धर्म और विज्ञान में क्या अंतर है।

 धर्म और विज्ञान (Religion and Science )

धर्म और विज्ञान (Religion and Science )

आधुनिक युग तर्क और विज्ञान का युग है। अतः धार्मिक संस्थाओं पर भी इसका समुचित प्रभाव प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से देखने को मिलता है। विज्ञान का दृष्टिकोण परीक्षण और निरीक्षण पर आधारित है। एक प्राकृतिक वैज्ञानिक किसी आकस्मिक आश्चर्यजनक करिश्मे की चिंता तब तक नहीं करेगा जब तक उसे उस घटना के प्राकृतिक आधार का विवेचन करना हो। केवल उन्हीं वस्तुओं के जिन पर परीक्षण किये जा सके, अध्ययन और उससे प्रतिपादित तकनीक तक ही अपने को सीमित रखने की वैज्ञानिक प्रकृति से धार्मिक भावनाओं, विश्वासों और विचारधाराओं पर घातक आक्षेप किया है। वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया कि प्लेग फैलने का कारण चूहों द्वारा बीमारी के कीटाणुओं का वितरण है, न कि किसी देवी शक्ति का प्रकोप । इस प्रकार धार्मिक भ्रांतियों और अन्धविश्वासों के मूल को वैज्ञानिक खोजों ने उखाड़ फेंका है। इन परिस्थितियों में विज्ञान और धर्म की शत्रुता और वैमनस्य स्वाभाविक ही है।

धर्म और विज्ञान में संघर्ष है या नहीं, यह प्रश्न बड़ा विवादास्पद है। इस सम्बन्ध में दो विचारधारायें प्रचलित है एक विचारधारा के अनुसार इनमें आपस में कोई संघर्ष नहीं है। दूसरी विचारधारा के अनुसार इनमें आपस में संघर्ष है। प्रथम विचारधारा के अनुसार जो यह मानते हैं कि धर्म और विज्ञान में कोई संघर्ष नहीं है उनका कथन है कि धर्म और विज्ञान के क्षेत्र पृथक्-पृथक् है। धर्म का सम्बन्ध अलोकिक शक्ति से है जिसे अनुभव के द्वारा प्रमाणित नहीं किया जा सकता। विज्ञान का सम्बन्ध उन तथ्यों से है जिन्हें बुद्धि और परीक्षण के द्वारा पूर्णतया स्पष्ट किया जा चुका है। ऐसी स्थिति में इन दोनों में संघर्ष का प्रश्न ही पैदा नहीं होता। किंग्सले डेविस ने लिखा है, "वह दृष्टिकोण जो विरोध नहीं मानता, यह संकेत करता है कि धार्मिक विश्वास इन्द्रियों से परे एक विश्व की ओर निर्देश करते हैं। इसलिये यदि वे वैज्ञानिक विधि से प्रमाणित नहीं हो सकते तो उनको अप्रमाणित नहीं माना जा सकता। इसकी अभिव्यक्ति करने वाला दूसरा दृष्टिकोण यह है कि धर्म अतीत से सम्बन्धित है, जबकि विज्ञान तत्कालिक कारणों से सम्बन्धित है। एक वैज्ञानिक भगवान में विश्वास कर सकता है और उस पर भी एक अच्छा प्राणी शास्त्री हो सकता है। वह प्राणीशास्त्र के तथ्यों एवं सिद्धान्तों को भगवान की लीला की विभिन्न अभिव्यक्तियों ही समझेगा। वैज्ञानिक प्रयोगशाला में उसका व्यवहार वैज्ञानिक की तरह होगा तथा गिरजाघर में उसका व्यवहार वहाँ की धार्मिक परिस्थितियों के अनुकूल होगा। दोनों स्थानों पर उसमें अपने व्यवहार को असंगति की कोई नहीं होगी ।" इस प्रकार धर्म और विज्ञान में कोई संघर्ष नहीं परन्तु दूसरी ओर कुछ लोग धर्म और विज्ञान में संघर्ष पाते हैं। इन लोगों का कहना है कि धर्म केवल अन्धविश्वासों पर आधारित है, इसमें कोई वास्तविकता, वैज्ञानिकता, तार्किकता नहीं होती। मन्दिरों में पत्थर की मूर्ति को पोषक चढाना, भोग लगाना, आरती उतारना, मूर्ति को सुलाना आदि सब अतार्किक हैं, इसमें अन्धविश्वास के अलावा और कुछ नहीं है। दूसरे धर्म को यह बातें जो कल्पना पर आधारित है, आज विज्ञान के द्वारा असत्य साबित होती जा रही हैं। किंग्सले डेविस ने अपनी पुस्तक 'मानव समाज' में अनेक आधारों पर विज्ञान और धर्म के बीच पाये जाने वाले संघर्ष को स्पष्ट किया है। ब्लेकमार और गिलिन ने लिखा है कि मतांध और रूढ़िवादी धर्म ने सदैव ही उपयुक्त लोगों को वास्तविक सत्य और नये तथ्यों को प्रस्तुत करने में रुकावट डालने का प्रयत्न किया है। धर्म ने ही वैज्ञानिक गैलिलियों को भी अपनी खोजों का त्याग करने के लिये बाध्य कर दिया। यही नहीं, धर्म ने विज्ञान की प्रगति में बाधा डाली, विद्वानों के स्वतन्त्र अनुसन्धानों में अवरोध पैदा किया और लोगों की प्रजातन्त्रीय आकांक्षाओं को दबा दिया। आधुनिक समय में धर्मोपदेशकों ने डर्विन हक्सले जैसे वैज्ञानिकों के सिद्धान्त का दमन करने का प्रयत्न भी किया ।

कुछ विद्वानों का मत है कि धर्म का आधुनिक समाज में बड़ा धुंधला स्थान होगा, क्योंकि इसमें तार्किकता का अभाव है और कल्पना की अधिकता है । दूसरे आधुनिक सभ्यता से विज्ञान का इतना विकास होता जा रहा है कि जो कार्य धर्म की काल्पनिक उड़ानों की अतार्किकता को हमारे सामने स्पष्ट रूप से रख देता है । परन्तु डेविस का विचार है कि कल्पनाओं के कारण धर्म का आधुनिक सभ्यता में कोई स्थान न रहे यह गलत है, क्योंकि धर्म की अतार्किकता के कारण ही समाज- और व्यक्ति दोनों क्रियाशील रहते हैं।

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