भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार

 भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार (Spread of English Education in India)

भारत में अंग्रेजी शिक्षा का प्रसार

Ans. मुगल साम्राज्य के पतन उपरांत सामन्तों की कृपा पर पलनेवाली शिक्षण संस्थाएँ दैनीय होने लगी। उत्तरी तथा दक्षिणी भारत की शिक्षण संस्थाएँ मृतप्राय हो गई। अंग्रेज स्वयं व्यापार एवं राजनीतिक शक्ति के विस्तार में संलग्न रहे। सर्वप्रथम वारेन हेस्टिग्स ने 1781 ई० में कलकत्ता में एक मदरसा की स्थापना की जिनमें मुख्यतः अरबी और फारसी भाषा को शिक्षा दी जाती थी। 1791 ई० में बनारस के रेजीडेंट ने एक संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना की जिससे हिन्दू-धर्म, साहित्य एवं कानूनी शिक्षा की व्यवस्था की गई। ईसाई धर्म प्रचारकों से प्रभावित होकर वेलेस्ली ने 1800 ई० में कलकत्ता में असैनिक अधिकारियों हेतु Fort William College की स्थापना की जिसके निर्देशन में अंग्रेजी-हिन्दी कोश हिन्दी व्याकरण तथा कुछ अन्य पुस्तकों का प्रकाशन किया गया। परन्तु 1802 ई० में इस कॉलेज को बन्द कर दिया गया। इस प्रकार साम्राज्यवादी विकास के प्रथम चरण में कम्पनी की शिक्षा नीति महत्वहीन रही।

सर्वप्रथम 1813 ई० के Charter Act द्वारा शिक्षा के मद में एक लाख रु० की राशि अनुदान स्वरूप स्वीकृत की गई। अंग्रेज अधिकारी वर्ग स्वयं दो खेमे में बटे थे जिसमें एक प्राच्य विद्या का और दूसरा वर्ग पाश्चात्य शिक्षा की जड़ जमाना चाहता था। कुछ प्रगतिशील भारतीय भी पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार भारत में करना चाहते थे क्योंकि इसमें उनका आधुनिक स्वरूप विश्व में उभर सकता था। स्वयं राजा राममोहन राय भारत में अंग्रेजी शिक्षा के अग्रदूत थे जिनके प्रयास वरूप 1817 ई० में कलकता में Hindi College की स्थापना की गई और उसमें अंग्रेजी भाषा के माध्यम से विज्ञान और मानविको को पढ़ाई प्रारम्भ की गई। ब्रिटिश सरकार द्वारा आगरा, दिल्ली और कलकत्ता में 3 संस्कृत कॉलेज खोले गए। यूरोपीय वैज्ञानिक पुस्तकों का अनुवाद प्राच्य भाषाओं में किया गया। 1818 ई० में मासिक दिग्दर्शक और साप्ताहिक समाचार दर्पण नामक दो पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया।

संक्षेप में इस प्रकार भारत प्राच्य एवं पाश्चात्य शिक्षा प्रारम्भ की गई। 1823-1835 ई. के बीच कम्पनी का ध्यान शिक्षा प्रचार की ओर आकृष्ट किया गया। फलतः अंग्रेजी शिक्षा के प्रति नौकरी पाने के उद्देश्य से भारतीयों का आकर्षण बढ़ा क्योंकि इसके अभाव में भारतीयों की नियुक्ति निम्न पदों पर की जाती थी। भारत में मैकसले ही अंग्रेजी शिक्षा के प्रचार का वास्तविक जनक था। Asiatic Society of Bengal तथा Royal Society of London द्वारा लाख प्रतिवाद के बावजूद मैकाले के प्रयास से अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार सर्वाधिक बंगाल में हुआ। अन्य भारतीय भाषाओं को सहायक भाषा के रूप में प्रोत्साहन दिया गया। 1844 ई० में लॉर्ड हॉर्डिंग ने यह घोषणा की कि सार्वजिक सेवाओं में उन्हीं व्यक्तियों की नियुक्ति की जायेगी जिन्होंने अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त की हो। इस घोषणा के फलस्वरूप भारतीयों का झुकाव अंग्रेजी शिक्षा के प्रति काफी बढ़ा। पद के लोभ में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त कुछ भारतीय ईसाई बन गए।

Sri Charles wood's Despatch on Education 1854 द्वारा पूरे भारत वर्ष में शिक्षा पद्धति को संगठित करने का प्रयास किया गया। Wood Despatch भारतीय शिक्षा जगत में मैग्ने कार्टा की तरह महत्वपूर्ण माना जाता है। 1855 ई० में लोक शिक्षा विभाग की स्थापना की गई। फलतः 1857 ई० में कलकत्ता, बम्बई तथा मद्रास में विश्वविद्यालय स्थापित किए गए और बेटन के सहयोग से कुछ महिला पाठशालाओं को भी स्थापना की गई। शिक्षण संस्थाओं को सरकारी अनुदान प्राप्त होने लगे और विद्यालयों को निरीक्षण पद्धति के अधीन लाया गया। इस प्रकार धीरे-धीरे प्राथमिक, माध्यमिक उच्च शिक्षा का विकास तीव्र गति से हुआ। Hunter आयोग ने एतदर्थ अपनी रिपोर्ट 1883 ई० में प्रस्तुत की और माध्यमिक तथा उच्च शिक्षा की प्रगति हेतु महत्वपूर्ण सुझाव पेश किया जिसके फलस्वरूप अनेक स्थानों में स्कूलों और कॉलेजों की स्थापना की गई। साथ ही साम्प्रदायिक संस्था की भी संख्या तेजी से बढ़ी। 1887 ई० तक पंजाब तथा इलाहाबाद में भी विश्वविद्यालय की स्थापना कर दी गयी।

           इस तरह भारत में अंग्रेजी शिक्षा का पर्याप्त विकास हुआ जो भारत हेतु वरदान और अभिशाप दोनों सिद्ध हुआ।


एक टिप्पणी भेजें (0)
और नया पुराने