पूर्ति होती है।"

              इस प्रकार सरकार का अर्थ शासक और शासित दोनों से होता है, क्योंकि सरकार राज्य के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।

सरकार के प्रकार

राज्य के अन्तर्गत सरकार के कई रूप हो सकते हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार हिरोडोटस ने सरकार को तीन वर्गों में विभाजित किया है. - राजतंत्र, कुलीनतंत्र एवं प्रजातंत्र उसने यह भी बताया है कि यदि ये सरकार भ्रष्ट हो जाती है तो उत्पीड़क तंत्र नामक एक चौथे रूप में परिवर्तित होकर तानाशाही या अधिनायकवादी हो जाती है। इस प्रकार सरकार के स्वरूप में निरन्तर परिवर्तन होता रहता है। कभी एकतंत्रीय सरकार होती है तो पुनः धीरे-धीरे यही सरकार परिवर्तित होकर प्रजातंत्रीय सरकार का रूप ले लेती है। अरस्तू इस सम्बन्ध में कहता है कि सरकारों का यह परिवर्तन चक्र निरंतर चलता रहता है। सरकार के तीन अंग होते हैं- व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और मैरियट ने सरकार का तीन आधारों पर वर्गीकरण किया है—

(क) शासन शक्ति के विभाजन के आधार पर- -इस आधार पर सरकार को दो भागों में विभाजित किया जाता एकात्मक और संघात्मक । 

(ख) संविधान की प्रकृति के आधार पर- इस आधार पर सरकार को दो वर्गों में रखा गया ।

परिवर्तनशील और अपरिवर्तनशील सरकार । 

(ग) कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के सम्बन्ध के आधार पर- -इस आधार पर सरकार का स्वरूप संसदीय और अध्यक्षात्मक होता है।

 सरकार

 कानून पालन करने वाली सरकारें राजतंत्र

राजतंत्र 

कुलीनतंत्र

प्रजातंत्र

कानून पालन नहीं करने वाली सरकारें

अत्याचार तंत्र

अल्प तंत्र

उग्र प्रजातंत्र

1. राजतंत्र 

राजतंत्र सबसे प्राचीन शासन प्रणाली है। इसमें एक वंश-परम्परा का शासन होता था। शासन की सर्वोच्च सत्ता एक व्यक्ति राजा के हाथ में होती है। उसी के नाम पर सम्पूर्ण देश का शासन चलाया जाता है। राजा को लोग भगवान के अवतार के रूप में जानते थे। परन्तु आधुनिक युग में राजतंत्रीय शासन प्रणाली की लोकप्रियता घटती जा रही है। लोकतंत्रीय शासन प्रणाली में राजतंत्र का महत्व कम गया है। आज ब्रिटेन एवं नेपाल में राजतंत्र आवश्य है, किन्तु इन्तविक रूप में प्रजातंत्र ही देखने को मिल रहा है। राजा केवल नाम मात्र का शासक रहता है। इस प्रकार प्रजातंत्र और सीमित राजतंत्र में कोई विशेष अन्तर नहीं है।

2. कुलीनतंत्र 

इस प्रकार के शासन का जन्म अत्याचारी शासक के विरोध में होता है। राजा अन्य प्रकार के प्रशासक जब अत्याचार करना शुरू कर देते हैं तो कुछ कुलीन और देश के बुद्धिमान लोग जनकल्याण की भावना को आधार मानकर कुलीनतंत्र को जन्म देते हैं। प्रारम्भ में कुलीनतंत्र के प्रशासक लोक कल्याण की भावना को आधार मानकर शासन करते हैं, किन्तु बाद में चलकर के अपनी भलाई में ही लग जाते हैं जिसके परिणामस्वरूप यह सरकार समाप्त हो जाती है और कोई नवीन सरकार का जन्म होता है।

3. तानाशाही या अधिनायक तंत्र 

-इस प्रकार के शासन में सरकार की सम्पूर्ण शक्ति किसी एक व्यक्ति या दल में निवास करता है। सैनिक शक्ति या पार्टी की ताकत के बल पर वह राज्य अपना अधिकार जमा लेता है और उसके अधिकार को सभी लोग डर से मानते हैं। इस प्रकार * शासन में समस्त स्वतंत्रताएँ समाप्त हो जाती हैं। सर्वत्र भय और शक्ति का बोलबाला रहता है। मुसोलिनी के अनुसार, "सब कुछ राज्य के अन्तर्गत है, न तो कोई वस्तु राज्य के बाहर है और कोई वस्तु राज्य के विरुद्ध है।" द्वितीय विश्वयुद्ध के पूर्व इटली में मुसोलिनी और जर्मनी में हिटलर की सरकार तानाशाही सरकार का सर्वोत्तम उदाहरण है। अधिनायकतंत्र का दूसरा नाम फासिस्टवाद भी हैं।

4. प्रजातंत्र -

शासकों की संख्या के आधार पर सरकार का एक और वर्गीकरण होता है जिसे प्रजातंत्र या जनतंत्र कहते है। प्रजातंत्र सरकार का अर्थ जनता का शासन है। लिंकन महोदय ने ठीक ही लिखा है कि "प्रजातंत्र यह शासन है जो जनता का, जनता के लिए तथा जनता द्वारा हो। इसमें जनता की इच्छा और जनमत का बोलबाला रहता है। जनता सरकार पर नियंत्रण रख है और सरकार जनता के प्रति उत्तरदायी रहती है।

5. संसदीय सरकार - 

संसदीय शासन प्रणाली वैसी शासन व्यवस्था है जिसमें वास्तविक कार्यपालिका व्यवस्थापिका से निर्मित होती है। इसमें कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के बीच अनिवार्य और अभिन्न सम्बन्ध होता है। मंत्रिपरिषद या मंत्रिमंडल का निर्माण व्यवस्थापिकाद्वारा होता है। इसके सभी सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं और अपने समस्त कार्यों के लिए उनके प्रति उत्तरदायी रहते हैं। वे अपने पद पर तभी तक रहते हैं जबतक उन्हें व्यवस्थापिका का विश्वास प्राप्त रहता है। भारत और ब्रिटेन में संसदीय सरकार है। भारत का राष्ट्रपति और ब्रिटेन का सम्राट कार्यपालिका का नाम मात्र का प्रधान है। वास्तविक रूप में दोनों देशों में प्रधानमंत्री ही वास्तविक प्रधान है। जिसके नाम पर वास्तविक रूप में शासन होता है वह अपने कामों के लिए संसद के निम्न सदन लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है। लोकसभा में अविश्वास का प्रस्ताव पास होने पर प्रधानमंत्री को अपने पद से त्याग-पत्र देना पड़ता है।

6. अध्यक्षात्मक सरकार 

अध्यक्षात्मक सरकार में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका अलग- अलग रहती है। इसका आधार शक्तियों का विभाजन है। इसके सम्बन्ध में बेजहॉट ने लिखा है कि "व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका दोनों शक्तियों की एक दूसरे से स्वतंत्रता अध्यक्षात्मक सरकार का विशिष्ट लक्षण है और दोनों का एक-दूसरे से संयोग तथा धनिष्ठता संसदीय सरकार को 'अध्यक्षात्मक सरकार को असंसदीय सरकार भी कहा गया है। संसदीय सरकार की नीति इसमें नाममात्र का राष्ट्रपति या राज्याध्यक्ष नहीं होता। इसमें राष्ट्रपति वास्तविक रूप से राज्य का प्रधान होता है। यह एक निश्चित अवधि के लिए जनता के द्वारा निर्वाचित किया जाता है और वह उस अवधि तक अपने पद पर आसीन रहता है। इनके सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य नहीं होते हैं और न उसके प्रति कोई जिम्मेवारी रहती है। इसका निर्माण स्वयं राष्ट्रपति के द्वारा होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्यक्षात्मक सरकार है।

संसदीय और अध्यक्षात्मक सरकार में अन्तर

संसदीय और अध्यक्षात्मक सरकार में अन्तर स्पष्ट है

1. संसदीय सरकार में कार्यपालिका का प्रधान नाम मात्र का प्रधान होता है। अध्यक्षात्मक सरकार में राज्य का प्रधान वास्तविक शासक होता है।

2. संसदीय सरकार में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। इसके विपरीत अध्यक्षात्मक सरकार में दोनों एकदूसरे से स्वतंत्र होती है। 

3. संसदीय सरकार में कार्यपालिका संसद के सदस्य होते हैं, परन्तु अध्यक्षात्मक सरकार में कार्यपालिका के सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य नहीं होते हैं।

4. संसदीय सरकार नमनशील और लचीली होती है, परन्तु अध्यक्षात्मक सरकार कठोर होती है। 

5. संसदीय सरकार में कार्यपालिका नियंत्रित रहती है जबकि अध्यक्षात्मक सरकार में कार्यपालिका की निरंकुशता का भय बना रहता है।

6. संसदीय सरकार शान्ति काल के लिए उपयुक्त है, परन्तु अध्यक्षा सरकार संकटकाल के लिए उपयुक्त माना जाता है।

इस प्रकार संसदीय सरकार और अध्यक्षात्मक सरकार के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अध्यक्षात्मक सरकार की तुलना में संसदीय सरकार ही अच्छा है। 

7. एकात्मक सरकार -एकात्मक शासन व्यवस्था में समस्त शासन शक्ति का संचालन एक केन्द्रीय सत्ता के द्वारा होता है। साथ ही, शासन सम्बन्धी समस्त मामलों का अन्तिम सत्ता एक केन्द्र मैं निहित रहती है। फाइनर के अनुसार, "एकात्मक राज्य यह है जिसमें सम्पूर्ण सत्ता एवं शक्ति एक केन्द्र में निहित रहती है और जिसकी इच्छा और जिसके अधिकारी सभी क्षेत्रों में कानूनी रूप से सर्वशक्तिमान होते हैं। ब्रिटेन, फ्रांस, इटली आदि देशों में एकात्मक शासन व्यवस्था चलायी जा रही है। 

8. संघात्मक सरकार संघात्मक सरकार एकात्मक सरकार से भिन्न होती है। इसमें संविधान द्वारा कार्यों का बँटवारा कर दिया जाता है। कुछ अधिकार प्रान्तीय सरकारों को और कुछ अधिकार केन्द्र के पास सुरक्षित रहता है। दोनों अपने-अपने कार्य क्षेत्र में स्वतंत्र होकर कार्य करते हैं। भारत में सामान्य स्थिति में संधात्मक व्यवस्था है जबकि अमेरिका में शासन प्रणाली संघात्मक शासन व्यवस्था का सर्वोत्तम उदाहरण है।

एकात्मक और संधात्मक सरकार में निम्नलिखित अन्तर हैं-

 1. एकात्मक राज्य में सम्पूर्ण शक्ति एक केन्द्र में निहित रहती है लेकिन संघात्मक राज्य में शक्तियों केन्द्र और राज्य में विभाजित रहती हैं।

2. एकात्मक राज्य में इकाइयों केन्द्रीय सरकार के अंग होते हैं जबकि संघात्मक राज्य में इकाइयों का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है। उनकी शक्ति का स्रोत संविधान होता है न कि केन्द्रीय सरकार।

3. एकात्मक राज्य एक इकाई होता है, परन्तु संधात्मक एक संघ 

4. एकात्मक राज्य में एकहरी सरकार होती है और अधीनस्थ इकाइयों की अपनी स्वतंत्रता नहीं रहती है। लेकिन संघात्मक राज्य में दोहरी सरकार होती है— एक केन्द्र में और दूसरी इकाइयों में। 

5. संघात्मक राज्य के लिए संविधान की सर्वोच्चता अनिवार्य है, परन्तु एकात्मक राज्य में प्राय: व्यवस्थापिका ही सर्वोच्च होती है। जैसे ब्रिटेन में।

सरकार के कार्य

लोक कल्याणकारी राज्य के सिद्धान्त के आधार पर सरकार के कार्यों का वर्गीकरण दो तरह से किया जाता है, सरकार के आवश्यक और अनिवार्य कार्य तथा सरकार के ऐच्छिक कार्य । जिन कार्यों का सम्पादन प्रत्येक सरकार को अनिवार्यतः करना पड़ता है उसको सरकार के

अनिवार्य कार्य कहते है किन्तु ऐच्छिक कार्यों को पूरा करना सरकार की इच्छा पर निर्भर करता है। लेकिन वर्तमान लोकतांत्रिक युग में सरकार के ऐच्छिक कार्य भी अनिवार्य कार्यों की तरह ही हो गये हैं जिन्हें करना सरकार के लिए आवश्यक है।

1. बाहूय आक्रमण से देश की रक्षा -प्रत्येक सरकार का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य देश की रक्षा करना है। राज्य का अस्तित्व ही इस पर निर्भर करता है। इसके लिए राज्य सेना का प्रबन्ध करती है।

2. आन्तरिक शान्ति-व्यवस्था रखना

-किसी भी देश की उन्नति तभी संभव है जब देश के भीतर अमन-चैन एवं शान्ति व्यवस्था कायम रहे। इसलिए प्रत्येक सरकार का यह कार्य है कि देश के भीतर शान्ति व्यवस्था बनाये रखे। इस हेतु प्रत्येक सरकार पुलिस और गुप्तचर विभाग की व्यवस्था करता है।

3. न्याय प्रबन्ध करना - 

सरकार राज्य के प्रशासन को सुचारु रूप से चलाने के लिए न्याय व्यवस्था का प्रबन्ध करता है। किसी सरकार की योग्यता वहाँ की न्याय पद्धति से ही देखी जाती है। इसके लिए सरकार न्यायालयों की स्थापना करता है। न्याय गरीब-अमीर सबों के लिए जरूरी है।

4. शिक्षा प्रचार - 

आधुनिक युग में सरकार के लिए समुचित शिक्षा की व्यवस्था करना अनिवार्य कर्तव्य माना जाता है। अधिकांश राज्यों में प्राथमिक निःशुल्क शिक्षा सरकार ने अपने हाथ में ले लिया है। आज शिक्षा के प्रचार और प्रसार के लिए Each one teach one का नारा दिया जा रहा है। भारतीय सरकार भी इसके लिए काफी प्रयत्नशील है।

आर्थिक कार्य देश के विकास के मार्ग पर लाने के लिए सरकार आर्थिक संसाधनों को विकसित करता है। सरकार देश में विभिन्न कानूनों के माध्यम से पूँजीपतियों से धन लेकर गरीबों के बीच वितरण करता है। जमींदारी उन्मूलन, बैंकों का राष्ट्रीयकरण आदि कार्यों के द्वारा सरकार ने लाखों लोगों को विकास का समुचित अवसर प्रदान किया है। आज इन्दिरा विकास योजना एवं जवाहर रोजगार योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में कई कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। भारत सरकार ने विदेशी पूँजीपतियों को भारत में पूँजी लगाकर उद्योग धंधे स्थापित करने के संदर्भ में गेट समझौता पर हस्ताक्षर भी किया है, ताकि भारत में बेरोजगारी की समस्या का समाधान किया जा सके। -

निर्धन और अपाहिजों की रक्षा- -सरकार निर्धन और अपाहिज की सेवा के लिए निर्धन गृह, अन्धों के लिए शिक्षा एवं रोजगार की व्यवस्था एवं अस्पताल का निर्माण करती है। भारत में भी बेकारी भत्ता तथा वृद्धावस्था पेंशन की योजना सरकार चला रही है जिससे लाखों लोगों को सहायता मिल रही है। संचार का प्रबन्ध -संचार के साधनों के अभाव में एक सभ्य समाज की कल्पना करना बेकार होगा। किसी भी राज्य के नागरिक के सभ्य जीवन के लिए सड़क, रेल, डाक, तार, टेलीफोन आदि का होना अनिवार्य है। जनता की सुविधा और देश के विकास के लिए इन चीजों का पर्याप्त मात्रा में होना अनिवार्य है। सरकार इन चीजों की पूर्ति के लिए रहती है।

लोक कल्याणकारी कार्य • आधुनिक काल में राज्यों के कार्य से सम्बन्धित जिस सिद्धान्त को उचित माना जाता है उसको लोक कल्याणकारी राज्य सिद्धान्त कहते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार राज्य जनकल्याण के लिए एक आवश्यक साधन है। इसलिए सरकार जनकल्याण के लिए उन समस्त कार्यों को करती है जिससे समाज का जीवन पूर्ण रूप से सुखमय बन सके।

आधुनिक युग में प्रत्येक नागरिक राज्य से अपने राजनीतिक, बौद्धिक, नैतिक तथा आर्थिक कल्याण की आशा करता है। सरकार का यह कर्तव्य होता है कि वह इस लक्ष्य की प्राप्ति को अपना निमित्त बनाकर अपने कार्यों का संचालन करें। जैसा कि स्पष्ट है कि लोक कल्याणकारी राज्य का सिद्धान्त व्यक्तिवादी, समाजवादी, आदर्शवादी और उपयोगितावादी समस्त सिद्धान्तों का निचोड़ है। इसमें भी सिद्धान्तों के सारे तत्व सम्मिलित हैं। यह इन सिद्धान्तों की सभी अच्छी बातों को ग्रहण कर राज्य के कार्य क्षेत्र के सम्बन्ध में एक सर्वमान्य सिद्धान्त का प्रतिपादन करता है जिसका उद्देश्य यह है कि सरकार उन सभी कार्यों का सम्पादन करे जिससे जनता का हित एवं कल्याण हो। अतएव देश में शान्ति और सुव्यवस्था कायम करना तथा देश को बाह्य आक्रमणों से रक्षा करना, सरकार का मुख्य कार्य बन जाता है। देश की राजनीतिक स्वतंत्रता और नागरिक के मूल अधिकारों की रक्षा करना तथा जनता के आर्थिक हितों की अभिवृद्धि करना सरकार के लिए आवश्यक हो जाता है।

देश के आर्थिक संसाधनों के विकास के लिए योजनाबद्ध ढंग से काम करना तथा सामाजिक जीवन में सामाजिक एवं आर्थिक न्याय की प्राप्ति के लिए नवीन कानूनों को लागू करना होता है। सांस्कृतिक जीवन के उत्थान के लिए विभिन्न तरह के कार्यक्रमों को सरकार लागू करती है।

देश में समाजवादी व्यवस्था तो पूँजीवादी लेकिन राज्य का अस्तित्व नागरिकों के कल्याण के लिए ही होनी चाहिए । देश की आर्थिक नीति इस प्रकार संचालित हो कि पूँजीपति और अमीर- गरीब जनता का शोषण नहीं कर सके। देश के आर्थिक साधन मुट्ठी भर लोगों के हाथों में ही न सीमित हो जाय। जनता के विकास के लिए सरकार आवश्यक परिस्थिति उत्पन्न करे ताकि राज्य में पिछड़े, गरीबों एवं दलितों को प्रशासन में भागीदारी लेने का मौका मिल सके।

आधुनिक युग में लोक कल्याणकारी राज्य का सिद्धान्त सर्वाधिक लोकप्रिय है। विश्व के प्रायः सभी राज्य इसी जन-कल्याणकारी सिद्धान्त से प्रेरित होकर अपने कार्यों का सम्पादन कर रही है। साम्यवादी राज्यों में तो इस सिद्धान्त पर विशेष रूप से बल दिया जा रहा है।

भारतवर्ष में आजादी के बाद ही लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए भारतीय संविधान के अध्याय 4 में राज्य के नीति निर्देशक तत्व की स्थापना की गयी है। पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर अब तक जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं सबों ने एक स्वर से भारतवर्ष के सभी लोगों के सर्वाङ्गीण विकास के लिए विभिन्न तरह के लोक कल्याणकारी कार्यों को चलाया है। भारतीय संविधान के 42 वाँ सावधानिक संशोधन के द्वारा प्रस्तावना में समाजवादी शब्द को लाया गया है. इतना ही नहीं सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर एक क्रान्तिकारी कार्य किया गया है। संविधान के 86वाँ संशोधन के माध्यम से दलितों एवं पिछड़ों को सरकारी सेवाओं में पदोन्नति का आरक्षण प्रदान किया गया है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि भारत में एक लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए सरकार विभिन्न तरह के कार्यक्रम चला रही है ताकि आने वाला भविष्य में समस्त भारतवासी प्रगति के पथ पर चल सके।

सरकार के अंग

आधुनिक युग में सरकार का काम लोक-कल्याण करना हो गया है। इतने विस्तृत पैमाने पर सरकार के काम को एक व्यक्ति द्वारा नहीं चलाया जा सकता है। अतः ऐसी स्थिति में सरकार को विभिन्न अंगों में बाँट दिया जाता है। वे अंग है व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। व्यवस्थापिका अंग के माध्यम से सरकार राज्य में कानून बनाती है। कार्यपालिका का कार्य कानूनों को लागू करना होता है। कानून को उल्लंघन करने वाले को दंड देने का काम न्यायपालिका द्वारा किया जाता है। किसी सरकार के लिए यह जरूरी है कि उसके तीनों अंग अपने क्षेत्र में रहकर सफलतापूर्वक अपने कार्यों का सम्पादन करते रहे, तभी राज्य विकास के मार्ग पर चलकर जन- कल्याण के सिद्धान्तों को पूरा कर सकता है। -

विद्यायिका

 सरकार के विभिन्न अंगों व्यवस्थापिका का विशेष महत्त्व होता है। व्यवस्थापिका सरकार का यह अंग है जो राज्य की इच्छा को कानून का रूप देता है। इसी में राज्य की सम्प्रभुता का निवास रहता है। शासन का स्वरूप इसी के द्वारा निर्धारित किया जाता है। व्यवस्थापिका में एक सदन अथवा दो सदन होते हैं। भारत की व्यवस्थापिका द्विसदनात्मक है। लॉस्की ने कहा है कि "व्यवस्थापिका का मुख्य कार्य सरकार का निर्माण करना तथा सार्वजनिक कार्यों को सम्पादित करने के लिए आवश्यक प्राधिकार हस्तान्तरित करना है। संसदीय शासन प्रणाली में कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी रहता है।"

कार्यपालिका 

सरकार का दूसरा अंग कार्यपालिका है। कार्यपालिका एक घूरी है जिसके चारों ओर राज्य की वास्तविक प्रशासनतंत्र घूमता है। कार्यपालिका के अर्न्तगत प्रशासन में नियुक्त समस्त अधिकारी वर्ग आ जाते हैं। ब्रिटेन की कार्यपालिका का अर्थ सम्राट और उसके मंत्रियों से है। भारत में यह गणतंत्र के प्रधान सहित प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सब मंत्रियों से है।

न्यायपालिका 

सरकार का तीसरा महत्त्वपूर्ण अंग न्यायपालिका है। न्यायपालिका व्यवस्थापिका द्वारा बनाये गये कानूनों के अर्थ की व्याख्या करता है और यदि कोई व्यक्ति इन कानूनों का उल्लंघन करता है तो उसे उचित दण्ड देता है। लार्ड ब्राइस के अनुसार "न्यायपालिका राज्य के लिए एक आवश्यकता ही नहीं है, अपितु उसकी क्षमता से बढ़कर सरकारी की उत्तमता की कोई कसौटी ही नहीं है।" कानून का सम्मान तभी होता है जबकि वह दोष रहित व्यक्तियों की रक्षा के लिए ढाल बन जाता है और प्रत्येक निजी नागरिकों के अधिकार का निष्पक्ष संरक्षक बन जाता है। सरकार के जितने भी मुख्य कार्य हैं, उनमें निःसन्देह न्याय कार्य अति महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध नागरिकों के साथ होता है।

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